एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

ISI की चाल को नहीं समझ पाई CIA, फलस्वरूप अमेरिका को अफगानिस्तान से वापस लौटना पड़ा उल्टे पांव – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद से अमेरिकी राष्टपति जो बाइडेन की आलोचना की जा रही है। एक्सपर्ट्स कह रहे हैं कि बाइडेन ने अफगानिस्तान के लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया है। इस सबके बीच अमेरिका के अफगानिस्तान छोड़ने से पाकिस्तान उत्साहित है लेकिन आधिकारिक बयानों में पाकिस्तान का कहना है कि वह अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करता है। लेकिन अगर दुनिया में कहीं तालिबान की जीत का स्वागत हुआ है तो वह पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद ही है। पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने ‘गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने’ के लिए अफगानों की तारीफ की है। सोशल मीडिया पर कई रिटायर्ड जनरलों और आम लोगों ने भी इसे इस्लाम की जीत बताया। ये अलग बात है कि हारी हुई अफगान सरकार भी इस्लामिक गणतंत्र थी।

आईएसआई के खेल में फंस गया अमेरिका, अफगानिस्तान से उल्टे पांव दौड़ा
वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट मुताबिक पाकिस्तान के लोग 2014 का एक वीडियो क्लिप शेयर कर रहे हैं जिसमें खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व प्रमुख हामिद गुल कहते हुए नजर आते हैं, ‘जब इतिहास लिखा जाएगा तो यह कहा जाएगा कि आईएसआई ने अमेरिका की मदद से अफगानिस्तान में सोवियत संघ को हरा दिया। इसके बाद एक और लाइन होगी। आईएसआई ने अमेरिका की मदद से अमेरिका को हरा दिया।’

साल 2002 से 2018 के बीच अमेरिका ने पाकिस्तान को 33 बिलियन डॉलर से अधिक की सहायता दी। इसमें तथाकथित गठबंधन सहायता कोष में करीब 14.6 बिलियन डॉलर की मदद भी शामिल है। बाद के दिनों में डॉनल्ड ट्रंप ने करीब-करीब सभी मिलिट्री सहायता बंद कर दी। इससे पहले ओबामा सरकार ने भी सहायता में कमी की थी। ये वही दौर था जब पाकिस्तान चोरी-छिपे तालिबान को शेल्टर, ट्रेनिंग और हथियार देकर अफगानिस्तान में अमेरिका के प्लान्स को नाकाम कर रहा था।

पाकिस्तान को नियंत्रित न करने से मिली हार
अमेरिकी जॉइंट चीफ ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष के पूर्व सलाहकार सारा चायेस बताते हैं कि यदि आप युद्ध जीतना चाहते थे, तो आपको पाकिस्तान पर नकेल कसनी थी। अगर आप अफगानिस्तान में ऑपरेशन करना चाहते हैं तो आपको पाकिस्तान को शांत करना होगा। तालिबान की जीत पाकिस्तान की सालों पुरानी लड़ाई की जीत है। लेकिन यह जीत पाकिस्तान को संतुष्ट नहीं करेगा।

यह उनकी भूख को और बढ़ा सकता है। अगर संगीत से नफरत करने वाले, वेस्ट विरोधी, शिया विरोधी, महिला विरोधी ताकतें काबुल में सत्ता हथिया सकते हैं तो वह इस्लामाबाद में ऐसा क्यों नहीं कर सकते? पाकिस्तानी जिहादी समूह तहरीक-ए-तालिबान के लड़ाके पहले से ही पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ हैं।

पाकिस्तान, अफगानिस्तान से महत्वपूर्ण या खतरनाक?
पूर्व पाकिस्तानी सीनेटर अफरासियाब खट्टक वॉल स्ट्रीट जर्नल से बताते हैं कि पाकिस्तान में 36 हजार से अधिक मदरसे हैं। इसमें से अधिक मदरसे धार्मिक हैं और कई आतंकी भी हैं। तालिबान को जन्म देने वाली वही जगहें पाकिस्तान में भी ऐसे लोगों को पैदा कर रही है। ये लोग काबुल के बाद इस्लामाबाद की लड़ाई भी लड़ेंगे।

रिपोर्ट बताती है कि 2009 की शुरुआत में जब तत्कालीन अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने सीमा पार तालिबान के सुरक्षित ठिकानों पर नकेल कसने के लिए उप-राष्ट्रपति जो बाइडेन पर दबाव डाला था बाइडेन ने कथित तौर पर उन्हें फटकारते हुए कहा था कि, ‘अमेरिका के लिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान से 50 गुना अधिक महत्वपूर्ण है।’ अब राष्ट्रपति के रूप में बाइडेन ने शायद समझा हो कि पाकिस्तान, अमेरिका सहित पूरी दुनिया के लिए 50 गुना से भी अधिक खतरनाक है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *