रविशंकर मिश्र ( एडिटर – आपरेशन )
इंडियन आर्मी की गोरखा रेजीमेंट को दुश्मनों से बहादुरी से लड़ने के लिए जाना जाता है। उनके लिए भारत के फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने कहा था- “अगर कोई शख्स कहता है कि उसे मरने से डर नहीं लगता, वह या तो झूठा है या गोरखा है।” गोरखा रेजीमेंट इंडियन आर्मी से अप्रैल 1815 में जुड़ी थी और तब से आज तक कई लड़ाइयों में इंडियन आर्मी के साथ मजबूती से साथ निभाती आ रही है।
– नेपाल में गोरखा नाम का एक डिस्ट्रिक्ट है, जो कि हिमालय की तराई में बसा हुआ एक छोटा-सा गांव है।
– गोरखाली या गोरखा नेपाल के मूल निवासी हैं। इन लोगों को ये नाम 8वीं शताब्दी में हिन्दू संत योद्धा श्री गुरु गोरखनाथ ने दिया था।
– गोरखा किसी एक जाति के योद्धा नहीं हैं बल्कि पहाड़ों में रहने वाली सुनवार, गुरुंग, राय, मागर और लिंबु जातियों में से ही हैं।
– जब इनके घर में कोई बच्चा पैदा होता है तो गांव में ‘आयो गोरखाली’ बोलकर शोर मचाते हैं। जन्म के साथ ही यहां के बच्चों को सिखाया जाता है – ‘डर कर जीने से बेहतर है मर जाना’।
खुखरी लेकर ही लड़ जाते हैं दुश्मनों से
– खुखरी एक तेजधार वाला नेपाली कटार है, जो सेना में गोरखा रेजीमेंट के सैनिकों को दिया जाता है।
– खुखरी 12 इंच लंबा चाकू होता है जो कि हर गोरखा सैनिक के पास होता है।
– ये हथियार उन्हें उस वक्त दिया जाता है, जब उनकी ट्रेनिंग पूरी हो जाती है। ये दुश्मनों से लड़ाई में काफी मददगार होता है।
गोरखा रेजीमेंट की ट्रेनिंग
– गोरखा सैनिकों की 42 हफ्ते की कठिन ट्रेनिंग होती है। इसमें ये सैनिक फिजिकली और मेंटली तौर पर काफी मजबूत हो जाते हैं और वे ट्रेनिंग के बाद किसी भी हालात में देश की सेवा करने तैयार हो जाते हैं।
– ट्रेनिंग में छोटे हथियारों से लेकर बड़े हथियार तक चलाना सिखाया जाता है। सबसे अहम आमने-सामने की लड़ाई की ट्रेनिंग होती है, जिसमें उन्हें सामने से दुश्मन को मात देने के बारे में सिखाया जाता है।
– सेना में गोरखा रेजीमेंट के सैनिकों को ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अलग-अलग जगह भेज दिया जाता है।