एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

अफगानिस्तान से अमरीकी फौज वापसी से चीन असमंजस में, नफा-नुकसान का आंकलन नहीं कर पा रहा है चीन – हेमंत सिंह (स्पेशल एडिटर )

अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के एलान से चीन बड़ी दुविधा में है। यह उसके अलग-अलग बयानों से जाहिर हुआ है। इसी हफ्ते मध्य एशियाई देशों के फोरम को संबोधित करते हुए चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि चीन अफगानिस्तान से विदेशी फौज की वापसी का स्वागत करता है। साथ ही वह अफगानिस्तान में स्थिरता और विकास के लिए अपनी भूमिका निभाने के लिए तैयार है। लेकिन इसके कुछ ही रोज पहले चीन विदेश मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने अमेरिकी सैनिकों की पूरी वापसी के एलान की आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि इस घोषणा के कारण अफगानिस्तान में हमले बढ़ गए, इससे अस्थिरता पैदा हुई है, और आम लोगों की सुरक्षा खतरे में पड़ी है।
विश्लेषकों का कहना है कि ये बयान यह जाहिर करते हैं कि एक तरफ अमेरिकी और नाटो सैनिकों की वापसी में चीन को अफगानिस्तान में अपने लिए अवसर नजर आ रहे हैं, लेकिन वह वहां गृह युद्ध तेज होने और उथल-पुथल मचने की आशंका से चिंतित भी है। विश्लेषकों के मुताबिक आम तौर पर चीन कहीं भी विदेशी दखल का विरोध करता है। लेकिन 2001 में अफगानिस्तान पर अमेरिका के नेतृत्व में हुआ हमला अपवाद रहा। तब उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में उस प्रस्ताव का समर्थन किया था, जिसमें अल-कायदा को पनाह देने के लिए तालिबान की निंदा की गई और अफगानिस्तान में नई सरकार बनाने का आह्वान किया गया था।
अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन के एक विश्लेषण के मुताबिक तब चीन की ये समझ थी कि उसकी सीमा से लगे अफगानिस्तान में तालिबान अस्थिरता का स्रोत है। तब चीन के शिनजियांग प्रांत में उइघुर मुस्लिम चरमपंथियों की गतिविधियां तेज थी। 1990 और साल 2000 के दशकों में इन चरमपंथियों ने चीन में कई आतंकवादी हमले किए थे। अब फिर चीन को अंदेशा है कि अफगानिस्तान में इस्लामी कट्टरपंथी तत्वों के मजबूत होने का असर शिनजियांग प्रांत पर पड़ सकता है।
इसी हफ्ते चीन के सैन्य विशेषज्ञ सॉन्ग झोंगपिंग ने चेतावनी दी थी कि अगर अफगानिस्तान में वहां की मौजूदा सरकार और तालिबान मिलकर अगली सरकार बनाने को तैयार हो जाते हैं, तो चीन को किसी भी परिस्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए। खबरों के मुताबिक नए पैदा होते हालात को देखते हुए चीन ने पाकिस्तान के साथ अपना सैन्य सहयोग बढ़ दिया है। अफगानिस्तान से जुड़ी सीमा के पास मौजूद ग्वादार बंदरगाह पर चीनी सैनिक तैनात किए गए हैं। अपुष्ट खबरों के मुताबिक चीन के सैनिक अफगानिस्तान भी मौजूद हैं।
वॉशिंगटन स्थित थिंक टैंक स्टिमसन सेंटर में चाइना प्रोग्राम के निदेशक युन सुन ने इस हफ्ते एक लेख में लिखा कि चीनी विशेषज्ञों की राय इस बारे में बंटी हुई है कि अमेरिकी फौज की वापसी से उनके लिए ज्यादा अवसर उपलब्ध होंगे या ज्यादा बड़ी चुनौतियां पैदा होंगी। अमेरिका जिस तरह अफगानिस्तान के मकड़जाल में उलझा रहा है, वह चीन को अपने माफिक लगता था। अब अगर अफगानिस्तान में अधिक अस्थिरता पैदा हुई, तो चीन को उस पर ध्यान लगाना होगा।
जानकारों के मुताबिक भारत के साथ जारी तनाव के कारण चीन को भारत से लगी नियंत्रण रेखा पर अपनी सेना की बड़ी तैनाती करनी पड़ी है। इसमें उसे काफी संसाधन झोंकने पड़ रहे हैं। ऐसे में अफगानिस्तान की चुनौती चीन को भारी पड़ सकती है। लेकिन वह इसे नजरअंदाज भी नहीं कर सकता। अफगानिस्तान में उथल-पुथल का सीधा असर उसकी महत्वाकांक्षी बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजना पर पड़ेगा। जानकारों के मुताबिक अगर अफगानिस्तान में अस्थिरता नियंत्रित रही, तो यह चीन के फायदे की बात होगी। तब बीआरआई के विस्तार के उसके सामने नए अवसर आएंगे। इसीलिए चीन इस असमंजस में फंसा है कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी को वह किस नजरिए से देखे।

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