पिछले साल कोरोना महामारी की भारी मार के बावजूद दुनियाभर के देशों का परमाणु हथियारों पर होने वाला खर्च नहीं घटा। बल्कि कुछ देशों ने इस मद में पहले से भी ज्यादा खर्च किया। अमेरिका ने पिछले साल अपने परमाणु हथियारों पर 37.4 अरब डॉलर खर्च किए। अमेरिका ने जो सैन्य खर्च किया, उसका लगभग 50 फीसदी हिस्सा उन प्राइवेट कंपनियों की जेब में गया, जिन्हें सरकारी ठेका मिला हुआ है। 13.7 अरब डॉलर की रकम प्राइवेट सेक्टर की कंपनी नॉर्थरॉप ग्रुनमान को दी गई। ये कंपनी अंतर-महाद्वीपीय परमाणु अस्त्र प्रणाली विकसित करने में जुटी हुई है।
परमाणु हथियारों के खिलाफ काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था- इंटरनेशनल कैंपेन टू एबॉलिश न्यूक्लीयर वीपनन्स (आईकैन) की ताजा रिपोर्ट से ये जानकारियां सामने आई हैं। इसके मुताबिक दुनिया के परमाणु हथियार से संपन्न सभी देशों ने मिल कर 2020 में इन हथियारों पर 72.6 अरब डॉलर खर्च किए। इसका मतलब है कि कुल खर्च का आधे से भी ज्यादा हिस्सा अमेरिका ने व्यय किया। 2020 में हुआ दुनिया का कुल खर्च 2019 के खर्च से 1.4 अरब डॉलर ज्यादा है। अमेरिका के अलावा परमाणु हथियारों पर खर्च करने देश में चीन ने 10.1 अरब डॉलर, रूस ने 8 अरब डॉलर, और ब्रिटेन ने 6.2 डॉलर की रकम इस मद में खर्च की।
आईकैन की रिपोर्ट में फ्रांस, भारत, इजराइल, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के खर्च का भी जिक्र है। इस रिपोर्ट के मुताबिक इन तमाम देशों ने मिल कर प्रति मिनट एक लाख 37 हजार डॉलर अपने परमाणु हथियारों पर खर्च किए। इस अभियान की प्रबंध निदेशक सुसी स्नाइडर ने अमेरिकी वेबसाइट दइनटरसेप्ट.कॉम से कहा कि देश जितनी रकम परमाणु हथियारों पर खर्च करते हैं, उसे वे सार्वजनिक नहीं करते। इसलिए हमेशा ही ये माना जाता है कि जितनी रकम बताई गई है, असल खर्च उससे ज्यादा है। स्नाइडर ने कहा कि अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन की सरकारें हमेशा इस मामले में पारदर्शिता बरतने पर जोर देती हैं, लेकिन वे खुद इसका पालन नहीं करतीं।
ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि अब 20 से ज्यादा ऐसी प्राइवेट सेक्टर की कंपनियां हैं, जिन्हें अलग-अलग देशों की सरकारों ने परमाणु हथियार विकसित करने के ठेके दे रखे हैं। 11 पश्चिमी देशों की इन कंपनियों को 27.7 अरब डॉलर के नए ठेके मिले हैं। इन कंपनियों में नॉर्थरॉप ग्रुनमान के अलावा लॉकहीड मार्टिन, रेयथियन टेक्नोलॉजीज और चार्ल्स ड्रेपर लेबोरेटरी शामिल हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अब सरकारें लगातार प्राइवेट सेक्टर की कंपनियों को अधिक से अधिक रकम के ठेके दे रही हैं। उधर ये कंपनियां उन्हें मिली रकम का एक बड़ा हिस्सा नीति निर्माताओं के बीच लॉबिंग पर खर्च कर रही हैं। पिछले साल लॉबिंग पर दस करोड़ डॉलर खर्च किए गए। आम तौर पर लॉबिंग का मकसद परमाणु हथियारों के लिए सरकारी बजट बढ़वाना होता है।
रिपोर्ट में ऐसी कई मिसालों का जिक्र है, जिनमें बताया गया है कि कंपनियों ने थिंक टैंक्स को भारी चंदा दिया। उन थिंक टैक्स के अध्ययनों में राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत करने के लिए विभिन्न प्रकार के परमाणु हथियार विकसित करने की जरूरत बताई गई। मसलन, अमेरिकी थिंक टैंक एटलांटिक काउंसिल की एक रिपोर्ट में रूस का मुकाबला करने के लिए छोटी क्षमता वाले परमाणु हथियार विकसित करने का सुझाव दिया गया। इस संस्था को 2019 में 17 लाख डॉलर का चंदा हथियार कंपनियों ने दिया था।