पूर्वी कमान के लेफ्टिनेंट जनरल मनोज पांडेय जवानों के साथ
नई दिल्ली। वर्ष 1962 में जब चीन ने भारत के पीठ में छूरा घोंपतें हुए हमला किया और मैकमोहन लाइन के इस पार आ गया,जहां बाद में अमेरिकी दबाव में चीन ने लड़ाई के ठीक एक महिने बाद सीज फायर का ऐलान कर दिया, यहां तक की चीनी सेना ने हमारी जब्त की हुई राईफलों को भी उसको बाहिफाजत वापस भारत को लौटा दिया था,लेकिन देश की प्रतिष्ठा रूपी जमीन पर जो कि लगभग 42 हजार वर्ग किलोमीटर थी उस पर अपना कब्जा बरकरार रखा।
बार्डर पर भारतीय जवान (फाईल फोटो)
उस समय संसद में तत्कालीन सभी सांसद,मंत्री,आदि ने कसम खाई थी कि चीन से अपनी जमीन वापस लेंगें, अफसोस आज इस घटना को 59 वर्ष से उपर बीत गया, लेकिन आजतक भारत सरकार की तरफ से एक भी आवाज नहीं उठायी गई,यहां तक की डिप्लोमैटिक स्तर भी आवाज नहीं उठी,जबकि इस दौरान केंद्र में तमाम सरकारें आई भी और गई भी,लेकिन मुद्दा ज्यो का त्यौ अभी भी बना हुआ है।
वर्ष 2014 में देश में भाजपा की सरकार आई,जहां पर पूरी उम्मीद थी कि यह सरकार इस समस्या का कोई न कोई हल जरूर निकालेगी,लेकिन आज इस सरकार की दूसरी पाली यानि पूरे सात साल से लगातार देश में शासन कर रही है, लेकिन अभी तक इस विषय में इस सरकार द्वारा किसी पहल की रिपोर्ट सामने नहीं आई बल्कि चीनी सेना की भारतीय सीमा में आज भी घुसपैठ होती रहती है जिसे वापस खदेड़ा भी जाता रहा है, लेकिन दुश्मन अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आ रहा है,इस दौरान अमेरिकी खुफिया ऐजेंसियों के हवाले से अभी हाल ही में भारत के खिलाफ दुश्मन द्वारा तमाम साजिशों का खुलासा भी किया गया है जिसमें दुश्मन द्वारा बार्डर तक टेलीकाम,रेलवे लाइन,एअरबेस,हैलीपैड आदि को बनाने की रिपोर्ट सामने आई है। कई लोकेशन पर गांव व इमारतों के निर्माण संबंधी रिपोर्ट भी सामने आई है।
और हम खामोश है,क्यों ?…
बताते चले कि 62 की जंग के दौरान चीनी सैनिकों से मोर्चा लेने वाले तमाम बहादुर भारतीय जवानों को कई फ्रंट से पीछे हटने का भी निर्देश दिया गया लेकिन वहां मौजूद भारतीय जवान जो कि सीमित संसाधन तक ही सीमित थे देश की प्रतिष्ठा में अपनी शहादत देना अधिक उचित समझे और दुश्मन का डटकर मुकाबला किये,जिनमें बहुत शहादतें भी हुई,क्या इसीलिए शहादत दी गई थी कि हम अपनी जमीन भूल जायें ?
आज हम अपने जीवन में,अपने अन्य कार्य क्षेत्र में इतना मशगूल हो गए हैं कि जो लोग हमारी सुरक्षा के खातिर अपने प्राणों की आहूति दे दिये और हम अभी तक उनकी आत्मा की शांति के लिए अपनी जमीन,अपनी प्रतिष्ठा को वापस नहीं ले सकें।
यहां यह भी साफ कर दिया जा रहा है कि 62 की जंग में देश के शहीद हुए बहादुर जवानों को सच्ची श्रद्धांजलि तभी स्वीकार्य होगी जब हम 42 हजार वर्ग किलोमीटर जमीन पर वापस तिरंगा फहरायेंगें।
गौरतलब है कि वर्ष 1962 में चीनी सेना ने मैकमोहन लाईन को पार करते हुए भारतीय सीमा के भीतर घुस आई थी, जहां इस दौरान दोनों देशों की सेना के बीच घमासान लड़ाई हुई, हालांकि भारत भावी युद्ध के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं था,इस लड़ाई के ठीक एक महिने बाद दुश्मन ने सीजफायर का ऐलान कर दिया, इस दौरान चीनी सेना ने कई भारतीय सैन्य अधिकारियों के साथ-साथ सेना के जवानों को युद्ध बंदी भी बना लिया था जहां सीजफायर के बाद सभी को रिहा कर दिया गया लेकिन दुश्मन ने भारत के 42 हजार वर्ग किलोमीटर पर अपना कब्जा बरकरार रखा जो कि आज भी उसपर कायम है।
कुल मिलाकर सीक्रेट ऑपरेशन का बड़ा सवाल है कि चीन द्वारा कब्जायें गये 42 हजार किलोमीटर की जमीन पर तिरंगा कब फहरेगा ?….