सांकेतिक तस्वीर।
नई दिल्ली। सेकेंड वर्ल्ड वार के बाद जब भारत ब्रिटिश हुकूमत से आजाद हुआ तो उसी समय मुहम्मद अली जिन्ना के लीडरशिप में भारत से ही अलग होकर एक और देश की स्थापना हुई, जिसे पहले से ही तय नाम “पाकिस्तान” के नाम से जाना गया। हालांकि,इस दौरान भारत में भारी खून-खराबा हुआ,न जाने कितनी ज्यादतियां हुई ? जिसे यहां विस्तार पूर्वक वर्णन कर पाना बेहद मुश्किल है।
फिलहाल, जैसे-तैसे भारत से अलग हुए पाकिस्तान को नई दिल्ली समेत पूरी दुनिया ने मान्यता दी। जहां इसी समय पूरी दुनिया तीन गुटों में बंट गई,जिनमें अमेरिकी गुट के नेतृत्व में पूरा यूरोप लोकतंत्र समर्थक बना तो वही दूसरी ओर सोवियत संघ वामपंथी विचारधारा के तहत तानाशाह समर्थक हुआ, जहां इस दौरान भारत के लीडरशिप में दुनिया का तीसरा दल गुट निरपेक्ष कहलाया।
जहां इस बीच सोवियत संघ और अमेरिकी गुट के बीच कई मुद्दों को लेकर आपस में शीतयुद्ध छिड़ गया। इस दौरान दुनिया के कई देशों में कई सालों तक भीषण लड़ाइयां लड़ी गई। इसी शीतयुद्ध के दौरान अमेरिका ने नाटों गुट स्थापित किया,जिसका एक सूत्रीय मिशन दुनिया में सोवियत के बढ़ते प्रभाव को समाप्त करना था। इसी कड़ी में भारत-पाकिस्तान के बीच कई जंगे हुई, जिनमें वर्ष 1971 का जंग बहुत ऐतिहासिक रहा। जिसमें पाकिस्तान की भारी किरकिरी हुई। क्योंकि, इसी जंग में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिक इंडियन आर्मी द्वारा बंदी बना लिये गए थे। चूंकि इस युध्द में पाकिस्तान की तरफ से अमेरिका और यूरोप मदद कर रहे थे, भारत की तरफ से सोवियत संघ था। स्थिति इतनी बदतर हो गई थी कि भारत के खिलाफ अमेरिका ने अपना सबसे शक्तिशाली सातवां बेड़ा भी भेज दिया था, लेकिन रूस की घातक परमाणु हथियारों से लैश पनडुब्बीयों ने ऐन मौके पर पहुंचकर अमेरिका के इस बेड़े को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दी थी।
यानि,देखा जाये तो वर्ष 1947 के बाद से हीं अमेरिका ने भारत के खिलाफ एक अघोषित जंग छेड़ रखा था,जिसे वह पाकिस्तान के सहारे समय-समय पर जारी रखता रहा। लेकिन पाकिस्तान के खिलाफ सभी जंगों में रूस ने भारत की भरपूर सैन्य मदद लगातार जारी रखा रहा। यही कारण था कि पाकिस्तान के रूप में अमेरिका भारत के खिलाफ कभी सफल नहीं रहा। लेकिन बात जब चीन-भारत की होती थी तो अमेरिका नई दिल्ली के साथ खड़ा रहा। जो कि ऐसा अभी तक बरकरार है।
लेकिन धीरे-धीरे समय बदलता गया और अब रूस के साथ-साथ चीन भी अमेरिका के लिए बेहद गंभीर चुनौती के रूप में बेहद तेजी से उभर रहा है। जिसे अमेरिका रूस से भी बड़ा खतरा मानता है। शायद यही वजह है कि अमेरिका ने चीन विरोधी देशों का एक संगठन गठित कर लिया है, जिसे क्वाड कहा जाता है। बता दे कि इस संगठन का प्रमुख उद्देश्य चीन को रोकना है। यहां यह साफ कर देना बेहद जरूरी है कि जिस पाकिस्तान को अमेरिका ने वर्ष 1947 से अभी तक सभी तरह की लगातार मदद पहुंचाया, अब उसी पाकिस्तान में चीन काफी हद तक हावी हो चुका है, जिसे कि पूरी दुनिया जानती है।
ऐसे में अब चीन को पाकिस्तान में प्रभावहीन करने के लिए अमेरिका के सामने गोल्डन चांस यह है कि वह अपने तमाम सैन्य संगठनों के जरिये भारत की मदद करते हुए इस्लामाबाद में भारतीय तिरंगे को स्थापित करें यानि पूरे पाकिस्तान में भारत को कब्जा दिलायें। जिसके लिए अमेरिका समेत दुनिया भर के तमाम लोकतंत्र समर्थक देशों के पास तमाम साक्ष्य व कारण है जो कि भारत को पाकिस्तान पर कब्जा करने के लिए काफी है। बता दे कि ऐसा करना भारत के अलावा चीन विरोधी सभी देशों के लिए बेहद सकारात्मक रहेगा। और रूस-यूक्रेन जंग के बीच ऐसा करना और भी शुभ फलकारी रहेगा।
रही बात खाड़ी देशों की तो वें चाहकर भी इस घटनाक्रम का विरोध नहीं कर सकते, जिसके एक-दो नहीं बल्कि सैकड़ों कारण। यानि दक्षिण एशिया में चीन के लिए यह बहुत बुरे सपने जैसा साबित होगा। इतना ही नहीं पूरी दुनिया में चीन हाशिये पर पहुंच जायेगा। और यदि ऐसा नहीं होता है तो चीन के खिलाफ अमेरिका सिर्फ कूटनीतिक जंग हीं लड़ता रहेगा और आने वाले दिनों में चीन पहले से कही अधिक ताकतवर हो जाएगा, जो कि अमेरिका सहित कई देशों के लिए बेहद खतरनाक साबित होगा। इसलिए अमेरिका और यूरोप के हित में ऐसा गोल्डन चांस शायद हीं कभी मिलेगा।
वहीं, बात भारत की जाये तो नई दिल्ली दुनिया के लिए कभी खतरा नहीं बना और ना ही बन सकता है। क्योंकि, भारत ने हमेशा हीं अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और समझौतों का पालन बड़े हीं ईमानदारी से किया है। ऐसे में अमेरिकी गुट यदि अभी भी भारत को नजरअंदाज करता है तो वह आने वाले दिनों में चीन हीं नहीं पाकिस्तान से भी भय खायेगा। क्योंकि, चीन दिन ब दिन पाकिस्तान में हावी होता हीं जा रहा है, जो कि अमेरिका के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में है।