फाइनल रिपोर्ट

कया किसान आंदोलन के बहाने खालीस्तान मूवमेंट को फिर से जिंदा करने की कोशिश ? – रविशंकर मिश्र (एडिटर आपरेशन)

दिल्ली में 26 जनवरी के दिन किसानो की ट्रैक्टर रैली के दौरान जमकर हिंसा हुई। हिंसा के दौरान कुछ लोग लाल किले की प्राचीर पर चढ़ गए और झंडा फहरा दिया। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा फुट पड़ा। लाल किले पर तिरंगे के अलावा दूसरा झंडा फहराने की घटना को लोग देश का अपमान बता रहे हैं। कुछ लोग तो इसे ‘खालिस्तानी झंडा’ भी बता रहे हैं, जबकि बड़ी संख्या में लोगों का कहना है कि यह ‘निशान साहिब’ है जो आपको सभी गुरुद्वारों में भगवा रंग में मिलेगा।
दिल्ली में हुई घटना से लेकर किसान संगठनों के नेताओं ने पल्ला झाड़ लिया है। किसान नेताओं का कहना है कि उन्होंने शांतिपूर्ण रैली निकाली है, लेकिन ट्रैक्टर रैली में कुछ उपद्रवी लोग आ गए थे, जिन्होंने हिंसा की है। हालांकि इस घटना के बाद देश के एक बार फिर से खालिस्तान आंदोलन के जिक्र होने लगा है। बड़ी संख्या में लोग ऐसे भी हैं जो इस घटना के पीछे खालिस्तान आंदोलन का हाथ बता रहे हैं। हालांकि आज भी देश में कई लोग ऐसे हैं जिन्हें खालिस्तान आंदोलन के बारे में पता नहीं हैं। तो चलिए आज हम खालिस्तान आंदोलन के बारे में जानते हैं:-

खालिस्तान आंदोलन क्या है?
दरअसल साल 1947 में जब देश आजाद हुआ तो एक हिस्सा पाकिस्तान के नाम से नया देश बना। तभी कुछ सिख नेताओं ने अपने लिए अलग देश की मांग की, जिसे नाम दिया गया खालिस्तान। उन्हें लगा कि अलग देश की मांग करने का यह सबसे सही समय है। हालांकि भारत सरकार ने पंजाब को अलग देश बनाने की मांग को खारिज कर दिया। इसके बाद पंजाबी भाषी लोगों के लिए एक अलग राज्य की मांग तेज हुई। इस मांग को लेकर ही अकाली दल का जन्म हुआ और कुछ ही समय में इसे पंजाब में समर्थन भी मिलने लगा। अकाली दल के नेतृत्व में पंजाब में जबरदस्त प्रदर्शन हुए।

साल 1966 में सरकार ने मानी बात
आख़िरकार साल 1966 में भारत सरकार ने जाब को अलग राज्य बनाने की मांग मान ली।साथ ही भाषा के आधार पर हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और केंद्र शाषित प्रदेश चंडीगढ़ की स्थापना हुई। अकाली दल चाहता था कि पंजाब की नदियों का पानी किसी भी हालत में हरियाणा और हिमाचल प्रदेश को नहीं मिले, लेकिन सरकार ने उनकी यह मांग नहीं मानी।

खालिस्तान आंदोलन का इतिहास
हालांकि पंजाब में खालिस्तान को अलग देश बनाने की मांग समय-समय पर उठती रही। 1980 के दशक में ‘खालिस्तान’ के तौर पर स्वायत्त राज्य की मांग जोर पकड़ने लगी। इसे खालिस्तान आंदोलन का नाम दिया गया। इस दौरान अकाली दम कमजोर होने लगी और ‘दमदमी टकसाल’ के जरनैल सिंह भिंडरावाला की लोकप्रियता बढ़ते लगी। इसके बाद पंजाब हिंसक घटनाओं का दौर शुरू हो गया।

डीआईजी अटवाल की हत्या
हिंसक घटनाओं के बीच खालिस्तान आंदोलन में अहम् मोड़ आया साल 1983 में। इस दौरान पंजाब के डीआईजी अटवाल की स्वर्ण मंदिर परिसर में ही हत्या कर दी गई। इसके बाद भिंडरावाला ने स्वर्ण मंदिर को अपना ठिकाना बना लिया। वह अपने सैकड़ों सुरक्षाकर्मियों के साथ हमेशा घिरा रहता था। एक तरह से भिंडरावाला ने मंदिर को अपने किले में तब्दील कर दिया था। भिंडरवाला को स्वर्ण मंदिर से निकालने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ‘ऑपरेशन सनडाउन’ शुरू करने की योजना बनाई, इसके लिए बाकायदा 2000 कमांडों को ट्रेनिंग भी दी गई, लेकिन आम नागरिकों को नुकसान पहुंचने की आशंका से इस ऑपरेशन को नकार दिया गया।

ऑपरेशन ब्लू स्टार
आखिर में इस समस्या को खत्म करने के लिए ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ को अंजाम दिया गया। इसके लिए साल 1984 में 1 से 3 जून तक पंजाब की रेल, रोड और एयर ट्रांसपोर्ट सर्विस को रोक दिया गया। स्वर्ण मंदिर में पानी और बिजली को रोक दिया गया। इसके बाद 6 जून को स्वर्ण मंदिर के अंदर ऑपरेशन को अंजाम दिया गया। भारी गोलीबारी के बाद जरनैल सिंह भिंडरवाला का शव बरामद कर लिया गया। 7 जून 1984 को स्वर्ण मंदिर पर भारतीय सेना का नियंत्रण हो गया।

इंदिरा गाँधी की हत्या
ऑपरेशन ब्लू स्टार के कारण ही सिख समुदाय के लोगों के मन में इंदिरा गाँधी के प्रति नफरत पैदा हो गई। कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत कई सिख नेताओं ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। इस ऑपरेशन के महज चार महीने बाद ही 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी की हत्या उनके ही 2 सिख सुरक्षाकर्मियों ने कर दी थी।

जारी रहा खालिस्तान आंदोलन
भिंडरवाला की मौत के साथ ही खालिस्तान आंदोलन खत्म नहीं हुआ बल्कि इस मांग को लेकर कई छोटे-बड़े संगठन बने। भिंडरवाला की मौत का बदला लेने के लिए एक एक सिख राष्ट्रवादी ने 23 जून 1985 को एयर इंडिया के विमान में विस्फोट कर दिया, जिसमें 329 लोगों की मौत हुई थी। इसके बाद 10 अगस्त 1986 को ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल एएस वैद्य की दो बाइक सवार बदमाशों ने हत्या कर दी थी। वहीं 31 अगस्त 1995 को पंजाब सिविल सचिवालय के पास बम विस्फोट में पंजाब के तत्कालीन सीएम बेअंत सिंह की हत्या कर दी गई थी। ब्लास्ट में 15 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

अब खालिस्तान आंदोलन का हाल
हालांकि अब पंजाब से खालिस्तान आंदोलन खत्म हो चुका है। लेकिन समय-समय पर पाकिस्तान सिखों को इसके लिए उकसाता रहता है। इसके अलावा कनाडा और यूरोप में बसे सिखों के कई संगठन भी सिखों को खालिस्तान बनाने के लिए उकसाते रहते हैं।

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