इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

“सीक्रेट-आॅपरेशन” न्यूज पोर्टल समूह ने उस दावें को किया खारिज,जिसमें कहा गया था कि रूसी हथियारों में लगने वाले कलपुर्जों को भारत चुपके से रूस को दे रहा है सप्लाई – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)


सांकेतिक तस्वीर।

लंदन/नई दिल्ली। 24 फरवरी से लेकर अब तक तमाम मौकों पर भारत पर रूस-यूक्रेन जंग में खुलकर रूस के विरोध में जाने के लिए प्रेरित करने की तमाम कोशिशें हुई,यहां तक की कई बार चीनी हमलें का डर भी दिखाया गया,फिर भी भारत अपनी “तटस्थता” वाली नीति पर अडिग रहा,हालांकि इस दौरान कुछ ऐसे भी मौके सामने आये जहां भारत को इस जंग में हो रही ज्यादती पर बोलना पड़ा लेकिन बिना नाम लिये जैसे जब बूचा नरसंहार की रिपोर्ट सामने आई तो भारत को खुलकर इस घटना की निंदा करने के साथ-साथ निष्पक्ष जांच की बात का समर्थन करना पड़ा अब ये बात दीगर है कि इस दौरान भारत ने किसी का नाम नहीं लिया।

लेकिन इस बीच एक ऐसा दावा सामने आया है जिसमें कहा गया है कि इस जंग में भारतीय कंपनियां रूस को पश्चिमी देशों में बने कलपुर्जे रूसी हथियारों के लिए भेज रही हैं। दरअसल,ये चौंकाने वाला कथित खुलासा रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टीट्यूट (RUSI) की एक रिपोर्ट में किया गया है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि भारत में मौजूद कंपनियां चोरी-चुपके हथियारों के कलपुर्जे बनाने वाली पश्चिमी कंपनियों की मदद कर सकती है। ये कंपनियां रूसी हथियारों के लिए पश्चिमी देशों के कलपुर्जे यूक्रेन भेजने में मदद कर सकती हैं।

चूंकि,रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण पश्चिमी देशों की कंपनियां सीधे तौर पर रूस को हथियारों के कलपुर्जे नहीं दे सकती हैं। ऐसे में भारतीय कंपनियों के जरिए हथियारों के कलपुर्जे को यूक्रेन में तैनात किए गए रूसी साजों समान तक पहुंचाया जा सकता है। RUSI के सीनियर रिसर्च फेलो जैक वाटलिंग और निक रेनॉल्ड की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि यूक्रेन युद्ध के दौरान रूसी सैन्य उपकरणों में ऐसे पार्ट्स मिले हैं जो पश्चिमी आर्म्स प्रतिबंधों में शामिल हैं।

बताया जा रहा है कि ऑपरेशन Z: द डेथ थ्रोज ऑफ एन इंपिरियल डेल्यूजन नामक इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि युद्ध के मैदान से ज्यादातर रूसी हथियारों में ऐसे कलपुर्जे मिले हैं। जैसे 9M949 गाइडेड 300mm रॉकेट में अमेरिका में बने फाइबर ऑप्टिक गाइरोस्कोप का इस्तेमाल होता है। ऐसे ही कुछ और रूसी हथियारों में विदेशी तकनीक का इस्तेमाल होता है।

हालांकि रिपोर्ट में ये स्पष्ट नहीं किया गया है कि पश्चिमी देशों की इन कंपनियों को उनके उपकरणों के पाने वाले का अंदाजा है या नहीं। इस दौरान यह भी कथित खुलासा हुआ है कि इसी साल के मार्च के मध्य में रूसी प्रशासन ने एक इंटरडिपार्टमेंटल कमिटी बनाई थी। इस कमिटी को यह देखना था कि कौन सा हथियार रूस में बन सकते हैं और किन उपकरणों को मित्र देशों से हासिल किया जा सकता है ?

रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस इन चैनलों को खुला रखकर दुनिया को ब्लैकमेल करने की भी तैयारी में है। उदाहरण के लिए रूसी क्रूज और बैलिस्टिक मिसाइल में प्रयोग होने वाले कंप्यूटर के पार्ट्स की खरीदारी रूसी स्पेस प्रोग्राम के लिए किया जाता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि चेक रिपब्लिक, सर्बिया, अर्मेनिया, कजाखिस्तान, तुर्की, भारत और चीन की कंपनियां रूसी सप्लाई की जरूरतों को पूरी करने के लिए एक हद तक रिस्क ले सकती हैं। इन देशों की कंपनियां बिना सरकार को बताए ऐसे रूट्स के जरिए रूस को मदद कर सकती हैं।

वहीं इस दावें की जब “सीक्रेट-आॅपरेशन” न्यूज पोर्टल समूह द्वारा बिंदुवार तरीकें से गहन विश्लेषण व पड़ताल किया गया तो हकीकत कुछ और हीं सामने आया जहां पाया गया कि इस कथित दावें की पूरी रिपोर्ट बिना किसी ठोस सबूत के सार्वजनिक की गई है जो कि प्रथम दृष्ट्या झूठी रिपोर्ट प्रतीत होता है। जो कि झूठे प्रोपैगैंडा का मात्र हिस्सा हैं और इस कथित दावें में भारत का नाम क्यों लिया गया है ? कारण बताने की आवश्यकता नहीं है। चूंकि भारत का इतिहास रहा है कि इस तरह के संवेदनशील मामलों में भारत हमेशा पूरी सावधानी बरतता है इसके अलावा भारत “क्वाड” और G-7 का सम्मानित सदस्य है,ऐसे में सवाल हीं नहीं उठता कि भारत इस तरह की हरकत को अंजाम दें,आखिर भारत दुनिया का एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है और भारत को अपना प्रोटोकॉल बखूबी मालूम है। इसलिए “सीक्रेट-आॅपरेशन” न्यूज पोर्टल समूह इस कथित दावें को पूरी तरह से खारिज करता है। वहीं इस कथित दावें पर भारत की तरफ से अभी कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

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