इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

कैमरे में रखे विस्फोटक से किया गया था नार्दन एलायंश आर्मी के संस्थापक अहमद शाह मसूद की हत्या, कातिल फर्जी पत्रकार बन पहुंचे थे मसूद के पास – चंद्रकांत मिश्र /सतीश उपाध्याय

अहमद शाह मसूद को ‘पंजशीर के शेर’ के रूप में पहचाना जाता था। जिन्होंने 1980 के दशक के दौरान रूसी फौज को खदेड़ने वाले एक शानदार गुरिल्ला कमांडर के रूप में अपना नाम बनाया था। 1990 के दशक के अंत तक, वह तालिबान आतंकी संगठन और उनके अल-कायदा सहयोगियों से लड़ रहे थे।

अमेरिका के 9/11 हमले से दो दिन पहले उत्तरी अफगानिस्तान में अहमद शाह मसूद का इंटरव्यू लेने अल-कायदा का एक आत्मघाती दस्ता मीडिया के रूप में पहुंचा था। इससे पहले कि अहमद शाह मसूद उनके सवाल का जवाब दे पाते, आत्मघातियों ने विस्फोट कर दिया। बाद में मालूम चला था कि पत्रकार के रूप में आए ये लोग अपने कैमरे में विस्फोटक लाए हुए थे।

नार्दन एलायंश आर्मी चीफ अहमद शाह मसूद की हत्या और 9/11 हमले के बीस साल बाद, अफगानिस्तान में फिर से अनिश्चितता और रक्तपात का एक और युग शुरू हो गया है क्योंकि तालिबान की वापसी हो गयी है। तालिबान का दावा है कि उसने पूरे पंजशीर घाटी पर भी कब्जा कर लिया है।

अहमद शाह मसूद की हत्या का आदेश खुद ओसामा बिन लादेन ने दिया था। हत्यारों ने एक डॉक्यूमेंट्री फिल्माने का नाटक किया। हत्यारे अगस्त 2001 में ख्वाजा बहाउद्दीन गांव में अहमद शाह मसूद के अड्डे पर पहुंचे थे। पत्रकार और मसूद के करीबी सहयोगी फहीम दशती ने हत्या के कुछ हफ्ते बाद एएफपी को बताया, “उन्होंने हमारे साथ 10 दिन शांतिपूर्वक और धैर्यपूर्वक इंतजार में बिताए, और कभी भी गैर जरूरी रूप से इंटरव्यू पर जोर नहीं दिया।”

अहमद शाह मसूद के सहयोगी मसूद खलीली ने अक्टूबर 2001 में एएफपी को बताया, “हम सहज महसूस नहीं कर रहे थे, खासकर इसलिए कि उन्होंने बिन लादेन के बारे में सवाल पूछा था।”

बाद में इस हत्या ने पूरे अफगानिस्तान और दुनिया को झकझोर कर रख दिया था। उस समय तालिबान विरोधी अफगानों द्वारा मसूद को आखिरी बड़ी उम्मीद के रूप में देखा गया था, और पश्चिमी सरकारों द्वारा कट्टर इस्लामवादियों के खिलाफ एक शक्तिशाली सहयोगी के रूप में देखा जा रहा था।
In the ongoing war between the Northern Alliance Army and the Taliban, there was heavy loss of life and property on both sides

अहमद शाह मसूद की मौत को कई दिन तक छिपाये रखा गया। मारे जाने के एक हफ्ते बाद, मसूद को उसके जिले बजरक में दफनाया गया था। उनका शरीर अफगान ध्वज के रंगों में डूबा हुआ था और अंतिम संस्कार के जुलूस में हजारों समर्थक पहुंचे थे।

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