
ढाका सरेंडर के दौरान दोनों पक्षों के सैन्य अधिकारी (फाईल फोटो)
नई दिल्ली। वर्ष 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए जंग में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त देते हुए उसके लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के साथ 93 हजार पाक सैनिकों को युध्दबंदी के रूप में गिरफ्तार कर लिया था,इस दौरान वेस्टर्न फ्रंट पर भारतीय सैनिक भी पाक फौज के हत्थे चढ़ गए थे,जहां अगस्त 1972 में शिमला समझौते के दौरान दोनों देशों ने युद्धबंदियों को रिहा कर दिया था, लेकिन इस दौरान 54 भारतीय सैनिक जिनमें कुछ सैन्य अधिकारी भी शामिल थे वे रिहा नहीं किये गए,और पाकिस्तान द्वारा बार-बार इंकार किये जाने के बाद भारतीय फौज भी अपने इन 54 साथियों को भूल जाने में ही बेहतरी समझी,वहीं इनके परिवार वाले भी अपने दिलों पर पत्थर रखकर करीब-करीब भूल ही चुके थे।

जंग के दौरान पाक फौज के सरेंडर होने के बाद भारतीय सैनिक खुशी जाहिर करते हुए (फाईल फोटो)
फिर अचानक वर्ष 1974 में भारतीय सेना के इन 54 युद्ध बंदियों में से एक मेजर अशोक सूरी का एक खत पाकिस्तान से आया,जिसमें उन्होंने अपने जिंदा होने का जिक्र किया था। जबकि भारतीय सेना उन्हें ‘किल्ड इन एक्शन’ घोषित कर चुकी थी। इसके बाद भी 1975 में कराची से एक पोस्टकार्ड आया जिसमें उन्होंने 20 अन्य भारतीय सैन्य अधिकारियों के बारे में लिखा था। इसके अलावा भी कई सबूत समय-समय पर सामने आते रहे हैं। उदाहरण के लिए बीबीसी लंदन की वरिष्ठ पत्रकार विक्टोरिया शॉफील्ड की 1980 में आई किताब ‘भुट्टो-ट्रायल एंड एक्जीक्यूशन’ में ऐसी जेल का जिक्र था, जिसमें भारतीय युद्धबंदी कैद थे।
इसी तरह टाइम न्यूजपेपर में दिसंबर 1971 में पाकिस्तान की जेल में कैद एक व्यक्ति की तस्वीर छपी। मेजर ए.के. घोष के परिवार ने दावा किया कि यह उनकी तस्वीर है। पाकिस्तानी अखबारों में भी पाक जेल मंे कैद भारतीय सैनिक की तस्वीर छपी। पाकिस्तानी रेडियो पर भी भारतीय सैनिकों के वहां होने की बात सुनी गई।
1983 में पाक सरकार ने लापता सैनिकों के परिवार को जेलों में जाकर अपने सैनिकों को पहचानने का मौका देने के लिए पाकिस्तान बुलाया था। लेकिन यह पाक की नौटंकी साबित हुई।
वहीं वर्ष 2012 में ओमान में काम कर रहे एक भारतीय कारपेंटर ने दावा किया कि उसे एक सिख व्यक्ति मिला जिसका दावा था कि वह सिपाही जसपाल सिंह है और ओमान जेल में चार भारतीय युद्धबंदी कैद में हैं। इस तरह के सबूतों की लंबी फेहरिस्त मौजूद है।
इसके बावजूद भारतीय सशस्त्र सेना के इन 54 सैनिकों और अधिकारियों को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद ‘मिसिंग इन एक्शन’ (लापता) या ‘किल्ड इन एक्शन’ (मृत) घोषित किया गया था। लेकिन माना जाता है कि ये अब भी जिंदा हैं और पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में कैद हैं। इसमें 30 सैनिक थल सेना के और 24 वायु सेना से हैं। इन्हें वेस्टर्न फ्रंट पर लड़ते हुए गिरफ्तार किया गया था। शिमला समझौते के तहत 93,000 पाकिस्तानी सैनिक वापस भेजने के बावजूद सरकार ने इन 54 भारतीय सैनिकों को लेकर कोई समझौता नहीं किया था।
इस प्रकरण में एक और चौंकानें वाली रिपोर्ट सामने आई थी, जिसमें कहा गया था कि तत्कालीन भारतीय अथॉरिटीज को भारतीय युद्धबंदियों की सूची जारी करने में ही उस समय 7 साल का वक्त लग गया था।
वहीं वर्ष 1979 में तत्कालीन विदेश मंत्री समरेंद्र कुंडु ने भी ऐसे 40 सैनिकों की सूची लोक सभा में रखी थी। इसमें उन जेलों का भी उल्लेख था,जहां ये सैनिक रखे गए थे। बाद में सूची में 14 नाम और जुड़े लेकिन कभी स्थिति स्पष्ट नहीं की गई। 1989 तक पाकिस्तान वहां किसी भी युद्धबंदी के होने से इनकार करता रहा। फिर प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने माना कि पाक की जेलों में भारतीय सैनिक बंद हैं।
इस्लामाबाद में दिसंबर 1989 में भुट्टो और राजीव गांधी की मुलाकात में भी इस विषय पर बात हुई। लेकिन कई साल बाद, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने किसी भी युद्धबंदी के वहां होने की बात को सिरे से खारिज कर दिया। तब से समय-समय पर ‘मिसिंग 54’ को भारत वापस लाने की बेनतीजा बातें होती रही हैं। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र से पूछा कि क्या 54 भारतीय युद्धबंदी अब भी ज़िंदा हैं। तब सरकार की तरफ से जवाब आया, ‘हम नहीं जानते और सरकार ने संभावना व्यक्त किया कि वे अब जिंदा नहीं हैं, क्योंकि पाकिस्तान अपनी जेलों में उनके होने से साफ इनकार करता रहा है।
कुल मिलाकर वर्ष 1971 से आज तक इस मामले में कई उतार-चढ़ाव देखा गया यानि कई बार माना भी गया और कई बार इंकार भी किया गया,लेकिन असलियत आजतक सामने नहीं आ सकी,यहां तक कि इस मामले में कई हिंदी फिल्में भी बनी।
अब बड़ा सवाल यह है कि भारत के पास दुनिया की सबसे बेहतरीन और वेल प्रोफेसनल इंटेलीजेंस ऐजेंसी “रा” के होने के बावजूद भी भारत सरकार या अन्य भारतीय ऐजेंसी भी इस रहस्य से आजतक पर्दा नहीं उठा सकी ?
इसी कड़ी में एक और सवाल पैदा होता है कि जब आप आज तक अपने इन 54 फौजियों की स्थिति स्पष्ट नहीं कर सकें तो आपसे क्या उम्मीद की जा सकती है ?
