तालिबान ने यहां करीब 5 घंटे तक अपना झंडा फहराए रखा लेकिन उसके बाद उसे हटा दिया गया। वहीं, रुखाह में लड़ाई जारी है। उन्होंने बताया है कि इलाके में सेल टावर काम नहीं कर रहे हैं इसलिए जानकारी बाहर नहीं आ पा रही है।
तालिबान ने दावा किया कि उसने अफगानिस्तान में विद्रोही सेनाओं के ‘किले’ पंजशीर पर हमला कर लिया है। तालिबान के प्रवक्ताओं के मुताबिक पंजशीर की राजधानी बाजारक पर कब्जा कर लिया गया और तालिबानी झंडा भी लहराया गया। हालांकि, अब मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि बाजारक को पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और उनकी सेना ने आजाद करा लिया है।
अमेरिकी न्यूज चैनल फॉक्स नेशन की पत्रकार लारा ने ट्वीट किया है कि प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक अफगानिस्तान के ‘राष्ट्रपति’ सालेह और अफगान स्पेशल ऑपरेशन ने बाजारक को वापस हासिल कर लिया है। पंजशीर की राजधानी बाजारक में ही अहमद मसूद के पिता और ‘पंजशीर के शेर’ कहे जाने वाले शाह अहमद मसूद दफन हैं।
लारा के मुताबिक तालिबान ने यहां करीब 5 घंटे तक अपना झंडा फहराए रखा लेकिन उसके बाद उसे हटा दिया गया। वहीं, रुखाह में लड़ाई जारी है। उन्होंने बताया है कि इलाके में सेल टावर काम नहीं कर रहे हैं इसलिए जानकारी बाहर नहीं आ पा रही है।
तालिबानी लड़ाकों ने दावा किया था कि वे पंजशीर की राजधानी बाजारक में दाखिल हो चुके हैं और अपना झंडा गाड़ दिया है। तालिबान के प्रवक्ता बिलाल करीमी ने ट्विटर पर ऐलान किया कि तालिबान ने सभी आठ जिलों पर कब्जा कर लिया और लड़ाई जारी है। इससे पहले उन्होंने दावा किया कि रुखाह जिले में और पुलिस हेडक्वार्टर पर कब्जा कर लिया और विद्रोही सेना के कई सैनिक मारे गए।
अफगान पत्रकार नतीक मलिकजादा के मुताबिक पंजशीर घाटी को जीतना इतना आसान भी नहीं है। इसे ‘मौत की घाटी’ यूं ही नहीं कहा जाता। नतीक ने बताया है कि पंजशीर घाटी पर कब्जा आखिर इतना मुश्किल क्यों है। उन्होंने समझाया है कि पंजशीर एक पूरी घाटी है और सिर्फ एक सड़क है जो इसके आखिर तक जाती है। इसे मुख्य घाटी की सड़क कहते हैं। इस सड़क के दोनों ओर से दर्जनों घाटियां निकलती हैं और विद्रोही दल के सैनिक इन घाटियों से लड़ाई लड़ रहे हैं।
मलिकजादा का कहना है कि अगर तालिबान को पंजशीर पर कब्जा करना है तो उन्हें हर घाटी को जीतने के लिए दर्जनों बार लड़ाई लड़नी पड़ेगी। उन्होंने बताया है कि USSR भी इस सड़क पर आया और 9 साल में 9 बार कुछ अलग-अलग घाटियों तक पहुंचा और हर बार उसे खाली हाथों लौटना पड़ा। उनके मुताबिक तालिबान के पास अहमद का ऑफर लेकर वापस लौटने का विकल्प था लेकिन उन्होंने जंग को चुना है और अब वे असली जंग का सामना करेंगे।