टोक्यो/ताइपे। यूक्रेन के खिलाफ जंग छेड़ने के बाद रुस की हालत देखकर अब चीन की भी हालत पतली होती दीख रही है,चूंकि दुनिया भर की तमाम ऐजेंसियों में यह धारणा था कि चीन कभी भी ताइवान पर अटैक करके उस पर कब्जा कर सकता है। जहां पिछले कुछ सालों से चीन लगातार ताइवान को धमकाता भी रहा है,और अब पिछले 26 दिनों से रूस लगातार घातक हथियारों से यूक्रेन पर हमला कर रहा है फिर भी यूक्रेन अभी तक झुका नहीं और वहीं इस दौरान यूक्रेन की तरफ से भी जबरदस्त काउंटर अटैक के जरिए रूस को करारा जवाब भी दिया जा रहा है जिसे देखकर बड़े-बड़े शूरमाओं की हालत अब पतली हो गई है,तो ऐसे में चीन किस खेत की मूली है ?
बता दें कि यूक्रेन ने आज इतिहास दोहरा रहा है जिसे कभी वियतनाम ने अंजाम दिया था,इस ताजे युध्द ने दुनिया के उन तमाम छोटे देशों को एक बड़ा साहस दिया है जो कि अब तक अपने से अधिक ताकतवर देशों से भयभीत होते थे,इसी कड़ी में ताइवान के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से एक ताजा बयान आया है जिसमें कहा गया है कि ‘ताइवान आज यूक्रेन और कल ताइवान की बारी’ वाले बयानों में विश्वास नहीं रखता। चूंकि इस ताइवानी अधिकारी का कहना है कि चीन ऐसा करने की सोच भी नहीं सकता है। वहीं कुछ विशेषज्ञ चीन के रिकॉर्ड को देखते हुए ताइवान पर चीनी खतरे को नजर अंदाज़ नहीं कर रहे हैं।
दरअसल,यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो के ग्रैजुएट स्कूल ऑफ लॉ एंड पॉलिटिक्स की ओर से आयोजित एक सेमिनार में प्रोफेसर आकियो ताकाहारा ने कहा, ‘मैं समझता हूं कि चीन की ओर से यूक्रेन में चल रही जंग पर पैनी नजर रखी जा रही है। उदाहरण के तौर पर चीन यह जानना चाहता है कि इस युद्ध में कैसे हथियारों का इस्तेमाल हुआ ? और वह कितने कामयाब रहे ? रूसी सेनाएं क्यों कामयाब नहीं हो रही हैं ?और यूक्रेनी सेनाएं कैसे बचाव कर पा रही हैं ? इन सभी पक्षों पर चीनी सेना की नजर है। इसके अलावा रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों का भी आकलन चीन कर रहा है, जिन्हें पश्चिमी देशों ने लगाया है।’
इसी कड़ी में प्रोफेसर ताकाहारा ने आगे भी कहा, ‘मैं समझता हूं कि चीन की नीति ताइवान को लेकर यह होगी कि फोर्स का ज्यादा इस्तेमाल न किया जाए। उसकी बजाय वह शुन जू की आर्ट ऑफ वॉर की नीति के बारे में सोच रहा होगा। साफ है कि ताइवान के खिलाफ चीन की यह लड़ाई जारी रहेगी और वह सीधे युद्ध में उतरने से बचा होगा।’
वहीं,एक्सपर्ट मानते हैं कि यूक्रेन और ताइवान में काफी समानताएं हैं। इसके अलावा दोनों के सामने खतरे भी एक समान हैं। एक तरफ यू्क्रेन के सामने रूस का खतरा है, जो उसे अपना ही हिस्सा मानता रहा है। इसी तरह ताइवान को भी सांस्कृतिक तौर पर चीन अपने हिस्से के तौर पर प्रचारित करता रहा है। यही वजह है कि यूक्रेन पर हमले के साथ ही ताइवान के भविष्य को लेकर भी दुनिया चिंता जताने लगी है।
गौरतलब है कि ताइवान के राष्ट्रपति साई यिंग वेन ने जनवरी में ही कह दिये थे कि उनका देश लंबे समय से चीन की सैन्य धमकियां झेलना रहा है। इसलिए हम यूक्रेन की स्थिति को समझ सकते हैं। हालांकि ताइवान की संप्रभुता उस तरह से स्पष्ट नहीं रही है,जितनी यूक्रेन की है। संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से भी उसे मान्यता प्राप्त नहीं है। हालांकि अमेरिका की ओर से लगातार ताइवान को मदद दी जाती रही है।
दरअसल, यूक्रेन संकट के बाद से ही ताइवान संकट की भी चर्चा जोरो पर थी,जहां इस दौरान चीनी लड़ाकूं विमानों ने कई बार ताइवान की वायुसीमा में घुसपैठ भी की और ताइवान को धमकाया भी कि वह यूक्रेन के जैसे सपना ना देखें लेकिन इधर कुछ दिनों से चीन चुप है,जिससे ऐसा लग रहा है कि यदि यूक्रेन झुकता नहीं है और रूस का नुकसान बढ़ाता हीं जाता है तो चीन ताइवान को धमकाना भी बंद कर देगा,अतः अब ताइवान की किस्मत यूक्रेन ही तय करेगा।