आॅपरेशन कैक्टस के दौरान (फाईल फोटो)
नई दिल्ली। बात 3 नवंबर 1988 की है जब श्रीलंकाई उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम के उग्रवादी मालदीव का तख्तापलट करने पहुंचे। बताया जाता है कि ये उग्रवादी स्पीडबोट्स के जरिये टूरिस्ट बनकर मालदीव पहुंचे थे। श्रीलंका में कारोबार करने वाले मालदीव के निवासी अब्दुल्लाह लथुफी ने उग्रवादियों के साथ मिलकर तख्ता पलट की योजना बनाई थी,और इस तख्तापलट की साजिश रचने में मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नसीर भी शामिल थे। और यह खतरनाक साजिश श्रीलंका में रची गई थी।
आॅपरेशन कैक्टस के दौरान (फाईल फोटो)
प्राप्त जानकारी के अनुसार तीन नबंवर 1988 को मालदीव पहुंचे उग्रवादियों ने जल्द ही राजधानी माले की सरकारी इमारतों को अपने कब्जे में ले लिया,प्रमुख सरकारी भवन, एयरपोर्ट,बंदरगाह और टेलिविजन स्टेशन उग्रवादियों के नियंत्रण में हो गया। उग्रवादी तत्कालीन राष्ट्रपति मामून अब्दुल गय्यूम को भी गिरफ्तार करना चाहते थे, लेकिन इसके पहले गय्यूम ने कई देशों सहित भारत को भी इमरजेंसी संदेश भेजा और तत्काल फौजी मदद मांगी,तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री राजीव गांधी मालदीव की मदद के लिए फौरन तैयार हो गए।
आॅपरेशन कैक्टस के दौरान (फाईल फोटो)
तत्काल देश की तमाम ऐजेंसियों के साथ एक सीक्रेट मीटिंग की गई और इंडियन आर्मी को मालदीव संकट का टास्क दिया गया फिर 3 नवंबर की रात को ही आगरा कैंट से भारतीय सेना की पैराशूट ब्रिगेड के करीब 1600 जवान मालदीव के लिए भारतीय वायुसेना के एक विशेष विमान से मालदीव के लिए रवाना हो गए, नौ घंटे के भीतर नॉन स्टॉप उड़ान भरते हुए भारतीय सेना के ये जाबांज कमांडों मालदीव के हुलहुले एयरपोर्ट पर पहुंचे,बताते चले कि यह एयरपोर्ट पहले से ही उग्रवादियों के कब्जे में था।
आॅपरेशन कैक्टस के दौरान (फाईल फोटो)
बताया जाता है कि हुलहुले एअरपोर्ट पर पहुंचते हीं भारतीय सेना का सामना सीधे टास्क के दुश्मनों से हुआ,इन दुश्मनों से निपटने के बाद भारतीय फौज बिना देर किये राजधानी माले पहुंची,इसी बीच कोच्चि से भारत ने और भी सेना की टुकड़ी मदद में भेजी और राजधानी माले के ऊपर भारतीय वायुसेना के मिराज विमान उड़ान भरने लगे, इसी बीच भारतीय नौसेना के युद्धपोत गोदावरी और बेतवा भी हरकत करने लग गए, फिर नौसेना ने माले और श्रीलंका के बीच उग्रवादियों की सप्लाई लाइन काट दी,जिस वजह से दुश्मन घबराहट में आकर भागने लगा।
आपरेशन कैक्टस के दौरान (फाईल फोटो)
आॅपरेशन के कुछ घंटों में हीं भारतीय फौज माले से उग्रवादियों पर कहर बनकर टूट पड़ी और उग्रवादी दहशत में वापस श्रीलंका की ओर भागने लगे उसी समय इन उग्रवादियों ने एक मालवाहक जहाज को अगवा कर लिया,इस घटना को अमेरिकी नौसेना ने इंटरसेप्ट किया और तत्काल इसकी जानकारी भारतीय नौसेना को दी गई फिर आईएनएस गोदावरी हरकत में आया और गोदावरी से एक हेलिकॉप्टर को मरीन कमांडों के साथ अपहरण किये गये जहाज को छुड़ाने के लिए भेजा गया,अगवा किये गये जहाज पर भारतीय नौसेना के जाबांज मरीन कमांडो उतर गए और दुश्मन पर कहर बरपा दिये, और जल्द ही थोड़े ही समय में मरीन कमांडों दुश्मनों को काबू में करते हुए जहाज को मुक्त करा लिए,इस कमांडों आॅपरेशन में कुल 17 उग्रवादी और बंधक मारे गए।
आॅपरेशन कैक्टस के दौरान (फाईल फोटो)
कहा जाता है कि देश की आजादी के बाद विदेशी धरती पर भारत का यह पहला कमांडों आॅपरेशन था,जो कि पूरी तरह से सफल रहा और इस सैन्य अभियान को “ऑपरेशन कैक्टस” का नाम दिया गया,और यह आॅपरेशन भारतीय सेना के पैराशूट ब्रिगेड के ब्रिगेडियर फारुख बुलसारा के लीडरशिप में किया गया था,दो दिन के भीतर यह मिलीट्री आॅपरेशन पूरा हो चुका था। उग्रवादियों का गय्यूम के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश नाकाम हो चुकी थी। भारतीय सेना के इस आॅपरेशन की सफलता पर पूरी दुनिया ने तारीफ की लेकिन श्रीलंका ने इसका कड़ा विरोध किया।
तत्कालीन राष्ट्रपति मालदीव मामून अब्दुल(फाईल फोटो)
विदेशी धरती पर सिर्फ एक टूरिस्ट मैप के जरिये भारतीय सेना ने अपने इस ऑपरेशन को अंजाम दिया,इस ऑपरेशन के बाद किसी संभावित हमले से निपटने के लिए करीब 150 भारतीय सैनिक साल भर तक मालदीव में तैनात रहे।