इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

सीक्रेट आपरेशन का बड़ा दावा, चीन से भारत कई गुना अधिक ताकतवर – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)


सांकेतिक तस्वीर।

नई दिल्ली। वर्ष 1962 के दौरान चीन के साथ भारत के बीच हुए जंग और इस जंग में भारत को हुए नुकसानों के दृष्टिगत अक्सर भारत में जब भी चीन से सटे हुए सीमाई इलाकों से खबरें सामने आना शुरू होती है तो देश के तमाम लोग तमाम भारतीय मीडिया समूहों के माध्यम से चीनी हमलें का डरावना माहौल बनाना शुरू कर देते है, इतना ही नहीं तमाम तरह के रक्षा विषयों के इतर तमाम तरह के शिक्षा देते हुए भी दिखाई देते है जो कि सरासर देश विरोधी गतिविधियां है, जिससे दुश्मन का पक्ष मजबूत होता दिखता है।

जबकि हम ऐसे तमाम ऐतिहासिक तथ्यों को चाहे जानबूझकर अथवा अज्ञानता वश नजर अंदाज करते हैं जिसमें कि बेहद साफ है कि दुश्मन 62 के जंग के दौरान अमेरिकी दबाव के चलते एक तरफा सीजफायर किया था, जहां उसके बाद से ही नई दिल्ली चीन की सभी युद्धक रणनीतियों को काउंटर करने के लिए तब से लेकर अब तक लगातार अमेरिकी संपर्क में हैं, इतना ही नहीं चीन की तमाम आक्रमकताओं को तगड़ा झटका देने की नियत से वर्ष 2007 में क्वाड समूह को स्थापित किया गया था,जो कि ठीक नाटों सैन्य गठबंधन की तर्ज पर है, जहां इन क्वाड सदस्य देशों में आस्ट्रेलिया, अमेरिका, भारत के साथ साथ जापान भी शामिल हैं।

जिसे वर्ष 2017 से लगातार हाई लेवल पर उक्त सभी सदस्य देशों द्वारा सक्रिय व समय समय पर सफल संचालन भी किया जा रहा है। शायद यही कारण है कि चीन चाहकर भी इन क्वाड सदस्य देशों पर हमला नहीं कर पा रहा है। इतना ही नहीं चीन के उन दुश्मन देशों को भी अमेरिका लगातार तमाम तरह के सैन्य संसाधन व अन्य जरूरी सैन्य हथियारों की दशकों से आपूर्ति कर रहा है जो कि क्वाड सदस्य नहीं हैं, जिसमें ताइवान व फिलीपींस प्रमुख रूप से है।

ऐसे में अपने आप ही साबित हो जाता है कि हम दुश्मन से कितना अधिक ताकत रखते हैं, फिर भी भारतीय मीडिया में अक्सर चीन डर का माहौल दिखाया जाता रहा है, जो कि सरासर झूठा व भ्रामक तथा सत्य से परे है। बता दें कि 62 के जंग के बाद से लाईन आफ एक्चुअल कंट्रोल (चीनी सीमा)से कई बार चीनी तनाव की खबरें सामने आई, लेकिन कभी बड़ी जंग के रूप में विस्तारित नहीं हुआ, हमेशा इसे दोनों ही पक्षों की तरफ़ से स्थानीय तनाव करार देते हुए इसे मौके पर ही आंशिक भूल का हवाला देते हुए, वहीं पर ऐसे तनावों को समाप्त किया जाता रहा है।

हालांकि, इसके पीछे रूसी मदद को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है, क्योंकि, सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद से ही रूस और भारत के बीच बेहतरीन मैत्री पूर्ण संबंध रहे हैं जो कि आज तक बरकरार भी है, ऐसे में रूस कभी नहीं चाहेगा कि उसके मित्र देश (भारत) पर उसका दूसरा मित्र देश यानि चीन हमला करें, यही कारण है कि चीन बड़े युद्ध से कतराता रहा है, इतना ही अमेरिकी समर्थित तमाम देशों के साथ भी चीन का कई मुद्दों पर तनाव है लेकिन चीन की हिम्मत नहीं पड़ती कि वह युद्ध का आगाज करें। क्योंकि शीतयुद्ध में भी चीन कुछ कर नहीं सका, हालांकि माहौल बनाने में चीन अक्सर टाप पर रहा, लेकिन सिर्फ माहौल तक ही, इसलिए तमाम ऐसे उन तमाम भारतीयों को यह समझने और इसे अत्यंत ठोस तथ्यों के साथ प्रचारित करने की आवश्यकता है कि चीन अब हमसे दबता है न कि हम उससे, क्योंकि यह 62 वाला भारत नहीं है,यह आज का भारत है जो कि खुद तो तमाम महत्वपूर्ण सैन्य संसाधनों में बीस होने के साथ साथ क्वाड सदस्य देशों के भी महत्वपूर्ण सैन्य संसाधनों का लाभ ले रहा है जो कि जंग के वक्त दुश्मन को फ्रंट पर जमींदोज करने का प्रभावी माद्दा रखता है।

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