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अमेरिका- तालीबान समझौता अब टूटने के कगार पर, तभी तो आये दिन अफगानिस्तान में हमले जारी है -राकेश पांडेय (स्पेशल एडिटर)

अफगानिस्तान शांतिपूर्ण ढंग से नई व्यवस्था लागू करने की संभावनाओं पर नए सवाल खड़े हो गए हैं। गुरुवार को रूस की राजधानी मास्को में हुए अफगान शांति सम्मेलन में तालिबान की मंशा के खिलाफ प्रस्ताव पारित हुआ। हालांकि इसका पाकिस्तान ने भी समर्थन किया, फिर भी तालिबान इस पर राजी होगा, इस पर यहां संदेह जताए जा रहे हैं।
मास्को में बैठक के बाद जारी साझा बयान में अफगानिस्तान में ‘इस्लामी अमीरात’ की बहाली की संभावना को सिरे से नकार दिया गया। जबकि तालिबान का घोषित मकसद इस्लामी अमीरात की फिर से स्थापना है। साझा बयान पर अफगानिस्तान मसले से जुड़े चार प्रमुख पक्षों- अमेरिका, रूस, चीन और पाकिस्तान ने दस्तखत किए। इसमें कहा गया, ‘हम अफगानिस्तान में इस्लामी अमीरात की बहाली का समर्थन नहीं करते हैं।’ बयान में शांति की अफगान जनता की इच्छा को रेखांकित किया गया और सभी पक्षों से हिंसा रोकने की अपील की गई। खासकर तालिबान से अपील की गई कि वह नए हमले ना करे।
बयान पर दस्तखत करने वाले सभी पक्षों ने ‘महिला, बच्चों, युद्ध पीड़ितों और अल्पसंख्यकों समेत अफगानिस्तान के सभी लोगों के अधिकारों की रक्षा’ के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई। गौरतलब है कि तालिबान महिलाओं और अल्पसंख्यकों के मामले में इस्लामी कायदों को लागू करना चाहता है। इन मुद्दों पर उसका अफगानिस्तान की मौजूदा सरकार और देश के अल्पसंख्यक समूहों से गहरा मतभेद है। इन्हीं कारणों से अफगान शांति वार्ता में प्रगति रुकी रही है।
पिछले साल फरवरी में दोहा में अमेरिका और तालिबान के बीच समझौता हुआ था। लेकिन उसके बाद अफगानिस्तान में हिंसा और बढ़ गई। इसकी वजह यही मानी गई है कि राष्ट्रपति अशरफ गनी की सरकार तालिबान के एजेंडे पर राजी नहीं है। अफगानिस्तान में हित रखने वाले दूसरे पक्ष भी यहां कट्टरपंथी इस्लामी व्यवस्था की वापसी नहीं चाहते हैं। इसकी प्रतिक्रिया में तालिबान ने हिंसा तेज कर रखी है।
संयुक्त राष्ट्र अफगानिस्तान सहायता मिशन (यूएनएएमए) की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सितंबर में शांति वार्ता की शुरुआत के बाद से मारे जाने वाले नागरिकों की संख्या में काफी बढ़ोतरी हुई है। 2020 में देश में हिंसक हमलों के कारण 3,035 नागरिक मारे गए, जबकि 5,785 जख्मी हो गए। इसके पहले 2013 से 2019 तक लगातार हिंसक घटनाओं में गिरावट आई थी। संयुक्त राष्ट्र महासचिव के अफगानिस्तान के लिए विशेष प्रतिनिधि देबोराह लियोन्स ने इस रिपोर्ट में अपनी टिप्पणी में कहा है- ‘2020 अफगानिस्तान में शांति का वर्ष हो सकता था। लेकिन हजारों अफगान नागरिक लड़ाई के कारण मारे गए।’ ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मारे गए कुल लोगों में 43 फीसदी महिलाएं और बच्चे थे।
अफगान शांति वार्ता 12 सितंबर को अफगान सरकार और तालिबान के बीच कतर में शुरू हुई थी। लेकिन इससे हिंसा घटने के बजाय और बढ़ गई। इसे देखते हुए मास्को सम्मेलन के बाद जारी साझा बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अफगानिस्तान में स्थायी शांति लाने के प्रयासों में योगदान देने का अनुरोध किया गया है। मास्को में चर्चा की शुरुआत करते हुए रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने सर्दी खत्म होने के बाद हिंसा और बढ़ने का अंदेशा जताया। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में ऐसा होने का अनुभव रहा है और अब हम फिर इसकी शुरुआत देख रहे हैं।
इस बीच अफगानिस्तान की वेबसाइट तोलोन्यूज.कॉम ने खबर दी है कि अफगानिस्तान में शांति की संभावना अब भी दूर नजर आने के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति अब एक मई तक सभी अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के कार्यक्रम को टालने पर विचार कर रहे हैं। वे इस समयसीमा को कम से कम अगले एक नवंबर तक बढ़ा देंगे। इस बीच अफगानिस्तान में सभी पक्षों के बीच सहमति कायम करने की कोशिशें जारी रखी जाएंगी।

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