इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

यूक्रेन संकट के बीच धर्मसंकट में फंसा भारत,1962 की जंग के दौरान क्यूबा मिसाइल संकट को झेलते हुए अमेरिका खड़ा रहा भारत के साथ जबकि रूस ने मदद करने से कर दिया था साफ इंकार – चंद्रकांत मिश्र/हेमंत सिंह


पुतिन और मोदी (फाईल फोटो)

नई दिल्ली/मॉस्को। रूस और यूक्रेन के बीच जारी तनाव इस समय अपने चरम पर पहुंच गया है,इस तनाव को लेकर दुनिया दो खेमों में बंटती नजर आ रही है,दोनों हीं पक्ष भावी युद्ध की आशंका में अपनी तैयारियों को भी तेज कर दिये है इसके साथ दोनों हीं पक्ष एक दूसरे को परमाणु व अन्य घातक हथियारों से हमले की भी एक दूसरे को धमकी दे रहे हैं। इस दौरान दोनों हीं तरफ से घातक हथियारों की भी तैनाती शुरू कर दी गई है,अब जितनी गर्मजोशी से युध्द की तैयारियों को देखा जा रहा है उतनी ही तेजी से दोनों पक्षों के बीच टेबल टाक भी जारी है,वहीं बुधवार को वाशिंगटन ने मॉस्को के उस मांग को भी खारिज कर दिया जिसमें कि रूस की तरफ से यूक्रेन को नाटों एलाएंश में न शामिल करने की मांग की गई थी,अब ऐसे में सिवाय युध्द के कोई रास्ता नहीं बचता है और इस भावी युद्ध को विशेषज्ञ तीसरा विश्वयुद्ध मान रहे हैं जिसे लेकर पूरी दुनिया में तीसरे विश्वयुद्ध को लेकर एक खौफ का माहौल बनता दीख रहा है और कई देश तो न चाहते हुए भी इस विश्वयुद्ध में शामिल होने के लिए बाध्य होंगे चूंकि दोनों पक्षों की जो महाशक्तियां है वे दुनिया के कई देशों को उनके विपत्ति के समय बहुत मदद पहुंचाई है इसके साथ ही रक्षा आपूर्ति भी कर रही है जिस कारण उन लोगों को भी न चाहते हुए भी इस घातक युध्द में शामिल होना पड़ेगा तो ऐसे में भारत की क्या स्थिति होगी ? यह बहुत ही गंभीर धर्मसंकट के तौर पर भारत के सामने मौजूद है,मतलब सांप छछूंदर वाली स्थिति बनती दीख रही है भारत के सामने,फिलहाल बातचीत अभी भी जारी है।

इन सबके बीच बीते दिनों नई दिल्ली के दौरे पर आये जर्मन नेवी चीफ ने जो बयान दिया वो अपने आप में अत्यंत गंभीर था लेकिन नाटों के विरोध के चलते इस बयान के कारण जर्मन नेवी चीफ को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया, उन्होंने कहा था कि रूस एक अहम देश है और चीन के ख़िलाफ़ जर्मनी के साथ भारत के लिए भी ज़रूरी है।

कहा जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन पर कभी भी हमले का आदेश दे सकते हैं,पुतिन को अमेरिका, ब्रिटेन और ईयू के देशों से लगातार चेतावनी मिल रही है। लेकिन पुतिन नहीं मानते हैं और हमले का आदेश दे देते हैं तो इससे केवल यूरोप ही प्रभावित नहीं होगा बल्कि भारत पर भी इसका व्यापक असर पड़ेगा।

वहीं इस बढ़ते तनाव के बीच अमेरिका ने यूक्रेन से अपने राजनयिकों के परिवारों को वापस आने के लिए कहा है। इसी कड़ी में ब्रिटेन का भी कहना है कि पुतिन अगर ऐसा करते हैं तो उन्हें भारी क़ीमत चुकानी होगी। ईयू के देश भी इस तरह की लगातार चेतावनी रुस को दे रहे हैं।

अब इस विषय में विशेषज्ञों की माने तो पश्चिम के देश यूक्रेन पर हमले की स्थिति में रूस को अलग-थलग करने के लिए कई बड़े प्रतिबंध लगाएंगे। जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने पूर्व में इसके संकेत दे भी दिए हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे में रूस को चीन की ज़रूरत पड़ेगी और चीन पश्चिमी प्रतिबंधों का असर कम करने के लिए पड़ोसी रूस का साथ दे सकता है। चीन आधिकारिक रूप से अब तक यही कह रहा है कि मामले को बातचीत के ज़रिए सुलाझाना चाहिए,लेकिन वह इस बात का भी समर्थन कर रहा है कि यूक्रेन को नाटों का सदस्य नहीं बनना चाहिए,जो कि चीनी मंशा पर सवाल खड़ा हो रहा है।

रूसी फौज (फाईल फोटो)

माना जा रहा है कि पश्चिम के देश रूस पर प्रतिबंध लगाएंगे तो इसकी भरपाई चीन ही कर सकता है और ऐसी स्थिति में चीन-रूस की क़रीबी और बढ़ेगी। ऐसे में भारत के साथ रूस की दोस्ती पर भी विपरीत असर पड़ने की पूरी आशंका है। क्योंकि वर्ष 1962 के भारत-चीन युध्द के दौरान रूस ने यह कहते हुए भारत की मदद करने से साफ इंकार कर दिया था कि एक तरफ भाई हैं और दूसरी तरफ दोस्त,दरअसल भाई का मतलब चीन से है चूंकि चीन और रूस कम्यूनिस्ट देश है जो कि इस कारण दोनों एक दूसरे को भाई से संबोधित करते हैं और वहीं दोस्त से मतलब भारत से है, हालांकि इस लड़ाई में रूस का हस्तक्षेप न करने का एक दूसरा गंभीर कारण है,दरअसल उसी समय अमेरिका और रूस क्यूबा मिसाइल विवाद में उलझे हुए थे,जो कि यह विवाद उसी समय तीसरे विश्वयुद्ध को पैदा कर सकता था लेकिन अमेरिका ने उस संकटकाल में भी भारत की मदद में सामने आया था, आज वही स्थिति फिर बनते दीख रही है अब ऐसे में भारत क्या निर्णय लेगा ? यह तो भविष्य के गर्भ में है लेकिन एक बात तो साफ है कि आज की यह स्थिति भारत के लिए बड़ा धर्मसंकट साबित हो रहा है।

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