सांकेतिक तस्वीर।
नई दिल्ली। देश की सबसे बड़ी अदालत ने सोमवार को अपने एक ऐतिहसिक फैसले में केंद्र सरकार को पाकिस्तान के खिलाफ जासूसी करने वाले एक भारतीय नागरिक को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने का आदेश दिया है। बता दे कि महमूद अंसारी नाम के इस शख्स ने दावा किया था कि उसे भारतीय खुफिया ऐजेंसियों ने पाकिस्तान में एक सीक्रेट मिशन पर जासूसी करने के लिए भेजा था। जहां वह दुश्मन की नजर में आ गया और पकड़ा गया। इसके बाद पाकिस्तान में उसे 14 साल की सजा हुई। सजा भुगतने के बाद जब वह वतन लौटा तो उसके लिए सभी दरवाजे बंद थे।
बता दे कि इस प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि अनुग्रह राशि के तौर पर 10 लाख रुपए, 3 हफ्ते के भीतर याचिकाकर्ता को दिए जाएं। हालांकि इससे ये न समझा जाए कि ये पैसा उनके दायित्व या अधिकार से जुड़ा है।
दरअसल,राजस्थान के रहने वाले महमूद अंसारी 1966 में डाक विभाग में काम करते थे। भारत सरकार के स्पेशल ब्यूरो ऑफ इंटेलिजेंस ने उन्हें 1972 में देश के लिए सेवाएं देने को कहा जहां उन्हें एक सीक्रेट ऑपरेशन के लिए पाकिस्तान में भेजा गया। जहां इस दौरान अंसारी ने दो मिशन पूरा किये लेकिन तीसरे मिशन के दौरान वे पाकिस्तानी रेंजरों की पकड़ में आ गए। फिर 23 दिसंबर 1976 को अंसारी को जासूसी के आरोप में जेल भेज दिया गया, जहां वे जासूसी के आरोप में 14 साल बंद रहे।
वर्ष 1989 में जब अंसारी पाकिस्तान से रिहा होकर लौटे तो उन्होंने डाक विभाग में वापस नौकरी के लिए अधिकारियों से संपर्क किया। जहां उन्हें बताया गया कि उनकी सेवाएं 31 जुलाई 1980 को ही समाप्त कर दी गईं। प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने भी 2000 में बहाली और बैकवेज की उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद वर्ष 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट ने भी देरी और अधिकार क्षेत्र का हवाला देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी। इसके बाद अंसारी ने 2018 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जहां कोर्ट ने याचिकाकर्ता के जासूसी मिशन और पोस्टल डिपार्टमेंट में नौकरी करने के तथ्यों पर दोनों पक्षों की दलीलें सुनी। इसके बाद सीजेआई यूयू ललित ने पीड़ित के पक्ष में फैसला सुनाया। पारिवारिक हालातों को ध्यान में रखते हुए मुआवजे के तौर पर गुजारा भत्ता दिए जाने का सरकार को निर्देश दिया। पहले यह 5 लाख रुपए तय हुआ था लेकिन 75 साल उम्र और बेटी पर निर्भरता को देखते हुए इसे 10 लाख कर दिया गया।
हालांकि,इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तान की अदालत के फैसले का भी जिक्र किया,जिसमें याचिकाकर्ता को दोषी ठहराया गया था। साथ ही यह भी कहा कि सजा का आधार एक भारतीय का पाकिस्तान में जासूसी करते पाया जाना और सजा मिलना नही हैं। सजा का आधार है कि वे रेजिमेंट का हिस्सा थे। एक वर्दीधारी सैनिक के रूप में उन्होंने कुछ काम किए। इसलिए कोर्ट मार्शल किया गया और दंडित किया गया।