इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

LAC बार्डर पर दुश्मन के साथ 16वें दौर की वार्ता के बाद पीछे हटी भारतीय सेना पर कई मीडिया समूहों ने इंडियन आर्मी के एक्स. आर्मी अफसरों के हवाले से खड़ा किया सवाल – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)


इंडियन आर्मी चीफ जनरल मनोज पांडे, फाईल फोटो, साभार (सोशल मीडिया)

नई दिल्ली। इस महिने के बीते 14 सितंबर को LAC बार्डर दुश्मन के साथ जारी तनातनी के बीच 16वें दौर की बातचीत के बाद भारत और चीन की सेनाएं पीछे हट गई थी। जहां अब कई मीडिया समूहों ने भारतीय सेना के तमाम एक्स. आर्मी अफसरों और स्थानीय नागरिकों के हवाले से इस डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया पर सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसे में अब बेहतर होगा कि भारत सरकार इस समझौते की तस्वीर को साफ करें।

बता दे कि “द टेलिग्राफ़” अख़बार ने रिपोर्ट किया है कि भारत और चीन ने गलवान घाटी, पैंगॉन्ग लेक और गोगरा की तरह ही हॉट स्प्रिंग्स में समान दूरी पर पीछे हटने पर सहमति जताई है और इसको ‘नो पट्रोलिंग ज़ोन’ घोषित किया है,जिसका सीधा अर्थ है कि चीनी सैनिक उस ज़मीन पर रहेंगे जिस जगह तक का भारत दावा करता रहा है, इसके साथ ही भारत ने अधिक क्षेत्र पर पट्रोलिंग (गश्त) के अपने अधिकार को छोड़ दिया है।

इसी कड़ी में द टेलिग्राफ़ अख़बार ने आगे भी भारतीय सेना के एक पूर्व लेफ़्टिनेंट जनरल के हवाले से रिपोर्ट किया कि मोदी जी के नेतृत्व में यह एक न्यू इंडिया है जो चीनी आक्रामकता और बदमाशी के आगे हथियार डाल दे रहा है और भारतीय क्षेत्र में बिना सैनिकों वाला बफ़र ज़ोन बनाने की अनुमति दे रहा है और इस बफ़र ज़ोन का मतलब है कि भारतीय ज़मीन का नुक़सान,क्योंकि डिसइंगेजमेंट समझौते के तहत भारत ने अपने ही उस क्षेत्र को छोड़ दिया है, जिस पर अब तक वो दावा करता आया था। इतना ही नहीं इस एक्स. लेफ्टिनेंट जनरल ने यह भी दावा किया कि अब चीनी सेना इस 16वें दौर की वार्ता के समझौते के अनुसार हमारे क्षेत्र में आकर बैठी गई है और हम इसे ‘डिसइंगेजमेंट’ कह रहे हैं।

इसी कड़ी में यह भी बताया गया कि गलवान घाटी में ‘बफ़र ज़ोन’ 3 किलोमीटर, पैंगॉन्ग लेक 10 किलोमीटर और गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स 3.5-3.5 किलोमीटर चौड़ा है। भारतीय सेना जो इन इलाक़ों में गश्त किया करती थी वो अब इस समझौते के तहत यह नहीं कर सकेगी।

इस अख़बार ने भारतीय सेना के एक पूर्व ब्रिगेडियर के हवाले भी से यह बताया कि यह एक शॉर्ट टर्म समाधान और इसे ‘डिसइंगेजमेंट’ कहने के बजाय भारत चीन से यह क्यों नहीं कह रहा है कि वो अपनी ओर का लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल उसे लौटाए।

वहीं,भारत के रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने इस पर कहा है कि बफ़र ज़ोन और गश्त स्थगित करना अस्थायी है।इस अधिकारी ने आगे यह भी दावा किया कि भारत ने इन इलाक़ों पर अपना अधिकार नहीं छोड़ा है। हालांकि उन्होंने इस सवाल पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि बफ़र ज़ोन कब तक जारी रहेगा इस पर कोई औपचारिक बयान क्यों नहीं आया है।

वहीं,एक रियाटर्ड मेजर जनरल ने भी अख़बार से बातचीत के दौरान कहा कि मई 2020 के बाद भारत के दावे वाले क्षेत्रों में चीन ने अतिक्रमण किया और इसका साफ़ मक़सद था कि वो नक़्शा बदले और उन इलाक़ों पर क़ब्ज़ा करे जो उसके रणनीतिक उद्देश्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं। इतना ही नहीं उन्होंने आगे यह भी दावा किया कि ये बफ़र ज़ोन मोर्चे पर एक नई यथास्थिति को दिखाते हैं। अप्रैल 2020 की यथास्थिति लागू करने को लेकर चीन प्रतिबद्ध नहीं है और वो भारत पर दबाव बना रहा है कि वो उसके अतिक्रमण के बाद तैयार बदली हुई सीमा को स्वीकार करे। इस दौरान मेजर जनरल ने यह भी साफ किया कि इस तरह के बफ़र ज़ोन बनाने के औचित्य पर भारत सरकार की चुप्पी है जहां पर भारत 1962 से गश्त कर रहा था, इसके देश की क्षेत्रीय संप्रभुता और अखंडता पर गंभीर प्रभाव होंगे।

बता दे कि अप्रैल 2020 में LAC बार्डर पर भारत और चीन के बीच सैन्य संघर्ष हुआ था। जहां इस दौरान चीन ने पूर्वी लद्दाख़ में विवादित एलएसी पर सैन्य मोर्चाबंदी करते हुए यह दावा किया कि भारत एलएसी पर निर्माण कार्य कर रहा है। जिसके बाद गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे इलाक़ों में दोनों देशों की सेनाएं आमने-सामने आईं और
15 जून 2020 को दोनों पक्षों के हिंसक झड़पें हुई। जहां गलवान घाटी में हुए खूनी संघर्ष में 20 भारतीय सैनिकों की मौत हो गई थी,वहीं बाद में चीन ने भी माना कि उसके भी चार सैनिक मरे है लेकिन रिपोर्ट थी कि मरने वालों में चीनी सैनिकों की भी संख्या ज्यादा थी जिसे चीन ने दबा दिया था।
बता दे कि एलएसी पर भारत और चीन के बीच कई सालों से कम-से-कम 12 जगहों पर विवाद रहा है,जहां इस दौरान तनाव कम करने के लिए दोनों हीं देश जून 2020 के बाद से अब तक 16 दौर की वार्ता कर चुके हैं। लेकिन 16वें दौर की वार्ता के बाद भारतीय सैनिकों के पीछे हटने के बाद भारतीय सेना के कई वरिष्ठ रिटायर सैन्य अधिकारियों ने जिस तरह से सवाल खड़ा किया है, उससे तमाम संदेह पैदा हो रहे हैं। इसलिए ऐसे में भारत सरकार के लिए बेहतर होगा कि वह इस मुद्दे पर तस्वीर साफ करें।

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