इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

देश की खुफिया ऐजेंसी राॅ के पूर्व अफसर आर.के. यादव ने जब सोनिया गांधी के सबसे करीबी रहे अहमद पटेल को “राॅ” का दुश्मन बताया था – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)


सांकेतिक तस्वीर।

नई दिल्ली। वर्ष 1962 की भारत-चीन जंग के बाद महसूस हुआ कि एक ऐसी भारतीय खुफिया ऐजेंसी का निर्माण किया जाये जो देश के बाहरी दुश्मनों की निगरानी कर सकें ताकि भारत को बेहतर इंटेलीजेंस रिपोर्ट उपलब्ध हो सकें,जहां इसी क्रम में RAW (राॅ) का गठन किया गया, शुरूआत में यह ऐजेंसी अपने तमाम सफल सीक्रेट-ऑपरेशन के बदौलत भारत हीं नहीं बल्कि पूरी दुनिया में छा गई,लेकिन बाद में भारत के हीं कुछ ऐसे राजनेता भी सामने आये जो कि राॅ के तमाम अंडर कवर आॅपरेशन को प्रभावित ही नहीं अपितु उसके तमाम सीक्रेट को लीक आऊट करके इस बेहतरीन ऐजेंसी की छवि पर बदनुमा दाग लगाने में कोई भी कोर कसर नहीं छोड़े।

इसी कड़ी में पहला नाम आता है भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई,बताया जाता है कि राॅ ने एक इंटल इनपुट के आधार पर अपने कुछ सीक्रेट ऐजेंट को पाकिस्तान में एक सीक्रेट मिशन पर भेजा था,जहां पर इन ऐजेंटों को दुश्मन देश में परमाणु परीक्षण से संबंधित रिपोर्ट को तैयार करने का टास्क दिया था,कहा जाता है कि इस मिशन से जुड़े पाकिस्तान के स्थानिय ऐजेंट ने भारतीय ऐजेंटों के सामने कुछ ज्यादा पैसों की डिमांड रखी और यह भी बताया कि इस समय पाकिस्तानी ऐजेंसियां कहूटा में परमाणु परीक्षण के मिशन पर पूरी गोपनियता के साथ काम कर रही है,बता दे कि जब ज्यादा पैसों की बात आई तो भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को अवगत कराया गया और उनसे उस रकम को रिलीज करने के लिए ऐजेंसी द्वारा अनुरोध किया गया तो उन्होंने रकम रिलीज करने से साफ इंकार कर दिया और उन्होंने पाकिस्तान को इस महत्वपूर्ण रिपोर्ट को लीक आउट कर दिया,परिणामस्वरूप पाकिस्तान सतर्क हो गया और गहराई से इन सीक्रेट ऐजेंटों की छानबीन शुरू की गई, बताया जाता है कि इस दौरान कई ऐजेंट डिटेन किये गये जहां उन सभी को तड़पा-तड़पाकर मार दिया गया।

इसी कड़ी में दूसरा नाम आता है भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का जो कि सत्ता में आते ही इन्होंने सबसे पहले राॅ को आदेश दिया कि पाकिस्तान में राॅ द्वारा जारी सभी आॅपरेशन को तत्काल बंद किया जाये और वहां मौजूद सभी भारतीय जासूसो को वापस भारत बुलाया जाए।

वहीं,इन सभी घटनाक्रमों के बीच भारतीय ऐजेंसी राॅ से सेवानिवृत्ति हुए राॅ आफिसर आर.के.यादव ने अपनी स्वलिखित किताब “मिशन-राॅ” में कई सनसनी भरे खुलासे के माध्यम से देश के कई गद्दार राजनेताओं का पर्दाफाश किया है जिनमें सोनिया गांधी के सबसे करीबी नेता अहमद पटेल का भी जिक्र है,आर.के.यादव अहमद पटेल के बारे में बताते हुए यहां तक कह दिये कि अहमद पटेल दुश्मन ऐजेंसी ISI का ऐजेंट था।

यादव कहते हैं कि गुजरात भरूच में कांग्रेस नेता और सोनिया गांधी के सबसे भरोसेमंद व तत्कालीन राज्यसभा सांसद अहमद पटेल का ISI और पाकिस्तानी आतंकियों से गहरा संबंध था।
आरके यादव ने यह भी खुलासा किया था कि अहमद पटेल ने किस तरह रॉ को रिश्तेदारों एवं परिचितों का विंग बना दिया था। देश की इस सर्वोच्च संस्था में भाई-भतीजावाद का बोलबाला हो गया था। आरके यादव के अनुसार यूपीए सरकार के दौरान अहमद पटेल ने रॉ को अपनी निजी कंपनी की तरह चलाया। उन्होंने अपनी किताब में वहां चल रही गड़बड़ियों के बारे में भी बताया,यादव के मुताबिक देश में यूपीए सरकार के समय में राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर रख दिया गया और अयोग्य किस्म के लोगों को इसका चीफ बनाया गया” उन्होंने यूपीए सरकार के 10 सालों में रॉ को कलंकित कर दिया। 3 रॉ चीफ के लिए पैसे लेकर नियुक्तियां कीं।”

बताया जाता है कि कहने को तो अहमद पटेल की हैसियत सिर्फ सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव की रही है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में हर कोई जानता है कि 2004 से 2014 तक अहमद पटेल की मर्जी के बिना सरकार में एक पत्ता तक नहीं हिलता था। कहा तो यहां तक जाता है कि वो उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी ज्यादा ताकतवर थे। सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव के तौर पर अहमद पटेल तमाम सरकारी कामों में दखलंदाजी देते रहते थे,लेकिन सबसे खास थी उनकी देश की सबसे जिम्मेदार और महत्वपूर्ण खुफिया एजेंसी रॉ के कामकाज में दिलचस्पी। दरअसल रॉ वो एजेंसी है जो दूसरे देशों में अपने तमाम सीक्रेट ऑपरेशन चलाती है और उसके अधिकारियों के कामकाज को टॉप सीक्रेट रखा जाता है।

कहा जाता है कि अहमद पटेल की दखलअंदाजी सरकार में इस स्तर तक थी कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उनके सामने नतमस्तक थे। दरअसल सोनिया गांधी को राजनीति में अपने हिसाब से सेट करके रखने वाले अहमद पटेल ने सत्ता की कुंजी भी अपने ही हाथ में रखी थी। सोनिया गांधी पर उनका इतना प्रभाव था कि वे जो कहते वही होता था। कांग्रेस की पहली पंक्ति के नेताओं की लाइन अहमद पटेल के नाम से शुरू होती थी।

इसी कड़ी में यह भी दावा किया गया था कि अहमद पटेल से जुड़े अस्पताल में आतंकवादियों को पनाह दिए जाने का भी मामला सामने आ चुका था,कहते हैं कि सूरत में उस समय अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी गिरोह आईएसआईएस का एक आतंकवादी मोहम्मद कासिम पकड़ा गया था। कासिम गुजरात के अंकलेश्वर में चल रहे अहमद पटेल से जुड़े अस्पताल में नौकरी करता था,लेकिन भारतीय ऐजेंसियां अधिक गहराई में नहीं गई चूंकि उस समय केंद्र में कांग्रेस का शासन था।

वहीं,देश के पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी पर भी गद्दारी के संबंध में उँगली उठ चुकी है,हामिद के बारे में बताया जाता है कि ईरान में जब हामिद अंसारी बतौर डिप्लोमैट कार्यरत थे तो उस समय ईरान की इंटेलीजेंस ऐजेंसी ने कई भारतीय ऐजेंटों का अपहरण कर लिया था,जहां ईरानी अधिकारियों ने इन भारतीयों को बहुत टार्चर किया जिनमें कुछ की हत्या करने की भी रिपोर्ट सामने आई थी, इस घटनाक्रम की जानकारी जैसे अटल बिहारी वाजपेयी को लगी उन्होंने तत्काल उस समय के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव को अवगत कराते हुए तत्काल हस्तक्षेप करने के लिए कहा जिसके बाद राव हरकत में आये और ईरान पर दबाव बनाकर भारतीयों को ईरान के गिरफ्त से छुड़ा लिया। इसके बाद नई दिल्ली ने एक उच्चस्तरीय जांच टीम ईरान भेजा,जहां जांच के दौरान हामिद अंसारी की भूमिका संदिग्ध पाई गयी लेकिन हामिद पर कोई कार्यवाही नहीं हुई,जहां बाद में हामिद अंसारी को देश का उप राष्ट्रपति बना दिया गया।

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