सांकेतिक तस्वीर।
बीजिंग/टोक्यो। चीन के साथ जारी लगातार तनातनी के बीच अब जापान ने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किये गये समझौते को तोड़ते हुए मिसाइल डिफेंस वॉरशिप बनाने का ऐलान किया है। बता दे कि ये वॉरशिप दुश्मन की दागी गई मिसाइलों को न सिर्फ ट्रैक करने में माहिर होंगे,बल्कि जरूरत पड़ने पर उन्हें मार भी गिराएंगे। शुरुआती प्रस्ताव के अनुसार, अभी तक ऐसी दो वॉरशिप बनाने का प्रस्ताव पेश किया गया है। बता दे कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह पहला मौका होगा,जब जापान इतने बड़े आकार के युद्धपोतों को बनाने जा रहा है। दरअसल,द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किये गये समझौते के अनुसार जापान ने अपनी सैन्य ताकत को सिर्फ रक्षात्मक तरीके से इस्तेमाल करने का फैसला किया था। जापान ने यह भी नियम बनाया था कि वह कभी भी परमाणु हथियार नहीं बनाएगा और ना ही बड़े युद्धपोतों का निर्माण करेगा। लेकिन, चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए जापान ने 20000 टन से ज्यादा विस्थापन वाले युद्धपोतों को बनाने का फैसला किया है। इतना ही नहीं,रूस-यूक्रेन जंग को देखते हुए जापान में परमाणु हथियारों की मांग भी बढ़ती जा रही है।
बता दे कि जापानी रक्षा मंत्रालय ने वित्त वर्ष 2023 के बजट अनुरोध में दो एजिस बीएमडी युद्धपोतों के डिजाइन व्यय के लिए फंड जारी करने का प्रस्ताव पेश किया है। हालांकि इसके लिए कोई निश्चित धनराशि का खुलासा नहीं किया गया है। जापानी रक्षा मंत्रालय ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए 39.7 बिलियन डॉलर खर्च करने का अनुरोध किया, जो कि वित्त वर्ष 2022 के 38.4 बिलियन डॉलर के बजट से अधिक है। इसी के साथ जापान ने अपने समुद्र तटों पर ग्राउंड बेस्ड बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस एजिस अशोर सिस्टम्स को स्थापित करने वाला प्रस्ताव रद्द भी कर दिया है। जापानी रक्षा मंत्रालय पहले एजिस मिसाइल डिफेंस की यूनिट्स को अपने तटों पर तैनात करने की योजना बना रहा था। चूंकि इस समय जापान को अपने दो पड़ोसी चीन और उत्तर कोरिया की बढ़ती सैन्य ताकत से खतरा महसूस हो रहा है। इसीलिए जापान इसका निर्णय लिया है।
गौरतलब है कि सेकेंड वर्ल्ड वाॅर के दौरान अमेरिका द्वारा किये गये परमाणु हमलें के बाद जापान ने सरेंडर कर दिया था। जहां इस दौरान जापान ने डिफेंस से संबंधित तमाम समझौते किया था,जिसमें जापान को बहुत घातक व हाई रेंज की मिसाइलों के निर्माण की पाबंदियां थी। लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच जारी भीषण जंग और चीन तथा उत्तर कोरिया की तरफ से बढ़ते खतरे को ध्यान में रखते हुए जापान ने अब द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान किये गये समझौते को किनारे करते हुए ऐसा निर्णय लिया है।