अमेरिका अपने सहयोगी देशों के नेताओं की जासूसी करता है, ये बात 2013 से चर्चा में है। लेकिन एक ताजा खुलासा ऐसे वक्त पर हुआ है, जब डोनाल्ड ट्रंप काल में यूरोपीय देशों से अमेरिका के बिगड़े रिश्तों को मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडन सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। जानकारों का कहन है कि ताजा खुलासे से बाइडन प्रशासन का काम मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि यूरोप में अमेरिकी इरादों को लेकर कड़वाहट और बढ़ेगी। ताजा मामला इसलिए भी ज्यादा पेचीदा है, क्योंकि एक यूरोपीय देश ने इस जासूसी में अमेरिका की मदद की। इससे यूरोपीय देशों में आपसी अविश्वास भी गहरा सकता है।
जर्मनी की सरकारी प्रसारण संस्था डायचेवेले के मुताबिक डेनमार्क की खुफिया एजेंसी- एफई ने जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और जर्मन राष्ट्रपति फ्रैंक-वाल्टर स्टीनमियर की जासूसी करने में अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनएसए) की मदद की। डायचेवेले ने ध्यान दिलाया है कि 2013 में जब जासूसी की बात सामने आई थी, तब ऐसा एनएसए के लिए काम करने वाले कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारी एडवर्डन स्नोडेन की तरफ से जारी दस्तावेजों से हुआ था। इस बार यूरोपीय पत्रकारों ने अपनी खोजी रिपोर्ट से इस बात को बेनकाब किया है। इस जासूसी में डेनमार्क का नाम सामने का मतलब यह है कि जर्मनी के इस निकट सहयोगी और पड़ोसी देश ने उसके चांसलर और राष्ट्रपति के बारे में गोपनीय जानकारी जुटाने में अमेरिका की मदद की।
ताजा खुलासे के मुताबिक राष्ट्रपति चुनाव में उम्मीदवार रहे सोशलिस्ट पार्टी (एसपीडी) के नेता पियर स्टीनब्रुक की भी जासूसी ने एफई और एनएसए ने की। एफई के सूत्रों ने इस बारे में दस्तावेज डेनमार्क, स्वीडन और नॉर्वे की प्रसारण संस्थाओं- डीआर, एसवीटी और एनआरके के साथ-साथ फ्रेंच अखबार ला मोंद और जर्मन अखबारों सुड्युटशे जेइतुंग और प्रसारण संस्थानों एनडीआर और डब्लूडीआर के पत्रकारों की टीम को मुहैया कराए। ये खबर छपने के बाद स्टीनब्रुक ने कहा कि राजनीतिक रूप से यह एक घोटाला है। जर्मन चांसलर और राष्ट्रपति ने इस बारे में तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। मैर्केल के प्रवक्ता ने बताया कि चांसलर को इस खुलासे के बारे में सूचना दे दी गई है। राष्ट्रपति स्टीनमियर की तरफ से भी तुरंत कोई प्रतिक्रिया नहीं आई।
खुलासे के मुताबिक डेनमार्क की सरकार अपनी खुफिया एजेंसी एफई और एनएसए के बीच चल रही मिलीभगत के बारे में वाकिफ थी। एफई और एनएसए इस साझा कार्रवाई में 2012 से शामिल रहे। एडवर्ड स्नोडेन की खुलासे से भी ये बात सामने आई थी। तब यह भी सामने आया था कि एफई ने स्वीडन, नॉर्वे, नीदरलैंड्स और फ्रांस के नेताओं के बारे में गोपनीय जानकारी जुटाने में भी एनएसए की मदद की है। लेकिन शुरुआती चर्चा के बाद इस मामले को तब दबा दिया गया था।
अब सामने आया है कि डेनमार्क की खुफिया एजेंसी ने अपने देश के विदेश मंत्री और वित्त मंत्री के साथ-साथ डेनमार्क की एक हथियार निर्माता कंपनी के बारे में भी गुप्त सूचनाएं एनएसए को मुहैया कराईं। अब डेनमार्क के खुफिया सेवा विशेषज्ञ थॉमस वेगनर ने कहा है कि जब एफई के सामने यह फैसला करने का सवाल आया कि उसे दुनिया में किसी सहयोगी देश के साथ अधिक निकट संबंध रखने हैं, तो उसने यूरोपीय पड़ोसियों के खिलाफ अमेरिका के साथ खड़े होने का फैसला किया।
साल 2013 में एनएसए की जासूसी के खुलासे के बाद जांच के लिए बनी संसदीय समिति के सदस्य रह चुके पैट्रिक सेन्सबर्ग ने कहा है कि उन्हें ताजा खबर से कोई हैरत नहीं हुई है। मैर्केल की क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन पार्टी के नेता सेन्सबर्ग ने कहा- “समझने की बात यह है कि जासूसी किस मकसद से कराई जाती है। इसका प्रेरक कारण दोस्ती या नैतिक आकांक्षाएं नहीं, बल्कि अपने स्वार्थ को आगे बढ़ाना होता है।”