
सांकेतिक तस्वीर।
नई दिल्ली। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के हत्याकांड की जांच के लिए तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई स्पेशल जांच एजेंसी को अब भंग कर दिया है। बता दे कि यह मल्टी डिसीप्लीनरी मॉनिटरिंग एजेंसी (MDMA) राजीव गांधी की हत्या के पीछे किसी बड़ी साजिश की जांच के लिए बनाई गई थी। इसे 1988 में जैन आयोग की सिफारिश पर बनाया गया था।
दरअसल,यह स्पेशल ऐजेंसी पिछले 24 साल से CBI के लीडरशिप में राजीव गांधी हत्या की जांच कर रही थी,इसमें कई केंद्रीय सुरक्षा ऐजेंसियों के अफसर भी शामिल रहे। जहां इस ऐजेंसी को इसी साल मई में भंग करने का आदेश जारी कर दिया गया था। हालांकि,अब इस मामले में आगे की जांच CBI की एक स्पेशल यूनिट करेगी।
बता दे कि राजीव गांधी की हत्या तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में 21 मई 1991 को हुई थी। उन पर लिट्टे कार्यकर्ता धनु ने आत्मघाती हमला किया था। केस की जांच के लिए गठित जैन आयोग ने 1998 में हत्या के पीछे विदेशी साजिश की जांच के लिए स्पेशल एजेंसी बनाने की सिफारिश की थी। शुरुआत में दो साल के लिए बनी MDMA को अब तक हर साल एक्सटेंशन दिया जा रहा था, लेकिन यह केस से जुड़ी कोई बड़ी कामयाबी हासिल करने में नाकाम रहा।
इतना ही नहीं इस ऐजेंसी को DIG रैंक के अफसर लीड कर रहे थे। जहां पर हत्या से जुड़े लोगों के बैंकिंग लेनदेन और कनेक्शन्स की जानकारी हासिल करने के लिए श्रीलंका, यूनाइटेड किंगडम और मलेशिया जैसे देशों को 24 लेटर भेजे थे। ऐजेंसी को इनमें से 20 से ज्यादा के जवाब भी मिल चुके थे।
लेकिन शुरू से लेकर अभी तक इस पूरे घटनाक्रम के लिए सिर्फ “लिट्टे” संगठन को ही जिम्मेदार माना गया है। चूंकि, राजीव गांधी ने अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल में श्रीलंका में शांति सेना भेजी थी, जिससे तमिल विद्रोही संगठन लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) उनसे नाराज चल रहा था। 1991 में जब लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार करने राजीव गांधी चेन्नई के पास श्रीपेरम्बदूर गए तो वहां लिट्टे ने एक सीक्रेट मिशन के तहत राजीव पर आत्मघाती हमला करवाया,जिसमें उनकी जान चली गई थी।
हालांकि,इस घटना में शामिल तमाम आरोपियों को जांच की शुरुआत में ही गिरफ्तार कर लिया गया था। जिनमें राजीव गांधी की हत्या के मामले में ट्रायल कोर्ट ने साजिश में शामिल 26 दोषियों को मृत्युदंड दिया था। जहां मई 1999 में सुप्रीम कोर्ट ने 19 लोगों को बरी कर दिया। बचे हुए सात में से चार आरोपियों (नलिनी, मुरुगन उर्फ श्रीहरन, संथन और पेरारिवलन) को मृत्युदंड सुनाया और बाकी (रविचंद्रन, रॉबर्ट पायस और जयकुमार) को उम्रकैद। चारों की दया याचिका पर तमिलनाडु के राज्यपाल ने नलिनी की मृत्युदंड को उम्रकैद में बदला। बाकी आरोपियों की दया याचिका 2011 में राष्ट्रपति ने ठुकरा दी।
