सांकेतिक तस्वीर।
नई दिल्ली। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब वर्ष 1962 में क्यूबा मिसाइल संकट उत्पन्न हुआ तो दुनियां की दो महाशक्तियां रूस और अमेरिका आमने-सामने आ गए,और इधर भारत और चीन के बीच पहले से ही तनातनी चल रही थी। बस फिर क्या था चीन ने अनुमान लगाया कि इस समय अमेरिका और रूस क्यूबा को लेकर आपस में भिढ़े है ऐसे में ये दोनों देश भारत की मदद नहीं कर सकेंगे। फिर बिना देर किये चीन ने सुनहरा मौका देखते हुए भारत पर हमला कर दिया। जहां भारत ने तत्काल रूस से मदद मांगी तो रूस ने क्यूबा संकट का हवाला देते हुए मदद में असमर्थता जाहिर की। ऐसे में भारत ने अमेरिका की ओर मदद के लिए रूख किया तो, वाशिंग्टन फौरन मदद करने के लिए तैयार हो गया और अपना सबसे ताकतवर सातवां बेड़ा भारत की मदद में रवाना कर दिया और इसके साथ ही बीजिंग को संदेश दिया कि इस जंग में वह भारत के साथ है और वह बहुत जल्द मदद में आ रहा है। बस फिर क्या था चीन का दांव उल्टा पड़ गया यानि वह अमेरिका व रूस की तरफ से निश्चिंत था कि ये देश भारत की मदद नहीं कर सकेंगे। और बिना देर किये चीन ने 21 नवंबर 1962 को एकतरफा सीजफायर का ऐलान करते हुए जंग समाप्त कर दिया।
बताते चले कि अमेरिका ने अपने सबसे ताकतवर सातवें बेड़े का गठन 15 मार्च 1943 को ब्रिस्बेन ,ऑस्ट्रेलिया में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एडमिरल आर्थर एस. “चिप्स” बढ़ई की कमान में किया गया था । यह जनरल डगलस मैकआर्थर के तहत दक्षिण पश्चिम प्रशांत क्षेत्र (एसडब्ल्यूपीए) में कार्य करता था । सातवें बेड़े के कमांडर ने SWPA में मित्र देशों की नौसेना बलों के कमांडर के रूप में भी काम किया ।
जहां रॉयल ऑस्ट्रेलियन नेवी के अधिकांश जहाज भी 1943 से 1945 तक टास्क फोर्स 74 (पूर्व में एंज़ैक स्क्वाड्रन ) के हिस्से के रूप में बेड़े का हिस्सा थे । सेवेंथ फ्लीट— एडमिरल थॉमस सी. किंकेड के नेतृत्व में—अक्टूबर 1944 में इतिहास की सबसे बड़ी नौसैनिक लड़ाई , लेयट गल्फ की लड़ाई में मित्र देशों की सेना का एक बड़ा हिस्सा बना।
युद्ध की समाप्ति के बाद, 7वें बेड़े ने अपना मुख्यालय क़िंगदाओ ,चीन में स्थानांतरित कर दिया । जैसा कि 26 अगस्त 1945 के ऑपरेशन प्लान 13-45 में निर्धारित किया गया था, किनकैड ने पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में संचालन का प्रबंधन करने के लिए पांच प्रमुख टास्क फोर्स की स्थापना की टास्क फोर्स 71, उत्तरी चीन फोर्स 75 जहाजों के साथ; टास्क फोर्स 72, फास्ट कैरियर फोर्स ने तट पर जाने वाले मरीन को हवाई कवर प्रदान करने और ऑपरेशन का विरोध करने वाली किसी भी कम्युनिस्ट ताकतों को नाटकीय हवाई फ्लाईओवर से हतोत्साहित करने का निर्देश दिया, टास्क फोर्स 73, यांग्त्ज़ी पेट्रोल फोर्स अन्य 75 लड़ाकों के साथ टास्क फोर्स 74, दक्षिण चीन बल, ने उस क्षेत्र से जापानी और चीनी राष्ट्रवादी सैनिकों के परिवहन की रक्षा करने का आदेश दिया और टास्क फोर्स 78 , उभयचर बल, चीन को III समुद्री उभयचर कोर की आवाजाही के लिए आरोपित किया गया ।
युद्ध के बाद, 1 जनवरी 1947 को फ्लीट का नाम बदलकर नेवल फोर्सेज वेस्टर्न पैसिफिक कर दिया गया । वर्ष 1948 के अंत में,फ्लीट ने क़िंगदाओ से फिलीपींस तक अपने संचालन के प्रमुख आधार को स्थानांतरित कर दिया, जहां युद्ध के बाद नौसेना ने सुबिक बे में नई सुविधाएं और सांगली पॉइंट पर एक हवाई क्षेत्र विकसित किया था । सातवीं फ्लीट के शांतिकाल के संचालन कमांडर इन चीफ पैसिफिक फ्लीट, एडमिरल आर्थर डब्ल्यू रेडफोर्ड के नियंत्रण में थे , लेकिन स्थायी आदेश प्रदान किए गए थे।
19 अगस्त 1949 को बल को संयुक्त राज्य अमेरिका के सातवें कार्य बेड़े के रूप में नामित किया गया था । 11 फरवरी 1950 को, कोरियाई युद्ध के ठीक पहले, बल ने संयुक्त राज्य अमेरिका के सातवें बेड़े का नाम ग्रहण किया , जो आज भी उसके पास है।
जब कोरियाई युध्द शुरू हुआ तो सातवें बेड़े की इकाइयों ने कोरियाई और वियतनामी युद्धों के सभी प्रमुख अभियानों में भाग लिया । युद्ध में इस्तेमाल किया गया पहला नौसेना जेट विमान 3 जुलाई 1950 को टास्क फोर्स 77 (TF 77) विमानवाहक पोत से लॉन्च किया गया था । इंचोन, कोरिया में लैंडिंग सातवें बेड़े के उभयचर जहाजों द्वारा की गई थी। युद्धपोत आयोवा , न्यू जर्सी , मिसौरी और विस्कॉन्सिन सभी ने कोरियाई युद्ध के दौरान कमांडर, यूएस सेवेंथ फ्लीट के लिए फ़्लैगशिप के रूप में कार्य किया । कोरियाई युद्ध के दौरान, सातवें बेड़े में टास्क फोर्स 70, फ्लीट एयर विंग वन और फ्लीट एयर विंग सिक्स, टास्क फोर्स 72, फॉर्मोसा पेट्रोल, टास्क फोर्स 77, और टास्क फोर्स 79, एक सेवा समर्थन द्वारा प्रदान की गई एक समुद्री गश्ती बल शामिल था। स्क्वाड्रन
अगले दशक में सातवें बेड़े ने कई संकट स्थितियों का जवाब दिया, जिसमें 1959 में लाओस और 1962 में थाईलैंड में आकस्मिक ऑपरेशन शामिल थे। सितंबर 1959 के दौरान, 1960 की शरद ऋतु में, और फिर जनवरी 1961 में, सातवें बेड़े ने मल्टीशिप कैरियर टास्क फोर्स को तैनात किया। दक्षिण सागर। हालांकि पाथेट लाओ और उत्तरी वियतनामी सहायक बल प्रत्येक संकट में पीछे हट गए, वर्ष 1961 के वसंत में उनका आक्रमण अमेरिकी समर्थक रॉयल लाओ सेना पर भारी पड़ने के कगार पर दिखाई दिया ।
एक बार फिर बेड़ा दक्षिण पूर्व एशिया के समुद्र में चला गया। अप्रैल 1961 के अंत तक, लाओस में संचालन शुरू करने की तैयारी के लिए अधिकांश सातवें बेड़े को इंडोचाइनीज प्रायद्वीप से तैनात किया गया था। बल में कोरल सागर और मिडवे वाहक युद्ध समूह, एंटीसबमरीन सपोर्ट कैरियर केयरसर्ज , एक हेलीकॉप्टर वाहक, उभयचर जहाजों के तीन समूह, दो पनडुब्बियां और तीन समुद्री बटालियन लैंडिंग दल शामिल थे। उसी समय, तट पर स्थित हवाई गश्ती स्क्वाड्रन और अन्य तीन समुद्री बटालियन लैंडिंग दल ओकिनावा और फिलीपींस में तैरते हुए बल का समर्थन करने के लिए तैयार थे। हालांकि राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी के प्रशासन ने लाओटियन सरकार को बचाने के लिए अमेरिकी हस्तक्षेप के खिलाफ पहले ही फैसला कर लिया था, लेकिन कम्युनिस्ट ताकतों ने अपनी प्रगति रोक दी और बातचीत के लिए सहमत हो गए। प्रतिस्पर्धी लाओटियन गुटों ने 8 मई 1961 को संघर्ष विराम का समापन किया, लेकिन यह केवल एक वर्ष तक हीं चला।
वहीं,वर्ष 1962 में जब रूस और अमेरिका क्यूबा संकट में आपस में भिढ़े हुए थे तो मौके की नजाकत भांपते हुए चीन ने भारत पर हमला बोला था तो उस समय रूस ने यह कहते हुए भारत की मदद करने से इंकार कर दिया था कि एक तरफ भाई यानि चीन है और दूसरे तरफ दोस्त यानि भारत है इसलिए वो किसी भी पक्ष से किसी की भी मदद नहीं कर सकता तब अमेरिका ने भारत के अनुरोध पर अपने इसी सातवें बेड़े को भारत की मदद करने के लिए भेजा और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति ने चीन को संदेशा भेजा कि वह भारत की मदद में आ रहे हैं तब चीन घबराकर तुरंत 21 नवंबर को सीज फायर का ऐलान कर दिया,लेकिन यहीं सातवां बेड़ा वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान की जंग में पाकिस्तान के तरफ से भारत के खिलाफ हमला करने के लिए चला तो रास्ते में रूसी पनडुब्बीयो ने इस सातवें बेड़े को रोककर वापस लौटने पर मजबूर कर दिया था।
फिलहाल,अमेरिका का यह बेड़ा कालांतर में दुनियां के कई देशों में अपने विभिन्न सैन्य अभियानों को सफलतापूर्वक पूरा करने में बड़ी उपलब्धि हासिल किया। और अमेरिका के इस बेड़े का आज भी कोई मुकाबला नहीं है। यही वजह थी कि चीन ने बिना देर किये भारत के खिलाफ जारी लड़ाई को तत्काल बंद कर दिया था। इतना ही नहीं वर्ष 1996 में जब ताइवान संकट पैदा हुआ था तो उस समय भी यह अमेरिकी बेड़ा ताइवान के साथ खड़ा रहा और आज जब एक बार फिर ताइवान संकट चरम पर है तो अमेरिका का यह बेड़ा फिर से मैदान-ए-जंग में मौजूद है।