गोल्डा मेयर इजरायल की तत्कालीन प्रधानमंत्री
तेलअवीव/नई दिल्ली। वर्ष 1971 के दौरान जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ा तो उस समय दुनिया के कुछ देश अपने-अपने चहेते देशों की मदद कर रहे थे,जहां कुछ सामने से मदद में थे तो वहीं कुछ पर्दे के पीछे से,जिसमें अमेरिका खुलेआम पाकिस्तान की मदद में था तो वहीं रूस भी भारत के साथ खुलकर अपनी दोस्ती निभा रहा था, लेकिन इन सबके बीच भारत का एक और दोस्त पर्दे के पीछे से भारत को बहुत मदद पहुंचाया,वह था “इजरायल”,जिसके बारें में बहुत कम लोग ही जानते हैं।
आत्म समर्पण के दस्तावेज पर दस्तखत करते हुए पाक जनरल नियाजी।
जब पूर्वी पाकिस्तान जो कि अब बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है, वहां पश्चिमी पाकिस्तान की सेना द्वारा बांग्लादेश में अत्याचार हद से ज्यादा बढ़ गया तो लोग वहां से भागकर भारत में शरण लेने के लिए गुहार लगाने लगे ऐसे में भारत के सामने एक बड़ा शरणार्थी संकट उत्तन्न हो गया जहां भारत की तरफ से शांति के तमाम कोशिसों के बावजूद युध्द टला नहीं,और 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी एअरफोर्स ने भारत पर हमला कर दिया,फिर क्या था,भारतीय सेना भी जवाबी कार्यवाही में जुट गई। उस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थी तो वही इजरायल की प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर थी। इस युध्द के दौरान गोल्डा मेयर ने गुप्त रूप से भारत को सैनिक सहायता पहुंचाई थी जबकि दोनों देशों के बीच इजरायल से कोई राजनयिक संबंध नहीं था,लेकिन फिर भी गोल्डा मेयर के लीडरशिप में इजरायल ने भारत को सैन्य मदद पहुंचाना बेहतर समझा, हालांकि रूस खुलकर भारत की मदद में था, लेकिन फिर भी देश की मदद में इजरायल सामने आया और भारत को भरपूर मदद पहुंचाया।
एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि इसराइल की तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने गुप्त रूप से इसराइली शस्त्र विक्रेता श्लोमो ज़बलुदोविक्ज़ के ज़रिए भारत को कुछ ‘मोर्टार्स ‘और हथियार भिजवाए,यही नहीं उन हथियारों के साथ कुछ इसराइली प्रशिक्षक भी भारत आए थे, जब इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव पी एन हक्सर ने और हथियारों के लिए अनुरोध किया तो गोल्डा मेयर ने उन्हें आश्वस्त किया कि हम आपकी मदद करना लगातार जारी रखेंगे।
उस समय इसराइल ने ये संकेत भी दिया था कि इस मदद के बदले भारत को इसराइल से कूटनीतिक संबंध स्थापित करने चाहिए, जिसे उस समय भारत ने ये कहते हुए विनम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया था कि इसे सोवियत संघ पसंद नहीं करेगा।
वहीं इस युध्द में अमेरिका खुलकर पाकिस्तान की मदद में था, एक अन्य दावें के अनुसार अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपना सातवां बेड़ा भी रवाना कर दिया था, लेकिन बीच रास्ते में रूसी पनडुब्बीयों ने अमेरिकी बेड़े को वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया था।
और अंत में इस युध्द में पाकिस्तान की बहुत बुरी हार हुई, पाकिस्तानी फौज के ईस्टर्न कमांड के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने 16 दिसंबर 1971 के दिन 93 हजार पाकिस्तानी सैनिकों के साथ ढाका में आत्म समर्पण कर दिया था जो कि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद यह ऐतिहासिक सैनिक समर्पण था।
जहां बाद में इस युध्द के समाप्ति के बीस साल बाद भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव ने इजराइल के साथ राजनीतिक संबंध स्थापित किया।