एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

आपरेशन “मेघदूत” जिसकी वजह से हि सियाचिन में विजय मिली थी – रविशंकर मिश्र (एडिटर आपरेशन)

पाकिस्तान 1983 में सियाचिन पर कब्जे की कोशिश में लगा था. हालांकि सियाचिन को लेकर विवाद बंटवारे के वक्त से चला आ रहा था…
भारतीय सेना के पूर्व कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून का निधन हो गया. भारतीय सेना उनके अदम्य साहस की गवाह रही है. पीएन हून के नेतृत्व में ही भारतीय सेना ने सबसे ऊंची बर्फीली चोटी सियाचिन पर तिरंगा लहराया था. साल 1983 में पाकिस्तान सियाचिन चोटी पर कब्जे की कोशिश में लगा था. लेकिन पीएन हून के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर पानी फेर दिया. सियाचिन पर कब्जे के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत को अंजाम दिया था.

सियाचिन को लेकर क्या था विवाद
पाकिस्तान 1983 में सियाचिन पर कब्जे की कोशिश में लगा था. हालांकि सियाचिन को लेकर विवाद बंटवारे के वक्त से चला आ रहा था. कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच झगड़ा बंटवारे के समय से ही चल रहा था. 1949 में दोनों देशों के बीच सीमा रेखा को लेकर सीजफायर हुआ. इस बारे में 1949 में कराची एग्रीमेंट हुआ था. भारत पाकिस्तान के सुदूर पूर्वी भाग में सीमा रेखा नहीं खींची गई थी. इस इलाके में NJ9842 आखिरी पॉइंट था. इसके आगे न आबादी थी और न यहीं पहुंचना आसान था. उस वक्त सेना के अधिकारियों को ये भरोसा नहीं था कि NJ9842 के आगे भी सैन्य विवाद हो सकता है.
शिमला समझौते में भी NJ9842 के आगे की सीमा पर चर्चा नहीं हुई. ग्लेशियर से भरे उस इलाके में जाने की कोई सोच भी नहीं सकता था.

1962 के युद्ध के बाद बदलने लगी पाकिस्तान की नीयत
1962 के युद्ध के बाद पाकिस्तान ने सीजफायर लाइन में बदलाव लाने शुरू कर दिए. 1964 से 1972 के बीच पाकिस्तान ने NJ9842 के ऊपर भी सीजफायर लाइन दिखाना शुरू कर दिया. पाकिस्तान ने बदलाव करके सियाचिन पर दावा जताना शुरू कर दिया. सियाचिन जाने वाले पर्वतारोहियों के लिए ये जरूरी कर दिया गया कि वो पाकिस्तान से इसकी परमिट लें.
1978 में भारतीय सेना के एक पर्वतारोही कर्नल नरेंद्र कुमार ने सियाचिन में पाकिस्तानी कब्जे की कोशिश की जानकारी दी. एक जर्मन पर्वतारोही से उन्हें एक मैप मिला था, जिसमें सियाचिन समेत करीब 4 हजार वर्गकिलोमीटर को पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में दिखाया गया था. इसके बाद सियाचिन में सेना का एक पोस्ट बनाने का निर्देश जारी हुआ. लेकिन उस वक्त कहा गया कि सियाचिन के हालात को देखते हुए वहां सेना का पोस्ट बनाना मुमकिन नहीं है. सेना ने तय किया कि गर्मियों के मौसम में सियाचिन में सेना पेट्रोलिंग करेगी.

1982 में पाकिस्तान ने भारतीय सेना की पेट्रोलिंग पर जताई आपत्ति
भारतीय सेना ने सियाचिन में अपनी मूवमेंट बढ़ा दी थी. 1982 में पाकिस्तानी सेना की तरफ से भारतीय सेना को एक विरोध नोट मिला, जिसमें पाकिस्तान ने सियाचिन में सेना की मूवमेंट पर आपत्ति जताई थी. भारतीय सेना ने इसका जवाब दिया और सियाचिन में पेट्रोलिंग जारी रखी. 1983 की गर्मियों में भारतीय सेना ने सियाचिन की पेट्रोलिंग और तेज कर दी और वहां सेना ने एक झोपड़ीनुमा पोस्ट बना दी. भारत और पाकिस्तान के बीच इसको लेकर विरोध नोट का आदान प्रदान होता रहा.

1983 में खुफिया एजेंसियों की सूचना पर सतर्क हुई सेना
1983 में भारतीय खुफिया एजेंसियों ने सूचना दी कि पाकिस्तानी सेना सियाचिन पर कब्जे की तैयारी कर रही है. पाकिस्तानी सेना ने सियाचिन में सेना की तैनाती के लिए यूरोप से सर्दियों में पहने जाने वाले गर्म कपड़ों के भारी ऑर्डर दिए थे. ये सब सियाचिन में सैनिकों की तैनाती को लेकर किया जा रहा था. भारतीय सेना ने इस सूचना पर सधी हुई कार्रवाई का प्लान बनाया. उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेना को इस मूव की इजाजत दी.

जब भारत ने चलाया ऑपरेशन मेघदूत
सियाचिन को पाकिस्तान के कब्जे में जाने से रोकने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत चलाया. लेफ्टिनेंट जनरल पीएन हून को इस ऑपरेशन की जिम्मेदारी दी गई. 13 अप्रैल 1984 को भारतीय सेना ने ऑपरेशन मेघदूत पर काम शुरू किया. खास बात ये रही कि इसके सिर्फ एक दिन पहले यानी 12 अप्रैल को ही ग्लेशियर से ढंके सियाचिन जैसे इलाके में सैनिकों को पहनने वाले कपड़े का इंतजाम हुआ था. दुनिया की सबसे ऊंची चोटी पर कब्जे की ये एतिहासिक जंग थी.
भारत के लिए मुश्किल ये थी कि भारत की तरफ से सियाचिन की खड़ी चढ़ाई थी. जबकि पाकिस्तान की तरफ से सियाचिन की ऊंचाई कम थी. पीएन हून के नेतृत्व में भारतीय सेना ने सियाचिन की भीषण ठंड में भी पाकिस्तानी सेना को मात दी.

खुफिया एजेंसियों ने फेल किया था पाकिस्तान का प्लान
सियाचिन पर भारत के कब्जे में खुफिया एजेंसियों का अहम रोल रहा. खुफिया एजेंसियों को सूचना मिली थी की 17 अप्रैल 1984 को पाकिस्तान सियाचिन पर कब्जे के लिए चढ़ाई करेगा. भारतीय सेना ने उसके पहले 13 अप्रैल को ही सियाचिन पर कब्जे की जंग शुरू कर दी. अगर पाकिस्तान की सेना सियाचिन को अपने कब्जे में ले लेती तो भारतीय सेना के लिए इसे वापस लेना मुश्किल हो सकता था. लेकिन भारतीय सेना ने ऐसा होने से पहले ही वहां तिरंगा लहरा दिया. माइनस 50 से 60 डिग्री सेल्सियस तापमान में भी भारतीय सेना के जांबाज डटे रहे और सियाचिन की चोटी फतह की.

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