इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

तालिबान पर रुस ले सकता है यू टर्न, भुक्त भोगी रह चुका है रूस,बहुत जल्द कर सकता है कोई बड़ा ऐलान – सतीश उपाध्याय (सीनियर एडिटर)

Putin calls Afghan refugees terroristsनई दिल्ली। तालिबान के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए रूस अब भविष्य को देख रहा है और रूस यह अच्छी तरह से जानता है कि अगर अफगानिस्तान में आतंकवाद ने फिर से पांव जमाया तो उसकी चपेट में पूरी दुनिया आएगी। रूस भी इस इस्लामिक आतंकवाद से अछूता नहीं है।
अफगानिस्तान में तालिबान शासन का जोरदार समर्थन करने वाला रूस अब यूटर्न लेता दिखाई दे रहा है। भारत में रूसी राजदूत ने अब यह माना है कि अफगानिस्‍तान पर भारत और रूस की चिंता एक जैसी है। उन्होंने अफगानिस्तान में आतंकवाद के फिर से जड़ें जमाने पर भी चिंता जताई है। रूस उन चुनिंदा देशों में शामिल है, जिसने 15 अगस्त को काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद अपने समर्थन का खुला इजहार किया था। अफगानिस्तान में रूसी राजदूत लगभग रोजाना तालिबान के वरिष्ठ नेताओं से मिल रहे हैं। ऐसे में काबुल से हजारों किलोमीटर दूर स्थित रूस को तालिबान की इस्लामिक अमीरात सरकार से डर लगने पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
आखिर अब तालिबान से रूस क्यों घबरा रहा है ?
रूस को अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने से इस्लामिक आतंकवाद के फिर से पांव जमाने का डर लगने लगा है। रूस यह अच्छी तरह से जानता है कि अगर अफगानिस्तान में आतंकवाद ने फिर से पांव जमाया तो उसकी चपेट में पूरी दुनिया आएगी। रूस भी इस इस्लामिक आतंकवाद से अछूता नहीं है। सुपरपावर होने के बावजूद कई दशकों तक रूस ने आतंकवाद का दंश झेला है। इस दौरान न केवल रूसी सेना के सैकड़ों जवान आतंकवाद की बलि चढ़े बल्कि आम लोगों को भी जान-माल का नुकसान उठाना पड़ा।
अफगानिस्‍तान पर भारत और रूस की चिंता एक जैसी, रूसी राजदूत ने माना बढ़ा है आतंक फैलने का खतरा ।

चेचेन्या में फिर हावी हो सकता है इस्लामी आतंकवाद ।
साल 2003 से अभी तक रूस के स्वायत्त क्षेत्र चेचेन्या में शांति बनी हुई है। लेकिन, रूस को डर है कि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत से आतंकवादियों में एक नए जोश का संचार हुआ है। सोशल मीडिया में भी आतंकवाद समर्थक सरकार के खिलाफ सशस्त्र क्रांति को जीत का सबसे उपयुक्त हथियार बता रहे हैं। ऐसे में अगर चेचेन्या के विद्रोही फिर से हमले शुरू करते हैं तो रूस के लिए इसे रोकना मुश्किल हो सकता है। चूंकि, तालिबान के लड़ाकों में चेचेन्या के भी हजारों लोग शामिल हैं। ऐसे में अफगानिस्तान में जीत मिलने के बाद ये आतंकी वापस अपने देश का रूख कर सकते हैं। इनकी वापसी के बाद ऊपर से शांत नजर आ रहे चेचेन्या में विद्रोह की आग एक बार फिर फैल सकती है।
चेचेन्या क्यों है संवेदनशील ?
चेचेन्या रूस के दक्षिणी हिस्से में स्थित कॉकस क्षेत्र का उत्तरी हिस्सा है। एक समय ऐसा भी था जब चेचन्या अपने तेल भंडार, अपनी अर्थव्यवस्था और अपने इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के कारण काफी अग्रणी क्षेत्र माना जाता था। लेकिन, 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद इस इलाके में आतंकवाद और रूसी सेना से युद्ध ने सबकुछ बर्बाद करके रख दिया। ऐतिहासिक रूप से चेचेन्या पिछले 200 साल से रूस के लिए समस्या बना हुआ है।चेचेन्या का पुराना इतिहास भी रक्तरंजित रहा है। यहां के लड़ाके 15वीं सदी में ओटोमन साम्राज्य के खिलाफ लड़े थे। रूस के बढ़ते प्रभाव के कारण 1817 में चेचेन्या में कॉकस युद्ध शुरू हो गया। साल 1858 में रूस ने चेचेन्या में इमाम शमील के विद्रोह को कुचला था। उनके नेतृत्व में इस्लामी लड़ाके इस क्षेत्र को रूस से अलग एक देश बनाने की मांग को लेकर हिंसक गतिविधियों में लिप्त थे।
आतंकवाद की आग में कब झुलसा चेचेन्या
1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ तब चेचेन्या के विद्रोहियों को भी एक मौका दिखा। उन्होंने तब नए नए रूसी गणराज्य के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। उनकी मांग थी कि चेचेन्या को भी रूस से अलग एक देश की मान्यता दी जाए। लेकिन, रूस किसी भी कीमत पर इन विद्रोहियों को मान्यता देने और आजादी के लिए तैयार नहीं था। चेचेन्या के इन विद्रोहियों का नेतृत्व तब रूसी वायु सेना के वरिष्ठ अधिकारी दूदायेव कर रहे थे। उस समय रूस के राष्ट्रपति राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने चेचेन विद्रोहियों से चर्चा के लिए सैकड़ों अफसरों को तुरंत ग्रोज्नी रवाना किया, लेकिन विद्रोहियों ने सभी अधिकारियों को वापस लौटा दिया।
1996 में रूस और चेचेन विद्रोहियों में हुआ समझौता
रूस ने विरोध की बढ़ती आग को देखते हुए 1994 में अपनी सेना को चेचेन्या में जंग के लिए उतार दिया। उस दौरान रूसी सेना ने पूरे चेचेन्या में जमकर तबाही मचाई। चेचेन्या के विद्रोहियों ने भी रूसी सेना पर कई जवाबी हमले किए। लगभग ढाई साल तक चले इस जंग में लाखों लोगों की मौत हुई। जिसके कारण रूस ने अंतरराष्ट्रीय दबाव को देखते हुए चेचेन विद्रोहियों के साथ शांति समझौता कर लिया। इस समझौते से चेचेन्या को काफी स्वायत्तता दी गई, लेकिन स्वतंत्रता की मांग को ठुकरा दिया गया। 997 में चेचन्या की सेना के प्रमुख जनरल अस्लान मस्खादौफ को राष्ट्रपति चुना गया।
पुतिन का पहला टास्क था चेचन्या विद्रोह ।
1999 में व्लादिमीर पुतिन ने रूसी राष्ट्रपति का पद संभालते ही चेचेन्या पर सख्ती शुरू कर दी। उन्होंने 2003 में चेचेन्या में एक विवादास्पद जनमत संग्रह करवाया और उसे और अधिक स्वायत्तता दे दी। इस जनमत संग्रह के जरिए चेचेन्या में नए संविधान का निर्माण भी किया गया। इसके बाद पुतिन के आदेश पर चेचेन्या में चुनाव भी करवाए गए। इस चुनाव में रूस समर्थक नेता अखमद कदिरौफ की एकतरफा जीत हुई जबकि पूर्व राष्ट्रपति अस्लान मस्खादौफ को चुनाव में शामिल होने की मंजूरी नहीं दी गई। 2004 में चेचेन विद्रोहियों ने बम विस्फोट कर रूस समर्थक राष्ट्रपति अखमद कदिरौफ को मार डाला। जिसके बाद से चेचेन्या में हालाक एक बार फिर बिगड़ने लगे।

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