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चीन का सीक्रेट आपरेशन हैं, म्यांमार तख्ता पलट की घटना – राजेंदर दूबे (स्पेशल एडिटर)

एक महिने पहले म्यांमार आर्मी चीफ का चीन के राजनयिक से मिलना और अब तख्तापलट हो जाना फिर संतुलित बयान जारी करना और तो और यू. एन. नो.में भी म्यांमार आर्मी चीफ के विरोध में वोट न करना यह सब साफ साफ अपने आप में बहुत कुछ बयां करता है ।
हाइलाइट्स:
म्यांमार में तख्तापलट पर चीन की ठंडी प्रतिक्रिया
पिछले महीने दोनों देशों के बीच हुई थी मुलाकात
राजनयिक वांग यी से मिले थे कमांडर इन चीफ
चीन ने म्यांमार में कर रखा है काफी निवेश

नेपीडॉ
लंबे वक्त से चल रही राजनीतिक उठापटक के बाद म्यांमार की सेना ने आखिरकार तख्तापलट करते हुए देश की शीर्ष नेता आंग सान सू ची समेत कई लोगों को हिरासत में ले लिया। एक ओर जहां दुनियाभर में इसकी निंदा हो रही है, चीन की भूमिका पर सवाल उठने लगे हैं। दरअसल, पिछले महीने ही चीन के राजनयिक वांग यी ने म्यांमार सेना के कमांडर इन चीफ मिन आंग लाइंग से मुलाकात की थी और अब तख्तापलट पर उसकी प्रतिक्रिया भी बेहद ठंडी रही है।

ठंडी प्रतिक्रिया पर शक
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा है, ‘म्यांमार में जो कुछ हुआ है, हमने उसका संज्ञान लिया है और हम हालात के बारे में सूचना जुटा रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘चीन, म्यांमार का मित्र और पड़ोसी देश है। हमें उम्मीद है कि म्यामां में सभी पक्ष संविधान और कानूनी ढांचे के तहत अपने मतभेदों को दूर करेंगे और राजनीतिक और सामाजिक स्थिरता बनाए रखनी चाहिए।’ चीन की इस प्रतिक्रिया को शक की नजरों से देखा जा रहा है।

चीन ने किया है काफी निवेश
दरअसल, चीन, म्यांमार का महत्वपूर्ण आर्थिक भागीदार है और उसने यहां खनन, आधारभूत संरचना और गैस पाइपलाइन परियोजनाओं में अरबों डॉलर का निवेश किया है। चीन ने म्यांमार में काफी निवेश किया है। पिछले साल राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब यहां दौरे पर आए थे तो 33 ज्ञापनों पर दस्तखत किए गए थे जिनमें से 13 इन्फ्रास्टक्चर से जुड़े थे। चीन ने देश की राजनीति में अहम भूमिका निभाई है और पिछली सैन्य तानाशाह सरकार में साथ भी रहा लेकिन आंग सान सू ची के आने के बाद उनके साथ भी चीन के संबंध अच्छे रहे।
सेना के स्वामित्व वाले ‘मयावाडी टीवी’ ने देश के संविधान के अनुच्छेद 417 का हवाला दिया जिसमें सेना को आपातकाल में सत्ता अपने हाथ में लेने की अनुमति हासिल है। प्रस्तोता ने कहा कि कोरोना वायरस का संकट और नवंबर चुनाव कराने में सरकार का विफल रहना ही आपातकाल के कारण हैं। सेना ने 2008 में संविधान तैयार किया और चार्टर के तहत उसने लोकतंत्र, नागरिक शासन की कीमत पर सत्ता अपने हाथ में रखने का प्रावधान किया। मानवाधिकार समूहों ने इस अनुच्छेद को ‘संभावित तख्तापलट की व्यवस्था’ करार दिया था। संविधान में कैबिनेट के मुख्य मंत्रालय और संसद में 25 फीसदी सीट सेना के लिए आरक्षित है, जिससे नागरिक सरकार की शक्ति सीमित रह जाती है और इसमें सेना के समर्थन के बगैर चार्टर में संशोधन से इनकार किया गया है।
कुछ विशेषज्ञों ने आश्चर्य जताया कि सेना अपनी शक्तिशाली यथास्थिति को क्यों पलटेगी लेकिन कुछ अन्य ने सीनियर जनरल मीन आउंग हलैंग की निकट भविष्य में सेवानिवृत्ति को इसका कारण बताया जो 2011 से सशस्त्र बलों के कमांडर हैं। म्यामांर के नागरिक और सैन्य संबंधों पर शोध करने वाले किम जोलीफे ने कहा, ‘इसकी वजह अंदरूनी सैन्य राजनीति है जो काफी अपारदर्शी है। यह उन समीकरणों की वजह से हो सकता है और हो सकता है कि यह अंदरूनी तख्तापलट हो और सेना के अंदर अपना प्रभुत्व कायम रखने का तरीका हो।’ सेना ने उपराष्ट्रपति मींट स्वे को एक वर्ष के लिए सरकार का प्रमुख बनाया है जो पहले सैन्य अधिकारी रह चुके हैं।
सू ची की पार्टी ने नवंबर में हुए संसदीय चुनाव में 476 सीटों में से 396 सीटों पर जीत हासिल की। केंद्रीय चुनाव आयोग ने परिणाम की पुष्टि की है। लेकिन चुनाव होने के कुछ समय बाद ही सेना ने दावा किया कि 314 शहरों में मतदाता सूची में लाखों गड़बड़ियां थीं जिससे मतदाताओं ने शायद कई बार मतदान किया या अन्य ‘चुनावी फर्जीवाड़े’ किए। जोलीफे ने कहा, ‘लेकिन उन्होंने उसका कोई सबूत नहीं दिखाया।’ चुनाव आयोग ने पिछले हफ्ते दावों से इंकार किया और कहा कि इन आरोपों के समर्थन में कोई सबूत नहीं है। चुनाव के बाद नई संसद के पहले ही दिन सेना ने तख्तापलट कर दिया। सू ची और अन्य सांसदों को पद की शपथ लेनी थी लेकिन उन्हें हिरासत में ले लिया गया। ‘मयावाडी टीवी’ पर बाद में घोषणा की गई कि सेना एक वर्ष का आपातकाल समाप्त होने के बाद जीतने वाले को सत्ता सौंप देगी।
देश में सुबह और दोपहर तक संचार सेवाएं ठप हो गईं। राजधानी में इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद हैं। देश के कई अन्य स्थानों पर भी इंटरनेट सेवाएं बाधित हैं। देश के सबसे बड़े शहर यांगून में कंटीले तार लगाकर सड़कों को जाम कर दिया गया और सिटी हिल जैसे सरकारी भवनों के बाहर सेना तैनात है। काफी संख्या में लोग एटीएम और खाद्य वेंडरों के पास पहुंचे और कुछ दुकानों एवं घरों से सू ची की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के निशान हटा दिए गए।
विश्व भर की सरकारों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने तख्तापलट की निंदा की है और कहा है कि म्यामां में सीमित लोकतांत्रिक सुधारों को इससे झटका लगा है। ह्यूमन राइट्स वाच की कानूनी सलाहकार लिंडा लखधीर ने कहा, ‘लोकतंत्र के रूप में वर्तमान म्यामां के लिए यह काफी बड़ा झटका है। विश्व मंच पर इसकी साख को बट्टा लग गया है।’ मानवाधिकार संगठनों ने आशंका जताई कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और सेना की आलोचना करने वालों पर कठोर कार्रवाई संभव है। अमेरिका के कई सीनेटरों और पूर्व राजनयिकों ने सेना की आलोचना करते हुए लोकतांत्रिक नेताओं को रिहा करने की मांग की है और जो बाइडन सरकार और दुनिया के अन्य देशों से म्यांमार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
म्यांमार में जारी राजनीतिक उठापटक पर पूरी दुनिया के साथ-साथ भारत की भी निगाहें टिकी हैं। खास इसलिए क्योंकि म्यांमार भारत का पड़ोसी देश है। वहां की राजनीतिक स्थिरता का असर दोनों देशों के संबंधों और सीमावर्ती क्षेत्रों की शांति पर पड़ सकता है। यही नहीं, म्यांमार की सीमा चीन से भी सटी है। इसलिए भी भारत के लिए म्यांमार की सरकार ज्यादा अहम हो जाती है। पहले से ही उत्तरपूर्व में म्यांमार से होकर उग्रवादी संगठन भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देते हैं जिनका संबंध चीन से होने की आशंका जाहिर की जाती रही है। यह भी कहा जाता है कि चीन और म्यांमार की सेनाओं के बीच संबंध अच्छे हैं। ऐसे में तत्पदौ के हाथ में देश की बागडोर होना भारत के लिए चिंता का विषय हो सकता है। खासकर तब जब लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक न सिर्फ दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण हालात हैं, बल्कि सेनाएं आमने-सामने आ चुकी हैं।

मुलाकात के बाद उठे सवाल
इस बारे में जब वांग से सवाल किया गया कि क्या मिन ने वांग यी से मुलाकात के दौरान तख्तापलट के संकेत दिए थे, तो उन्होंने साफ जवाब देने की जगह अपनी ही बात को दोहरा दिया। वहीं, पहले भी चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी अधिनायकवादी शासकों का समर्थन करती रही है। हालांकि, म्यांमार में चीनी मूल के अल्पसंख्यक समूहों और पहाड़ी सीमाओं के जरिए मादक पदार्थ के कारोबार के खिलाफ कार्रवाई करने के कारण कई बार रिश्तों में दूरियां भी आई हैं।

चीन को नहीं है चिंता?
थिंक टैंक चैटम हाउस की चंपा पटेल ने द गार्जियन को बताया है, ‘चीन तख्तापलट का स्वागत नहीं करेगा। चीन के सूची के साथ अच्छे संबंध हैं, खासकर तब जब रोहिंग्या संकट पर उनकी सरकार के रवैया की पश्चिमी देशों ने आलोचना की है।’ चीन और म्यांमार के बीच 2,100 किमी की सीमा है और यहां सरकार और अल्पसंख्यक विद्रोही गुटों के बीच संघर्ष चलता रहता है लेकिन चीन की सेना को इस बात की चिंता भी नहीं है कि म्यांमार की उथल-पुथल का असर उसके क्षेत्र में होगा।

नेपाल-पाकिस्तान की वजह से शक?
दूसरे देशों की राजनीति में दखल का चीन पर आरोप नया नहीं है। नेपाल की राजनीति में चीन का दखल जाहिर हो चुका है। यहां तक कि देश के अंदर राजनीतिक दलों ने भी इस पर सवाल किया है कि चीन की राजदूत हाओ यान्की राजनीति में जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप क्यों करती हैं। यहां तक कि देश की सत्ताधारी नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी में दोफाड़ के बीच यान्की ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी और ओली के प्रतिद्वंदी नेता पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’ से धड़ाधड़ मुलाकातें की थीं। वहीं, हाल ही में पाकिस्तानी सेना के एक जनरल ने दावा किया था कि चीन ने बलूचिस्तान आजादी आंदोलन को खत्म करने के लिए उन्हें पैसे दिए हैं।

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