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अब अमेरिका तिब्बत में चीन की दादागिरी के खिलाफ दिया कड़ा संदेश -हेमंत सिंह (स्पेशल एडिटर)

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कार्यकाल के शुरुआत में ही यह साफ कर दिया है कि उनका प्रशासन चीन को लेकर किसी भी तरह से नरमी नहीं बरतेगा। अब बाइडेन प्रशासन ने कहा है कि चीनी सरकार की तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा का वारिस चुनने की प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। अमेरिका के इस रुख से यह साफ हो गया है कि वह तिब्बत को लेकर चीन की जिनपिंग सरकार को आराम से नहीं बैठने देगा।
14वें दलाई लामा 17 मई, 1959 को ल्हासा से भागे थे और वह उसके करीब एक साल बाद से अरुणाचल प्रदेश में शरण लेकर रह रहे हैं। दलाई लामा को शरण देने को भी 1962 के युद्ध में एक बड़ा कारण माना जाता है।
अमेरिका विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने रोजाना होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कहा, ‘हमारा मानना है कि चीन की सरकार की तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा का वारिस चुनने की प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। 25 साल से ज्यादा समय पहले पंचेन लामा के उत्तराधिकार की प्रक्रिया में बीजिंग का हस्तक्षेप, जिसमें पंचेन लामा को बचपन में गायब करना और फिर पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना सरकार द्वारा चुने गए उत्तराधिकारी को उनकी जगह देने की कोशिश करना धार्मिक स्वतंत्रता के घोर उल्लंघन को दर्शाता है।’
बता दें कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दिसंबर में एक कानून पर हस्ताक्षर किए थे, जिसमें तिब्बत में वाणिज्य दूतावास स्थापित करने और एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन बनाने की बात की गई है, ताकि यह सुनिश्चत किया जा सके कि अगले दलाई लामा को सिर्फ तिब्बती बौद्ध समुदाय चुने और इसमें चीन का कोई हस्तक्षेप नहीं हो। हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका के बयान के बावजूद चीन 14वें दलाई लामा के उत्तराधिकारी के चुनाव में हस्तक्षेप करेगा।

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