रूसी राष्ट्रपति पुतिन साभार-(सोशल मीडिया)
वाशिंग्टन/मॉस्को। रूस और यूक्रेन के युद्ध को छह महीने से ऊपर हो चले हैं। लेकिन परिणाम अभी भी रूसी फौज के पक्ष में नहीं है। ऐसे में चर्चा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को युद्ध में खराब प्रदर्शन और उनके खराब स्वास्थ्य के कारण हटाया जा सकता है। इतना ही नहीं अमेरिकी खुफिया ऐजेंसी (CIA) के मॉस्को स्टेशन के पूर्व बॉस रहे डेनियल हॉफमैन ने भी दावा किया है कि पुतिन को सत्ता से हटाने की साजिश हो रही है।
डेनियल ने आगे भी कहा कि अगर रूस में तख्तापलट होता है तो यह शांति से नहीं होगा। क्योंकि कोई भी पुतिन से नहीं पूछेगा कि क्या आप सत्ता छोड़ना चाहते हैं ? उन्होंने कहा कि पुतिन को जो भी सत्ता से हटाएगा वह पुतिन को मार कर ही राष्ट्रपति बनेगा। वहीं,एक्सपर्ट मानते हैं कि रूस में पुतिन की जगह तीन नाम हैं जो राष्ट्रपति बन सकते हैं। पहले नंबर पर पुतिन के शीर्ष आर्थिक सलाहकार सर्गेई ग्लेज़येव, दूसरे नंबर पर रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेव और तीसरे नंबर पर रूस की काउंटर जासूसी एजेंसी के प्रमुख अलेक्जेंडर बोर्तनिकोव हैं।
दरअसल,एक मीडिया रिपोर्ट्स में वाशिंगटन डीसी में सेंटर फॉर यूरोपियन पॉलिसी एनालिसिस के वरिष्ठ फेलो ओल्दा लॉटमैन के हवाले से यह दावा किया गया है कि कतार में कई और लोग भी खड़े हैं। जो कि ऐसे सैकड़ों लोग होंगे जो पुतिन की सत्ता पाना चाहेंगे और वह उनसे भी ज्यादा सख्त होंगे। इसी क्रम में डेनियल ने यह भी बताया कि सर्गेई ग्लेज़येव तो वह शख्स है जो दिन रात नाटों को खत्म करने का सपना देखता है। उन्होंने कहा, ‘पुतिन की तुलना में ग्लेज़येव मानसिक रूप से ज्यादा अस्थिर और फांसीवादी है।’
बता दे कि व्लादिमीर पुतिन के एक समय विरोधी रहे मिखाइल श्वेतोव जो कि पनामा में निर्वासन में हैं उन्होंने भी चेतावनी दी है कि अगर एक बार पुतिन चले गए तो रूस में असली कट्टरपंथी आ जाएंगे। वह कहते हैं कि रूस के अंदर गृह युद्ध का उतना ही खतरा है जितना पूरे पश्चिम पर कुल युद्ध का। श्वेतोव ने कहा कि पश्चिम में कुछ लोगों का मानना है कि एक बार पुतिन सत्ता से बेदखल हुए तो चीजें बदल जाएंगी, जबकि ऐसा नहीं है। पुतिन का जाना दशकों में पश्चिम के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा। हालांकि,इन दावों में कितनी सच्चाई है ? कुछ बता पाना मुश्किल है। लेकिन एक बात तो साफ है कि यूक्रेन के खिलाफ जारी लड़ाई के चलते पुतिन को देश के बाहर तो विरोध झेलना ही पड़ रहा है, साथ ही साथ देश के भीतर भी उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।