ईरान से जारी तनाव के बीच इजरायल के सीक्रेट न्यूक्लियर फैसिलिटी की सैटेलाइट तस्वीरों ने दुनियाभर में तहलका मचाया हुआ है। जिसके बाद दावा किया जा रहा है कि इजरायल अपने परमाणु हथियारों के जखीरे को बढ़ा रहा है। इजरायल ने कभी भी आधिकारिक तौर पर परमाणु हथियार होने का दावा स्वीकार नहीं किया है। इसके बावजूद दुनिया में हथियारों की स्थिति और वैश्विक सुरक्षा का विश्लेषण करने वाले स्वीडन की संस्था स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने 2020 की अपनी नई सालाना रिपोर्ट में यह दावा किया है कि इजरायल के पास 80 से 90 परमाणु बम हैं। दरअसल, इजरायल को डर है कि उसका सबसे बड़ा दुश्मन ईरान कहीं परमाणु हथियारों को विकसित न कर लगे। दो दिन पहले ही दुनियाभर के देशों के परमाणु प्लांट्स पर नजर रखने वाली वैश्विक संस्था इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) ने भी कहा था कि ईरान तेजी से परमाणु हथियारों को बनाने के लिए यूरेनियम को परिष्कृत कर रहा है। इजरायल को अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडन के ईरान के प्रति नरम रूख से भी डर सता रहा है। बाइडन ने तो आने वाले दिनों में ईरान के साथ 2015 में किए गए परमाणु समझौते में फिर से शामिल होन का संकेत भी दिया था।
इजरायल ने इन सैटेलाइट तस्वीरों पर साधी चुप्पी
समाचार एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस ने सैटेलाइट तस्वीरों को जारी कर कहा है कि यह पिछले कई दशकों में इजरायल की सबसे बड़ी परमाणु निर्माण परियोजना है। जो डिमना शहर के पास शिमोन पेरेज नेगेव न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर में एजिंग रिएक्टर से सिर्फ मीटर की दूरी पर स्थित है। शिमोन पेरेज नेगेव न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर में ही इजरायल के पहले परमाणु बम को बनाया गया था। यहां अंडरग्राउंड लैबरेटरीज की पूरी चेन स्थापित की गई है, जहां के रिएक्टर्स इजरायल के परमाणु हथियारों के कार्यक्रम के लिए हथियार बनाने लाए प्लूटोनियम का उत्पादन कर रहा है। एजेंसी ने कहा है कि यह निर्माण किसलिए किया गया है इसे लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। क्योंकि, इजरायली सरकार ने भी अभी तक इसे लेकर पूछे गए किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया है। इजरायल के पास परमाणु हथियारों को लेकर कोई भी स्पष्ट नीति नहीं है। इसी कारण इजरायल परमाणु हथियारों के होने की न ही पुष्टि करता है और न ही इनकार करता है। यह भारत और पाकिस्तान समेत उन चार देशों में शामिल है जिन्होंने अभी तक परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस संधि का उद्देश्य दुनियाभर में परमाणु हथियारों के बढ़ते जखीरे को रोकना है।
इजरायल पर परमाणु कार्यक्रम के खुलासा करने का दबाव बढ़ा
इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू शुरू से ही ईरान के परमाणु कार्यक्रम की आलोचना करते रहे हैं। उन्होंने कई बार अंतरराष्ट्रीय मंच से भी ईरान के परमाणु कार्यक्रमों की तीखी प्रतिक्रिया भी दी है। हालांकि, ईरान के परमाणु कार्यक्रमों पर इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी की नजर बनी रहती है। 2015 में अमेरिका और बाकी कई अन्य देशों के साथ हुए परमाणु संधि के बाद से आईएईए के अधिकारी समय समय पर ईरान के परमाणु प्लांट्स की जांच करते रहते हैं। इन तस्वीरों ने दुनियाभर में एक बार फिर से इजरायल के परमाणु कार्यक्रमों को सार्वजनिक करने वाली बहस को जन्म दे दिया है। वाशिंगटन स्थित आर्म्स कंट्रोल एसोसिएशन के कार्यकारी निदेशक डेरिल जी किमबॉल ने कहा कि इजरायल सरकार इस गुप्त परमाणु हथियार संयंत्र में क्या कर रही है, इसके बारे में उन्हें साफ-साफ बताना चाहिए।
इजरायल ने फ्रांस के सहयोग से बनाया था पहला परमाणु प्लांट
फ्रांस के सहयोग से इजरायल ने 1950 के दशक के अंत में यरूशलेम के दक्षिण में करीब 90 किलोमीटर (55 मील) शहर डिमोना के पास खाली रेगिस्तान में गुप्त रूप से परमाणु साइट का निर्माण शुरू किया। इजरायल ने अपने इस एटमिक प्लांट को आज के सबसे करीबी देश अमेरिका से भी सालों तक छिपाए रखा। बाद में अमेरिका को इस प्लांट की जानकारी लगी। आज हालात यह है कि अमेरिका इस न्यूक्लियर प्लांट को कपड़ों की फैक्ट्री बताता है। डिमोना के न्यूक्लियर फैसिलिट से बने प्लूटोनियम के कारण इजरायल ने अपना पहला परमाणु बम बनाया। जिसके बाद वह दुनिया का ऐसा नौंवा देश बन गया जिसके पास परमाणु बम है। इजरायल के परमाणु कार्यक्रम की गोपनीयता के कारण किसी भी देश या एजेंसी को पक्के तौर पर नहीं पता है कि उसके पास कितने परमाणु बम हैं। हालांकि, कई विशेषत्रों का दावा है कि इजरायल के पास कम से कम 80 परमाणु बमों की सामग्री मौजूद है। जिसे वह जमीन से दागी जाने वाली मिसाइल, पनडुब्बी या किसी लड़ाकू विमान से लॉन्च कर सकता है।