नई दिल्ली/पोर्ट लुईस/माले: प्रसिद्ध कहावत है कि जिसका हिंद महासागर में प्रभाव है, उसी का एशिया में प्रभाव है। 20वीं सदी में यह महासागर सातों समुन्द्रों का आधारभूत है। विश्व के वैभव का निर्माण इसी के जल और थल से होगा। महान अल्फ्रेड थेयर ने हिंद महासागर को लेकर ये बात कही थी और हिन्द महासागर पर भारत का प्रभुत्व है मगर चीन की लालची निगाहें हिन्द महासागर पर टिकी हुई हैं। मोदी सरकार ने हिन्द महासागर में बड़ी लड़ाई बिना हथियार चलाए जीत ली है।
हिंद महासागर को लालची निगाहों से देखने वाले चीन को भारत ने ऐसा झटका दिया है जिसकी उम्मीद भी चीन ने नहीं की होगी। हिंद महासागर में चीनी प्रभाव को खत्म करने के लिए भारत ने दो देशों के साथ मिलकर विशाल समझौता किया है और इस समझौते के बाद अब हिंद महासागर में चीनी घुसपैठ करना बेहद मुश्किल हो गया है। हिंद महासागर में किसी भी तरह घुसने के लिए चीन श्रीलंका को साधने की कोशिश कर रहा है और इसीलिए चीन ने अपने एजेंट पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को श्रीलंका भेजा मगर इसी बीच भारत ने चीन की नाक के नीचे से दो देशों को खींचते हुए बड़ा समझौता किया है। भारत ने मालदीव और मॉरीशस के साथ दो स्ट्रांग मेरीटाइम डाइमेंशन रक्षा समझौते किए हैं। जो हिंद महासागर में भारत के लिहाज से बेहद अहम समझौते हैं।
हिंद महासागर में बड़ा कदम
हिंद महासागर में चीनी प्रभाव को खत्म करने के लिए दो देशों के साथ महत्वपूर्ण और विशाल समझौता किया है। विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने मालदीव और मॉरीशस के साथ मिलकर हिंद महासागर में दो रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। दरअसल, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर जानते हैं कि हिंद महासागर में घुसपैठ के लिए चीन कितना व्याकुल है और इसलिए चीन लगातार मालदीव पर रक्षा समझौता करने के लिए दबाव बना रहा था मगर इससे पहले की चीन मालदीव के साथ समझौता कर पाता, भारत ने पहले ही मालदीव के साथ समझौता कर चीनी चालबाजी को बड़ा झटका दिया है। इंडियन ओसियन रीजन यानि IOR से चीन को दूर रखने के दिशा में भारत का मालदीव और मॉरीशस के साथ बेहद महत्वपूर्ण समझौता माना जा रहा है।
हिंद महासागर में भारत की बड़ी उपलब्धि
दरअसल, भारत के लिए मालदीव और मॉरीशस के साथ ये समझौता बेहद महत्वपूर्ण था। ऐसा इसलिए क्योंकि इस समझौते के साथ ही भारत का मलक्का स्ट्रेट पर निर्भरता भी कम हो जाएगी जिसपर फिलहाल अमेरिका का प्रभुत्व है। इसके साथ ही चीन लगातार हिंद महासागर में मालदीव और मॉरीशस से समझौता करने की कोशिश में था ताकि किसी भी तरह से हिंद महासागर में कदम रखा जा सके। चीन एक समझौते के साथ एक तीर से दो निशाना लगाने की फिराक में था। अगर चीन भारत से पहले मालदीव और मॉरीशस के साथ समझौता करने में कामयाब हो जाता तो वो ना सिर्फ इंडियन ओसियन रीजन में कदम रखने में कामयाब हो जाता बल्कि हिंद महासागर में भारत के प्रभुत्व को कम करने में भी चीन कामयाब हो जाता। लेकिन, इस बार भारत ने चीन को चालाकी दिखाने का एक भी मौका नहीं दिया।
दरअसल, हिंद महासागर में काफी वक्त से चीन अपना प्रभाव बनाने की कोशिश में लगा हुआ है। लिहाजा चीन पहले ही म्यांमार के साथ क्युआकफ्यू बंदरगाह को लेकर समझौता कर भारत को बड़ा झटका दे चुका है। वहीं, चीन ने जब श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 सालों के लिए लीज पर लिया तो वो भारत के लिए अब तक का सबसे बड़ा झटका माना गया। वहीं, चीन अफ्रीका के जिबुती को भी अपने पाले में कर चुका है। क्योंकि, चीन इन तीनों बंदरगाहों के जरिए व्यापार शुरू करने की दिशा में है। और अगर एक बार हिंद महासागर में चीन मालिकाना हक के साथ व्यापार करना शुरू कर देता है तो फिर उसके लिए प्रभुत्व बनाना मुश्किल नहीं होगा।
मालदीव से बड़ा समुन्द्री समझौता
भारत सरकार ने मालदीव के साथ बड़ा समझौता किया है। इस समझौते के तहत भारत मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स कोस्ट गार्ड हार्बर सिफावारु-उथुरू थिलाफालु को विकसित करेगा। मालदीव के साथ भारत इंडियन ओसियन रीजन यानि आईओआर का ये समझौता चीन के लिहाज से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। मालदीव की राजधानी माले में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और मालदीव के रक्षामंत्री मारिया दीदी के बीच 50 मिलियन डॉलर का डिफेंस लाइन ऑफ क्रेडिट एग्रीमेंट साइन किया गया है। आपको बता दें कि भारत की तरफ से ‘लाइन्स ऑफ क्रेडिट’ के तहत मालदीव में आठ बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर पहले से ही काम चल रहा है। अप्रैल 2313 में मालदीव ने भारत को उसके द्वीपों और आर्थिक क्षेत्रों में नियंत्रण और निगरानी करने के लिए भारत सरकार से अपील की थी। जिसके बाद से अब भारत मालदीव के सभी द्वीपों और मालदीव के समुन्द्री रास्तों की निगरानी के लिए समझौता कर लिया गया है। यानि अब मालदीव के रास्ते चीन भारत आने की हिम्मत नहीं कर सकता है। मालदीव के द्वीपों और समुन्द्री मार्गों की रक्षा करने के साथ साथ भारत मालदीव में इन्फ्रास्ट्रक्चर का भी विकास करेगा। मालदीव के अंदर भारत सड़कों का विकास करेगा और आपातकालीन सुविधाओं का विकास करेगा। मालदीव में रडार सर्विस का विकास करने के साथ साथ सुरक्षा बलों को भारत की तरफ से ट्रेनिंग भी दी जाएगी।
मॉरीसस के साथ रक्षा समझौता
मॉरीशस नीले और सफेद सागर तटों के बीच बसा बेहद खूबसूरत देश है जिसका भारत के साथ काफी अच्छा संबंध रहा है। खासकर हिंद महासागर के लिहाज से मॉरीशस भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। लिहाजा चीन को हिंद महासागर से दूर रखने के लिए भारत ने मॉरीशस के साथ करार किया है। भारत और मॉरीसस के बीच राजधानी पोर्ट लुइस में 100 मिलियन डॉलर का डिफेंस लाइन ऑफ क्रेडिट समझौता किया गया है। यानि, अब मॉरीशस भारत से रक्षा उपकरण की खरीद कर सकता है। मॉरीसस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ के साथ बातचीत भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने 10 करोड़ डॉलर रक्षा कर्ज देने का प्रस्ताव दिया। इससे मॉरीशस को अपनी जरूरतों के लिए रक्षा संपदा खरीदने में मदद मिलेगी। इसके साथ ही दोनों देशों ने मॉरीशस की समुद्री निगरानी क्षमता में बढ़ोतरी के लिए डोर्नियर विमान और ध्रुव हेलिकॉप्टर खरीद सकता है या फिर लीज पर ले सकता है। इन दोनों विमान से मॉरीशस अपने समुन्द्री सीमा की निगरानी कर सकता है। इन समझौतों में सबसे महत्वपूर्ण बात ये थी कि भारत ने कहा है कि मॉरीशस की सुरक्षा की जिम्मेदारी करना भारत का काम है।
हिंद महासागर में भारत का प्रभाव
आज के दौर में हिन्द महासागर में अंतर्राष्ट्रीय महाशक्तियों के बीच नौसैन्य अड्डा बनाने की होड़ चल रही है। पहले भारत हिन्द महासागर को लेकर कोई खास समझौते नहीं करता था मगर अब हिन्द महासागर को लेकर स्थिति बदल गई है। SAGAR यानि सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीजन द्वारा अब भारत हिन्द महासागर की सुरक्षा और स्थिरता पर काफी जोर दे रहा है। इसके साथ ही भारत सागरमाला परियोजना पर भी काम कर रहा है और भारत ने ब्लू इकोनॉमी की तरफ अपना लक्ष्य बना रखा है। शपथ ग्रहण के बाद मोदी सरकार ने बिम्सटेक (BIMSTEC) देशों को शपथ ग्रहण में आमंत्रित किया था। साथ ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पहली विदेश यात्रा मालदीव को चुना था और अब प्रधानमंत्री मोदी की विदेश नीति अपना प्रभाव दिखा रही है।