सांकेतिक तस्वीर।
नई दिल्ली/पुलवामा। फरवरी 2019 में कश्मीर के पुलवामा जिले में CRPF कानवाई पर हुए भीषण आत्मघाती हमले को लेकर देश का एक धड़ा आज भी संबंधित तथ्यों के इतर कुछ अलग हीं मानसिकता पाले हुए हैं, जिसका आधार तमाम राजनैतिक बयान व घटना से जुड़े वे कुछ अन्य सवाल है जिसका कि संतोषजनक जवाब आज भी किसी भी सरकारी अथवा गैर सरकारी ऐजेंसी द्वारा दिया नही गया है,यहीं कारण है कि अभी भी इस घटना पर कई सवाल बरकरार है।
ऐसे में www.secretopreation.com न्यूज पोर्टल की यह ड्यूटी है कि अपने तथ्यपरक व निष्पक्ष खोजी पत्रकारिता के माध्यम से देश-दुनिया को सच से रूबरू करायें। दरअसल, जब 14 फरवरी 2019 को कश्मीर के पुलवामा जिले में अवंतिपोरा के पास सड़क के रास्ते जा रही CRPF की ढाई हजार नफरी की एक विशाल सैन्य कानवाई के एक वाहन से अचानक भारी मात्रा में विस्फोटक से युक्त एक कार टकरा गई तो भीषण विस्फोट हो गया और मौके पर कार सवार आतंकी के साथ CRPF के 40 जवान दम तोड़ दिये तथा 35 अन्य जवान गंभीर रूप से घायल हो गए।
तो पूरे देश सहित दुनिया भर में तहलका मच गया,भारतीय सुरक्षा ऐजेंसियां भी मानों अवाक सी रह गयी। तत्कालीन केंद्र सरकार भी तत्काल ऐतिहातन जो प्रभावी कार्यवाही उचित थी शुरू कर दी, तो वहीं तमाम सवाल भी उठने लगे, जो कि आज भी बरकरार है। जहां इन तमाम सवालों के संबंध में “सीक्रेट ऑपरेशन” न्यूज पोर्टल समूह ने बड़ी हीं सावधानी व गंभीरता के साथ हाल ही में अपनी एक स्वतंत्र पड़ताल शुरू किया। जहां हमने घटना से जुड़े सबसे बड़े सवाल कि 300 किलोग्राम विस्फोटक से लदे कार पर तमाम तथ्यों के आधार पर शोध किया तो हम इस पर पूरी तरह से अनुत्तर रहे।
फिर हमने उन गलतियों पर भी प्रकाश डाला जिसमें प्रथम दृष्ट्या यह स्पष्ट किया गया था कि जब इस कानवाई को सड़क से रवाना करने से पहले मिलिट्री एअरक्राफ्ट की मांग की गई थी जिसे केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा नजर अंदाज किया गया था,जहां जब ये एअरक्राफ्ट उपलब्ध नहीं कराये गए तो फिर इस सैन्य काफिले को सड़क मार्ग से ही रवाना कर दिया गया। अब यहां केंद्रीय गृह मंत्रालय को समय से एअरक्राफ्ट न उपलब्ध कराये जाने को लेकर सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया गया। अब इस सवाल का जवाब यही है कि देश के सुदूर तमाम इलाकों में हमेशा से ही सड़क मार्ग से ही ऐसे सैन्य काफिलों को भेजा जाता रहा है,केवल आपातकालीन स्थिति में हीं एअरक्राफ्ट का इस्तेमाल किया जाता रहा है। जबकि, पुलवामा हमले से पहले गंतव्य स्थान को जा रही इस फोर्स काफिले को किसी आपातकालीन डयूटी का कोई नोटिस नहीं थी। अब ऐसे में इस सवाल का कोई औचित्य नहीं रह जाता, यदि सवाल खड़ा करना ही है तो इस कानवाई को सड़क मार्ग से रवाना करने वाले उस अधिकारी पर भी सवाल खड़ा होना चाहिए जो कि बिना मिलीट्री एयरक्राफ्ट के इस काफिले को रवाना करने की अनुमति दिया था।
इसी कड़ी में उन सवालों का भी उत्तर खोजना है जिसमें यह कहा गया था कि जिस सड़क मार्ग द्वारा यह काफिला गुजर रहा था उसको तय सिक्योरिटी प्रोटोकॉल के तहत सेनेटाइज नहीं किया गया था, यहां यह साफ कर दे कि आजादी से लेकर आज तक देश के सुदूर इलाकों में जब भी ऐसे सैन्य काफिले गुजरते है तो तय सिक्योरिटी प्रोटोकॉल का अक्सर खुला उललघंन होता रहा है। यानि अन्य सिविल वाहनों व सिविलियन को उस समय तक इस सड़क से दूर रखना चाहिए था जब तक कि यह काफिला सुरक्षित आगे न बढ़ जाये,कहने को भले ही यह सुरक्षा नीति का हिस्सा है,लेकिन इसका पालन अक्सर नहीं किया जाता है। अर्थात, तय मानकों का हमेशा से ही उल्लंघन होता रहा है,वहीं यह कोई पहली बार नहीं था कि तय सुरक्षा नीति का पालन न किये जाने के कारण यह घटना घटी। हमेशा हमारी फोर्स देश के अलग-अलग हिस्सों में तमाम तरह के ऐतिहात बरतने के बावजूद भी दुश्मन के अंबुस हमलों का शिकार होती रही है।
इसी कड़ी में हमने उस सवाल पर भी रिसर्च किया जिसमें यह कहा गया था कि इस तरह के भीषण आतंकी हमले को लेकर इंटेलीजेंस इनपुट था फिर भी इसको नजर अंदाज किया गया, अब इसका बहुत आसान सा जवाब यह है कि घाटी में अक्सर ऐसे हमलों के इनपुट लगातार मिलते रहते हैं, जिस पर जरूरी ऐतिहात भी बरता जाता रहा है, जहां कई बार हमले भी होते हैं और नहीं भी होते हैं। सारांश यह है कि तय सुरक्षा नीतियों का हमेशा से ही खुला उल्लंघन होता रहा है और कई बार तमाम सावधानियों के बावजूद भी हमारी फोर्स दुश्मन के अंबुस हमलों का शिकार बनती रही है।
रही बात पुलवामा हमले की तो निश्चित रूप से इस दौरान घोर लापरवाही बरतने के साथ-साथ कई सुरक्षा मानकों की भी अनदेखी हुई थी, लेकिन इसे राजनीतिकरण किया जाना कतई उचित नहीं है, क्योंकि, पहले भी तमाम सावधानियों के बावजूद हमारी फोर्स दुश्मन के बिछाये जाल में फंसकर शिकार होती रही है। बता दे कि “सीक्रेट ऑपरेशन” न्यूज पोर्टल का रिकार्ड रहा है कि अपने तथ्ययुक्त व खोजी तथा निष्पक्ष पत्रकारिता के माध्यम से बीसियों से अधिक ऐसे खुलासे कर चुका है कि जिसमें अमेरिकी ऐजेंसियों के साथ-साथ ब्रिटिश खुफिया एजेंसी व कई सेवानिवृत्त सैन्य अफसरों,डिफेंस एक्सपर्ट,दुनिया भर के तमाम मीडिया समूहों को झूठा साबित कर चुका है जिसका कि एक संयुक्त विवरण हमारे न्यूज पोर्टल www.secretopreation.com के 5 दिसंबर 2023 के इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट में वर्णित है।
गौरतलब है कि 14 फरवरी 2019 को पूर्व में वर्णित पुलवामा हमलें को लेकर देश में आज भी कुछ लोगों में यह सोच बरकरार है कि इस घटना को राजनैतिक लाभ के लिए अंजाम दिया गया था, जबकि हमारी स्वतंत्र पड़ताल में अब तक यह साफ हो चुका है कि यह घटना उसी तरह की एक गंभीर घटना है जो कि हमारी फोर्सेस देश के अलग-अलग हिस्सों में अक्सर झेलती रही है। जहां इस दौरान तमाम सावधानियां भी बरती जाती रही है। फिर भी ये फोर्सेस टारगेट होती रही है।