इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

1971 की जंग में भारतीय नौसेना के वें दो मिलीट्री आॅपरेशन जिनकी वजह से दुश्मन काबू में जल्दी आ गया था, परिणामस्वरूप 92 हजार सैनिकों के साथ पाक आर्मी कमांडर ने किया था आत्मसमर्पण – चंद्रकांत मिश्र/सतीश उपाध्याय

नई दिल्ली। 1971 में जब भारत अपने दुश्मन देश पाकिस्तान से बांग्लादेश सहित कई फ्रंट पर भीषण युध्द लड़ रहा था, और इस युध्द में भारत की थल सेना व वायु सेना लड़ाई में दुश्मन के खिलाफ मोर्चा संभाले हुए थे तो ऐसे हालात में देश की नौसेना कैसे खामोश बैठ सकती थी। फिर क्या था तत्कालीन राॅ के निदेशक के साथ एक सीक्रेट मिशन का प्लान बना और फिर क्या इंडियन नैवी ने अपने अद्भुत पराक्रम से दुश्मन को वार-फ्रंट पर नाकों चना चबवा दिया,और परिणाम भारत के पक्ष में हुआ।

बताते चले कि जब 1971 में बांग्लादेश फ्रंट पर भारतीय फौज पाकिस्तानी आर्मी से लड़ रही थी और इस युध्द में देश की वायुसेना भी दुश्मन के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थी तब देश की नौसेना को भी इस लड़ाई में शामिल करने की जरूरत महसूस हुई फिर क्या था दुश्मन के कराची बंदरगाह पर हमला करने की योजना बनने लगी तो इस कड़ी में भारत की खुफिया ऐजेंसी राॅ के तत्कालीन निदेशक के साथ तत्कालीन नेवी चीफ ने एक सीक्रेट प्लान किया और कराची बंदरगाह की पूरी फोटोग्राफ की डिमांड हुई फिर राॅ के दो अधिकारियों के साथ एक बिजनेस मैन को एक कामरशियल बोट के साथ कराची बंदरगाह रवाना किया गया जिनको टास्क दिया गया था कि कराची बंदरगाह का पूरा फोटो खींचकर वापस सुरक्षित नेवी बेस पर लौटना था,और फोटो खींचने के इस मिशन को सुरक्षित पूरा कर लिया गया ।

फिर उपलब्ध फोटो के अनुसार दुश्मन के बंदरगाह पर सरप्राइज अटैक की तैयारी शुरू कर दी गई। फिर इंडियन नैवी ने 4-5 दिसंबर को मिलीट्री आॅपरेशन “ट्राईडेंट” लांच किया इसके तहत नेवी ने कराची बंदरगाह पर मिसाइल बोटों से हमला करने का निर्णय लिया गया,ऐसा इसलिए किया गया क्‍योंकि कराची बंदरगाह पाकिस्‍तान के लिए बेहद मायने रखता था। वह सिर्फ पाकिस्‍तान नेवी का हेडक्‍वार्टर ही नहीं था बल्कि तेल भंडारण का भी एक प्रमुख केंद्र था। इन वजहों से वह पाकिस्‍तान के समुद्री व्‍यापार का सबसे बड़ा केंद्र भी था।

इस‍ लिहाज से इस पर हमले से पाकिस्‍तान की नेवी को नुकसान होने के साथ उसकी अर्थव्‍यवस्‍था पर भी बुरा असर पड़ना तय था। इस लिहाज से चार दिसंबर 1971 को ऑपरेशन “ट्राइडेंट” के तहत हमला बोला गया,इस हमले में पहली बार इस क्षेत्र में युद्ध रोधी मिसाइलों का उपयोग किया गया। भारतीय नौसेना का यह मिलीट्री ऑपरेशन बेहद कामयाब रहा लेकिन मुख्‍य लक्ष्‍य तेल भंडारण को नष्‍ट करने में नाकाम रहा,इसलिए उसकी अगली कड़ी के तहत ऑपरेशन “पायथन” को भी इंडियन नैवी द्वारा लांच कर अंजाम दिया गया।

आपरेशन “पायथन” के अनुसार आठ दिसंबर 1971 की रात को मिसाइल बोट आईएनएस विनाश और दो मल्‍टीपर्पज फ्रिगेट आईएनएस तलवार और आईएनएस त्रिशूल ने दुश्मन के बंदरगाह कराची में हमला बोला, इंडियन नेवी का यह ऑपरेशन पूर्णतया कामयाब रहा और इसने पाक के कई युद्धपोतों को नष्‍ट करने के साथ तेल और आयुध भंडारों को नष्‍ट करने में कामयाबी पाई,वायुसेना के सहयोग से इन हमलों के चलते कराची जोन के 50 प्रतिशत से भी अधिक ईंधन क्षमताएं भी नष्‍ट हो गईं,इसकी वजह से पाकिस्‍तान की अर्थव्‍यवस्‍था बुरी तरह प्रभावित हुई और उसका तकरीबन तीन अरब डॉलर का नुकसान हुआ।

इस आॅपरेशन की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि एक प्रतिशत का भी भारतीय नेवी फोर्स का नुकसान नहीं हुआ और दुश्मन जल्दी ही काबू में आ गया मतलब दुश्मन का आत्मविश्वास हिल गया था परिणामस्वरूप 92 हजार सैनिकों के साथ पाकिस्तानी आर्मी कमांडर ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर कर दिया,इसलिये 1971 की जंग में भारतीय फौज की ऐतिहसिक विजय में भारतीय नौसेना का भी उतना ही योगदान रहा है जितना कि देश के अन्य सुरक्षा बलों का।

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