एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

ISIS(K) और उईगर मुस्लिम समर्थक लड़ाकों के गठजोड़ से क्यों घबराया है चीन ? – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)

तालिबान अब अफगानिस्तान पर काबिज हो चुका है। सिर्फ सरकार का गठन होना बाकि है। 31 अगस्त को अमेरिकी सेना भी यहां से कूच कर जाएगी और देश की पूरी जिम्मेदारी सुन्नी पश्तूनी इस्लामिक तालिबान पर आ जाएगी। चीन भले ही अमेरिका और रूस की तरह अफगानिस्तान में सेना तैनात नहीं करेगा, लेकिन यह अपने नए दोस्त तालिबान की मदद से अपने यहां उठ रहीं विद्रोह की आवाजों को जरूर दबाना चाहेगा।

चीन में उइगर मुस्लिमों की हालत दुनिया को पता है। ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट (ETIM) के 500 लड़ाके उइगरों को चीन के चंगुल से आजाद करने के लिए कोशिशें कर रहे हैं। ये लड़ाके अधिकतर चीन के बदकशन प्रांत में स्थित हैं। यह वाखन कॉरिडोर के जरिए शिंजियांग प्रांत से जुड़ता है।

पंजशीर की सेना में शामिल हो सकते हैं गैर-पश्तूनी लडृाके
हालांकि तालिबान का ETIM के साथ करीबी संबंध है, पश्तून दक्षिण में हैं और ताजिक, उज्बेक, हजारा, उइगर और चेचन जैसे अल्पसंख्यक समुदाय जो तालिबान में बड़ी संख्या में हैं, ये अफगानिस्तान के उत्तरी प्रांतों में हैं। अगर तालिबान ने अफगानी अल्पसंख्यकों को परेशान करना शुरू किया तो यहीं गैर-पश्तूनी लड़ाके भविष्य में पंजशीर में पहले से मौजूद तालिबान विरोधी सेना में शामिल हो सकते हैं।

ISKP से जुड़ सकते हैं चीन के उइगर समर्थक
अफगानिस्तान और तुर्की से मिली खुफिया जानकारी के मुताबिक, ETIM समूह आने वाले समय में अपनी वफादारी ISKP यानी खुरासान प्रांत के इस्लामिक स्टेट की तरफ मोड़ सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्हें डर है कि तालिबान उनके खिलाफ कार्रवाई कर सकता है और उन्हें चीन की खुफिया एजेंसी MSS के हवाले कर सकता है।

यही वजह है कि चीन चाहता है कि अमेरिका ETIM को आतंकी समूह घोषित कर दे। हालांकि जब अजहर-समूद को आतंकी घोषित करने की बात थी तो चीन ने तीन साल तक इसके समर्थन में वोट नहीं दिया था। तालिबान में चीन की दिलचस्पी का दूसरा कारण यह है कि चीन चाहता है तालिबान पाकिस्तान में सक्रिय तहरीक-ए-तालिबान के जरिए यह सुनिश्चित करे कि पाकिस्तान में CPEC प्रोजेक्ट शांति से पूरा हो सके।

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