नई दिल्ली । अफगानिस्तान में तालिबान की ओर से नई सरकार के ऐलान के बाद अब यह सवाल उठना लाजमी है कि अफगानिस्तान के सैनिक कहा गए ? जबकि अफगानिस्तान की एअरफोर्स पड़ोसी मुल्कों में शरण ले रखी है
लेकिन अफगानिस्तान की मिलीट्री फोर्स की ताजा स्थिति क्या है ? इस विषय में किसी के भी पास इसकी ठीक ठीक जानकारी नहीं है। इसी सिलसिले में अफगानी सैनिकों के लेकर अब एक रिपोर्ट सामने आई है। जिसमें दावा किया गया है कि काफी संख्या में ये सैनिक तालिबान की नई सरकार में शामिल हो सकते हैं। रिपोट् में यह भी दावा किया गया है कि कई सैनिकों ने उत्पीड़न की डर से अफगानिस्तान को छोड़ दिया होगा। कई पंजशीर घाटी में नार्दन एलायंश आर्मी में शामिल हों गयें है हालांकि, तालिबान ने इन सैनिकों के लिए माफी की घोषणा किया था।
यूके की सेना को यह पता चला कि वे जिन तकनीकों का उपयोग कर रहे हैं उनमें से कुछ लेटेस्ट हैं। जिनका उपयोग ज्यादातर यूके या यूएस में किया जाता है। द टाइम्स के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है इस विश्लेषण ने उन्हें यह विश्वास है कि पहले अमेरिका और ब्रिटेन की ओर से प्रशिक्षित अफगान सैनिक अब तालिबान के लिए लड़ रहे हैं। सभी तो नहीं तो कम से कम कुछ तालिबान के साथ ही हैं ।
ब्रिटेन के एक डिफेंस आफिसर ने द टाइम्स से कहा है कि एक अनट्रेंड फोर्स आमतौर पर हथियार को बेहतरीन ढंग से पकड़ती है, लेकिन अगर आपका हाथ पिस्टल की पकड़ के पीछे है और आपकी उंगली ट्रिगर गार्ड के ऊपर है तो इस तरह से फायरिंग हर कोई नहीं कर सकता है। हालांकि, कई लोग इससे सहमत नहीं होंगे क्योंकि तालिबानी भी लड़ाके हैं और उन्होंने अपने सैनिकों को सिखाया होगा कि हथियारों को कैसे संभालना है। ब्रिटेन के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि उनके पास यह दावा करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि अफगान सैनिक वास्तव में तालिबान में शामिल हो गए हैं।
विश्लेषकों ने द टाइम्स को बताया कि अगर ऐसा है भी, तो यह आश्चर्य की बात नहीं होगी। क्योंकि कई सैनिकों के पहले से तालिबान के साथ संबंध हो सकते हैं जब 1996 और 2001 के बीच सत्ता तालिबान सत्ता थी। इसके अलावा परिवार के लिए सुरक्षा की चितांएं हैं। ये वो बातें हैं जो उन्हें तालिबान में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। वहीं, एक खुफिया विश्लेषक बारबरा केलेमेन ने कहा कि उन्होंने ऐसी उचित संभावना का आकलन किया है कि कुछ अफगान सैनिक दलबदल कर तालिबान के साथ हो लिए थे ।