इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

कहानी देश के उन सात गद्दार जासूसों की, जिन्होंने अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए देश की सुरक्षा व संप्रभुता से किया समझौता – चंद्रकांत मिश्र/ सतीश उपाध्याय


फाईल फोटो

नई दिल्ली। आज हम देश के गद्दारों से संबंधित एक स्पेशल स्टोरी लेकर आये हैं। जिनमें कई गद्दार जासूसों के हैरतअंगेज कारनामें है,इसमें एक गद्दार महिला जासूस भी है जो अपने आप में बेहद दिलचस्प व हैरानी भरा है,इस महिला ऐजेंट माधुरी ने शुरू कर दी सरहद पार के लिए जासूसी,पैसे के लिए नहीं बल्कि अपमान और गुस्से के लिए ताक पर रख दी उसने 25 साल की देश सेवा,53 साल की माधुरी गुप्ता पाकिस्तान की ऐजेंसीं आईएसआई का एक मोहरा बन गईं।

प्राप्त जानकारी के अनुसार पकड़े जाने पर पूछताछ में माधुरी गुप्ता साफ बोली थी कि ISI के एजेंट को उसने ये जानकारी पैसे के लिए लीक नहीं कीं बल्कि अपमान और गुस्से में बदला लेने के लिए उसने देश से गद्दारी की।

बताया जाता है कि माधुरी गुप्ता एक प्रोमोटी अफसर थीं, जांच में वह बतायी कि उसके सीनियर उसका अपमान करते थे,मजाक उड़ाते थे और आईएसआई एजेंट राणा ने इसी का फायदा उठाते हुए उसे अपने इश्क में गिरफ्तार कर लिया।

कहा जाता है कि माधुरी गुप्ता को 1983 में भारतीय विदेश मंत्रालय के असिस्टेंट ग्रेड में नौकरी मिली। प्रमोशन के बाद पहली विदेश पोस्टिंग- क्वालालंपुर फिर बगदाद और 2007 में इस्लामाबाद में भारतीय दूतावास के प्रेस एंड इनफर्मेशन विंग में सेकेंड सेक्रेटरी के तौर पर हुई।

ग्रेड सी से नौकरी शुरू करने वाली माधुरी गुप्ता पीएचडी कर रही थी। करियर अच्छा रहा था। ग्रेड सी से ग्रेड बी में प्रमोट भी हो गई। विदेशी पोस्टिंग्स भी मिलने लगी।

सूत्रों के मुताबिक राणा कई बार पत्रकार के भेष में या वीजा आवेदक बन कर इस्लामाबाद में भारतीय उच्चायोग के दफ्तर जाता,किसी ना किसी बहाने माधुरी गुप्ता से मिलता,बातें करता,इसके अलावा दोनों ई-मेल पर भी बातें करते,धीरे-धीरे नजदीकियां बढ़ती गईं।

पाकिस्तानी ऐजेंट राणा ने माधुरी को फर्जी ईमेल के जरिए बातचीत करना और जानकारियों को इधर-उधर करने के गुर सिखा दिया था।

जब भारत की खुफिया ऐजेंसी को माधुरी की देश विरोधी हरकत के बारे में इंटल इनपुट मिला तो ऐजेंसी माधुरी पर बारीकी से नजर रखना शुरू कर दिया,फिर जब ऐजेंसी माधुरी के बारे में कंफरम हो गई कि माधुरी अब दुश्मन के हाथों कठपुतली बन चुकी है तो एक कांफरैंस के बहाने माधुरी को भारत बुलाया गया जहां उसे तुरंत डिटेन कर लिया गया,हिरासत में लंबी पूछताछ की गई इस दौरान माधुरी के कब्जे से दो मोबाइल फोन बरामद हुए हैं। इन दोनों मोबाइल के कॉल डीटेल्स से ऐजेंसी ने 10 ऐसे नंबरों की पहचान की है जिनसे माधुरी बार-बार और बहुत देर तक बात किया करती थी,और ये सभी नंबर भारतीय थे।
फिर आगे की कार्यवाही करते हुए माधुरी को जेल भेज दिया गया।।

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अब दूसरे गद्दार के बारें में बताते है,यह घटना 17 जनवरी 1985 को कुमार नारायण नाम के एक शख्स को गिरफ्तार किया गया। वो वित्त विभाग का पूर्व अफसर था और नौकरी छोड़ने के बाद उसने मरीन इंजन बनाने वाली एक कंपनी ज्वाइन कर ली थी। कहा जाता है कि वित्त मंत्रालय में अहम फैसलों से जुड़ी फाइलों की फोटो कॉपी कराकर वो हर जानकारी अपने कंट्रोलर तक पहुंचा देता था। इस मामले का खुलासा होने के बाद वित्त विभाग के कई अफसरों की गिरफ्तारी हुई।

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अब बताते है तीसरे गद्दार के बारें में, कहा जाता है कि भारत ने 18 साल तक पूरे खुफिया तरीके से अरिहंत प्रोजेक्ट पर काम किया। लेकिन सुब्बा राव नाम का एक नेवल साइंटिस्ट इस प्रोजेक्ट की पूरी जानकारी पश्चिमी देशों को बेचने की कोशिश किया था,लेकिन सुब्बा राव की समय रहते गिरफ्तारी के चलते ही दुनिया 18 साल तक इस बात से अनजान रही कि भारत न्यूक्लियर सबमरीन पर काम कर रहा है।

सांकेतिक तस्वीर

अब कहानी चौथे गद्दार की,भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानि इसरो तो जासूसों के रडार में सबसे ऊपर रहा है। आखिर दुश्मन हो या दोस्त इसरो हर दूसरे देश के लिए चुनौती है।

देश को ना जाने कितनी सैटेलाइट और लॉचिंग सिस्टम का तोहफा इसरो ने दिया है। लेकिन मालदीव की दो लड़कियों की खूबसूरती के चक्कर में इसरो के कई अहम प्रोजेक्ट लीक होते-होते बचे। अपनी खूबसूरती के दम पर इन्होंने इसरो के कई वैज्ञानिक पुलिस और यहां तक की सेना के अफसरों तक को साध लिया था। ये दोनों औरतें आईएसआई के लिए जासूसी कर रही थीं।

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देश के पाचवें देशद्रोही के गद्दार के बारे में,रविंदर सिंह भारतीय खुफिया एजेंसी के लिए काम करने वाले रविंदर सिंह को एजेंसी से जुड़े अहम दस्तावेज की फोटो खींचते हुए कैमरे पर देखा गया था। जब तक रॉ अपने ही अफसर पर हाथ डाल पाती वो 14 मई 2004 को गायब हो गया। रविंद्र सिंह रॉ में ज्वाइट सेकेट्री स्तर का अफसर था। माना जाता है कि रविंदर सिंह ने रॉ से जुड़ी तमाम जानकारियां अपने अमेरिकी कंट्रोलर तक पहुंचाई थी। कानून की नजर में इस वक्त रविंदर सिंह भगोड़ा है। रविंदर की तरह की कुछ और अफसर जासूसी के फेर में पड़ चुके हैं।

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छटे गद्दार की कहानी तो बड़ी दिलचस्प है,मई 2008 में बीजिंग में तैनात रॉ के अफसर मनमोहन शर्मा पर जासूसी का आरोप लगा। कहा गया कि चीनी लड़की के प्यार में पड़कर शर्मा ने तमाम खुफिया जानकारी उगल दी। अक्टूबर 2007 में भी रॉ के एक और अफसर रवि नायर को हॉंगकॉंग से वापस बुला लिया गया। रवि नायर पर भी चीन की लड़की के प्यार में खुफिया जानकारी चीन को देने का आरोप लगा।


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सातवें गद्दार की भी रिपोर्ट देखिये,तब देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू मॉस्को की यात्रा पर थे और रूसी खुफिया एजेंसी केजीबी ने उनके साथ गए एक अफसर को ही फंसा लिया था। लड़की के साथ खींची गई फोटो दिखाकर उसे ब्लैकमेल किया जाने लगा तो उसने ये बात खुद नेहरू को बताई तो उन्होंने ये बात हंसकर उड़ा दी थी।
यहीं कहानी है भारत के उन गद्दारों की,ये गद्दार यह जरा सा भी नहीं सोचते कि उनकी इस गद्दारी की कीमत पूरे देश को चुकाना पड़ेगा। क्या फर्क पड़ता है इन गद्दारों को ? नुकसान चाहे जिसका हो!

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