नई दिल्ली। अगस्त 1939 में यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध का माहौल बनने लगा,इसी दौरान हिटलर ने सोवियत संघ के साथ यह समझौता किया कि दोनों देश आपस में एक-दूसरे के साथ युध्द नही करेंगे,इस समझौते से युरोपिय देशों को बेहद आश्चर्य हुआ। फिर हिटलर ने पोलैंड पर हमला कर दिया तब रूस की आर्मी ने भी पोलैंड पर पश्चिम से हमला बोल दिया इस ज्वाइंट मिलीट्री आॅपरेशन से पोलैंड का बंटवारा हो गया। अगले डेढ़ सालों तक जर्मनी और रूस के बीच काफी मधुर संबंध रहा। इस तरह से जर्मनी को आर्थिक रूप से बहुत फायदा पहुंचा।
सोवियत संघ के सहयोग ने हिटलर का हौसला बढ़ाने का काम किया,फिर क्या था यूरोप में अपने वर्चस्व को विस्तार देने के मिशन पर हिटलर ने प्लान किया और मई 1940 में पश्चिम की तरफ जर्मन सेना आगे बढ़ी और छह हफ्ते में ही फ्रांस को जीत लिया गया। इस जीत के साथ ही हिटलर की महत्वाकांक्षा और भी भढ़क गई और जर्मन सेना अब पूरब में भी विस्तार का फैसला की,फिर क्या था महत्वाकांक्षा से युक्त जर्मन सेना सोवियत संघ पर हमला करने की योजना बनायी।
फिर 18 दिसंबर,1940 को हिटलर ने अपनी सेना को आॅपरेशन बारबरोसा के तहत सोवियत संघ पर हमला करने का आदेश दिया,हिटलर की यह सबसे बड़ी भूल थी। फिर जर्मन सेना ने 22 जून 1941 के दिन तीस लाख से ज्यादा जर्मनी और धुरी राष्ट्र के सैनिकों के साथ रूस पर हमला किया गया। हिटलर की इस आक्रमणकारी सेना में 3,400 टैंक और 2,700 एयरक्राफ्ट शामिल थे। इतिहास की यह सबसे बड़ी आक्रमणकारी फौज थी।
जर्मन सेना ने तीन गुटों में बंटकर सोवियत संघ पर हमला किया। आर्मी ग्रुप नॉर्थ को लेनिनग्राद पर कब्जे का टास्क दिया गया था यह बटालियन लात्विया,लिथुआनिया और एस्टोनिया होते हुए लेनिनग्राद पहुंचती,आर्मी ग्रुप साउथ को यूक्रेन पर हमले का आदेश दिया गया,उस ग्रुप को कीव और डोनबास की ओर आगे बढ़ना था। उन दोनों के बीच में था आर्मी ग्रुप सेंटर इस ग्रुप को मिंस्क,स्मोलेंस्क और मॉस्को पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई। योजना के मुताबिक,10 दिनों के अंदर रूस पर कब्जा कर लेना था
हालांकि स्टालिन हिटलर से पहले से ही सतर्क थे लेकिन उनको उम्मीद नहीं थी कि इतना जल्दी जर्मनी उन पर हमला कर देगा, वैसे सोवियत संघ के पास करीब 50 लाख सैनिक और 23,000 टैंक थे। लेकिन स्टालिन की लाल सेना जर्मनी से मुकाबला करने के लिए तैयार नहीं थी। हमले के दौरान जर्मनी को शुरुआती में सफलता मिली, टैंकों पर आधारित पैंजर ग्रुप ने दुश्मन को पीछे धकेल कर आगे बढ़ना शुरू कर दिया। रूस की लाल सेना तब तक कन्फ्यूजन की स्थिति में थे। योजना के मुताबिक जर्मनी की एयरफोर्स सोवियत एयरफील्ड्स पर भयानक बमबारी कर रही थी, जल्द ही जर्मन एयरफोर्स ने हवाई हमले में सोवियत को काबू में कर लिया,इस हवाई हमले के पहले ही दिन सोवियत संघ के 1,800 फाइटेर जेट नष्ट हो गए।
अब जर्मनी की आर्मी ग्रुप सोवियत के नॉर्थ लेनिनग्राद की और बढ़ रहा था। रूसी सेना इस क्षेत्र में बिखरी हुई थी। तीन हफ्ते में ही जर्मनी की टैंक दस्ता ने सोवियत के 804 किलोमीटर के इलाकें पर कब्जा कर लिया,जुलाई मध्य तक जर्मन अपने टारगेट से महज 96 किलोमीटर की दूरी पर थे।
28 जून तक जर्मन सेना ने रूस की तीन सेनाओं को घेर लिया और बियालिस्तोक-मिंस्क पॉकेट में रूस के 3,20,000 सैनिकों को कैद कर लिया। 27 जुलाई तक रूस के 3 लाख और सैनिकों को भी गिरफ्तार कर लिया।
हालांकि जर्मन सेना को रुसी सेना के सख्त विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन जर्मन सेना इस मोर्च पर भी आगे की ओर बढ़ी। 8 अगस्त को जर्मन सैनिकों ने दो सोवियत टुकड़ियों को घेर लिया और 1 लाख सैनिकों को बंदी बना लिया। इसके बाद जर्मनी की सेना नाइपर नदी तक पहुंच गई।
इसी दौरान जर्मनी की आर्मी ग्रुप सेंटर का राशन खत्म होने वाला था। इससे उसकी स्थिति खराब हो सकती थी। इसे देखते हुए हिटलर ने मॉस्को की ओर बढ़ने का इरादा त्याग दिया। उसने उत्तर और दक्षिण के मोर्चे पर और सैनिकों को भेज दिए। एक ग्रुप को लेनिनग्राद मिशन में मदद के लिए और एक को कीव पर कब्जा करने में मदद के लिए भेजा दरअसल जर्मनी के सैनिक मॉस्को के काफी करीब पहुंच गए थे लेकिन हिटलर ने संसाधनों से भरपूर यूक्रेन को अहम समझते हुए योजना बदल दिया इसका जर्मन हाई कमान ने पुरजोर विरोध भी किया था। 21 अगस्त को हिटलर ने आदेश दिया था कि क्रीमिया और डोनेट्स बेसिन पर कब्जा किया जाये,और रूसी सेना पूरी तरह से जर्मकी के झांसे में आ गई। सितंबर अंत तक कीव पर भी जर्मनी का कब्जा हो गया और 6.5 लाख रूसी सैनिक या तो मारे जा चुके थे या बंदी बनाए जा चुके थे। जर्मनी की सेना काला सागर तट की ओर आगे बढ़ी और क्रीमिया में घुस गई। जर्मन सेना ने सेवस्टापुल पर भी कब्जा कर दिया। फिर बाद में खारकोव भी जीत लिया गया। लेकिन अब जर्मन थक चुके थे। लड़ाई में भी काफी जर्मन मारे जा चुके थे और सप्लाई भी सीमित हो गई थी, सितंबर में जर्मन सेना ने सोवियत के लेनिग्राद को बाकी रूस से अलग कर दिया लेकिन उस पर कब्जा नहीं कर सका।
इसके बाद हिटलर ने मॉस्को से युद्ध करने के लिए 2 अक्टूबर को मिलीट्री ऑपरेशन ‘टाइफून’ लॉन्च किया। उसका मानना था कि रूस बुरी तरह कमजोर हो गया है और रूसी सेना में अपनी राजधानी मॉस्को की रक्षा की ताकत नहीं रह गई है। थोड़ा और जोर लगाने पर हिटलर मॉस्को जीत लेगा। ऊधर सोवियत की सेना फिर से तैयार हो चुकी थी। करीब 10 लाख सोवियत सैनिक अपनी राजधानी की रक्षा के लिए तैयार थे। भले ही उनके पास कुछ ही टैंक और विमान बचे थे लेकिन रक्षा की कई परतें बना दीं।
शुरुआत में जर्मन सेना को सफलता मिली,जर्मनी की पैंजर डिविजन ने 6 लाख रूसी सैनिकों को बंदी बना लिया। लेकिन जब जर्मन सेना मॉस्को के पास पहुंची तो मौसम धोखा दे गया। बारिश की वजह से सड़कों पर काफी कीचड़ भर गया था। घोड़े से खिंचने वाली गाड़ियां कीचड़ में फंसने लगी। इस स्थान पर आकर जर्मनी सेना ने अस्थायी तौर पर अपने मिलीट्री-आपरेशन को स्थगित करने का फैसला लिया।
जब नवंबर का महीना था,तो जर्मन सेना को राहत थोड़ी मिली। तापमान गिर रहा था और जमीन पर कीचड़ नहीं रह गया था। लेकिन इस बीच सोवियत सेना को तैयारी का भरपूर मौका मिल गया था। बाकी रूसी सेना की मदद के लिए और सैनिक आ चुके थे। 5 दिसंबर को सोवियत सेना ने अचानक जर्मन सेना पर जवाबी हमला शुरू कर दिया । जर्मन सेना पीछे हटने के लिए मजबूर हो गई। यहां से जर्मनी की सेना की हार शुरू हुई। 1944 के गर्मी के मौसम तक रूसी सेना ने जर्मनी सैनिकों के कब्जे से अपने अधिकतर इलाके आजाद करा लिए थे।
सोवियत सेना ने जर्मनी से अपने इलाके को तो आजाद कराए ही,बर्लिन पर भी हमला कर दिया चूंकि हिटलर ने रुस पर हमला करके अपने सर्वनाश को खुला निमंत्रण दे दिया था क्योंकि रूसियों को हिटलर के हमले में भारी नुकसान उठाना पड़ा था,जिस वजह से हिटलर के खिलाफ रूसियों के दिलों में भयानक नफरत थी इसी वजह से हिटलर को अपने मिलीट्री बंकर में बंद होना पड़ा और अंत में आत्महत्या भी करनी पड़ी। 8 मई, 1945 को जर्मनी के सरेंडर के साथ ही दूसरे विश्व युद्ध का अंत हो गया।