एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

क्या कभी आजाद होगा अफगानिस्तान,तालिबान के चंगुल से ? जश्ने आजादी के दिन लहूलुहान हुआ अफगानिस्तान -विजयशंकर दूबे (क्राइम एडिटर)

आजादी के 102वें साल पर अफगानिस्तान फिर से तालिबानी कब्जे में चला गया है। अफगान में हर साल 19 अगस्त को ठीक उसी तरह स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता रहा है, जैसे कि हम भारत में 15 अगस्त को पूरे उत्साह से आजादी का उत्सव मनाते हैं। तालिबानी राज में स्वतंत्रता दिवस मनाने को लेकर आम अफगानियों ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया से कहा कि अब उनके लिए ”आजादी” शब्द ही सपने जैसा हो गया है। बता दें कि रविवार को तालिबानियों ने काबुल पर कब्जा कर लिया था और अशरफ गनी देश छोड़कर भाग चुके हैं।

1919 में अंग्रेजों से मिली आजादी
अफगानिस्तान को तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध के बाद साल 1919 में स्वतंत्रता मिली, इसे अफगानिस्तान की स्वतंत्रता का युद्ध भी कहा जाता है। दरअसल, तब भारत पर राज कर रहे अंग्रेजों ने पड़ोसी अफगानिस्तान में अधिकार करके वहां सोवियत संघ के प्रभाव को कम करने के लिए युद्ध किए। ये एंग्लो-अफगान युद्ध साल 1839, 1878 और 1919 में लड़े गए थे। 19 अगस्त, 1919 को राजा अमानुल्लाह खान ने अंतिम एंग्लो-अफगान युदध में अंग्रेजों के अधीन अफगानी क्षेत्रों को जीतकर विदेशी ताकत से देश को स्वतंत्रता दिलायी।

100वें स्वतंत्रता दिवस पर मोदी ने दी थी बधाई
2019 में जब राष्ट्रपति अशरफ गनी के नेतृत्व में अफगानिस्तान ने अपनी आजादी के सौ साल पूरे किए तो इस अवसर पर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई दी थी। अफगानिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना के लिए भारत ने यहां संसद भवन से लेकर कई विकास के प्रोजेक्ट चलाए। अफगानिस्तान में आजादी के दिन को सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता रहा है। इस दिन सेना की परेड और राष्ट्रपति अभिभाषण अहम आकर्षण रहे हैं।

आयोजन पर हमले करता रहा तालिबान
तालिबान ने पिछले साल काबुल में मनाए जा रहे स्वतंत्रता दिवस आयोजन के दौरान मोरार्ट दागे थे। इससे पहले भी तालिबान ऐसे आयोजनों का विरोध करता रहा है। विशेषज्ञों का कहा है कि कम ही संभावना है कि गुरुवार को अफगानिस्तान में वह लोगों को यह दिन मनाने देगा।

एक नजर में – आजादी से लेकर कैद तक का सफर
1919 में तीसरी एंग्लो अफगान युद्ध में जीत से स्वतंत्रता मिली।
1933 से 39 वर्षों तक जाहिर शाह ने देश पर सबसे शांतिपूर्ण किया।
1979 से दस साल तक सोवियत संघ का राज, विरोध में गृहयुद्ध चला।
1989 में सोवियत सेना ने देश छोड़ा, अमेरिकी सहयोग से तालिबान पनपा।
1995 तक तालिबान ने काबुल पर कब्जा करके शरिया कानून लागू कर दिया।
2001 में 26/11 हमले के बाद अमेरिकी सेना ने पहुंचकर तालिबान को खदेड़ा।
2004 में नए संविधान के बाद अफगानिस्तान में पहला राष्ट्रपति चुनाव लड़ा गया।
2015 नाटो सेना के वापस जाते ही तालिबान ने फिर शुरू किए हमले।
2020 में शांति समझौते के बाद अमेरिका 14 माह में सेना वापसी पर राजी हुआ।
2021 अमेरिकी सेना की कुछ टुकड़ियों के लौटते ही तालिबान ने दोबारा सत्ता कब्जायी ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *