नई दिल्ली। 24 दिसंबर 1999, के दिन जब भारतीय विमान को अपहरण कर अफगानिस्तान के कंधार ले जाया गया फिर आतंकियों द्वारा भारत सरकार को ब्लैक मेल करने का खेल शुरू किया गया,तब देश में किसी को समझ में नही आ रहा था कि इस समस्या का निस्तारण कैसे किया जाए तब अजीत डोभाल को याद किया गया फिर अजीत ने बड़ी चतुराई से बड़ी समस्या को छोटी समस्या में परिवर्तित कर मामले को रफा दफा कर दिया।
बताते चले कि 24 दिसंबर 1999 के दिन भारतीय विमान IC-814 नेपाल के काठमांडू एअरपोर्ट से नई दिल्ली के लिए उड़ान भरा,उस समय इस विमान में कुल 176 यात्री और 15 क्रू मेंबर्स मौजूद थे। विमान के उडा़न भरने के बाद विमान जैसे ही भारतीय सीमा में प्रवेश किया कुछ अज्ञात बंदूकधारियो ने जहाज को हाइजैक कर लिया और पायलट पर दबाव बनाकर जहाज को अफगानिस्तान के कंधार एअरपोर्ट पर ले गये।
बताते चले कि तब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था और उस समय तालिबान का भारत से किसी भी प्रकार का कोई डिप्लोमैटिक संबंध नहीं था।
फिर अपहरणकर्ताओं ने भारत सरकार को ब्लैक मेल करना शुरू किया,इन आतंकियों ने भारत के सामने शर्त रखी कि इनके 35 आतंकी जो कि भारत के विभिन्न जेलों में बंद है तत्काल छोड़ा जाए और 200 मिलियन डॉलर भी भारत दे तब जहाज के सभी यात्रियो और क्रू मेंबर को सही सलामत छोड़ा जाएगा।
उस समय भारतीय ऐजेंसियों को सूझ नही रहा था कि इन आतंकियों से कैसे निबटा जाए ? और कैसे अपने यात्रियो को सही सलामत भारत लाया जाय ? फिर किसी ने अजित डोभाल का नाम सुझाया।
उस समय अजित डोभाल राॅ के एक मिशन पर अंडरकवर ऐजेंट के रूप में पाकिस्तान में स्तिथ भारतीय दूतावास में बतौर एक सामान्य अधिकारी के पद पर तैनात थे।
फिर डोभाल को तत्काल नई दिल्ली तलब किया गया और उन्हें टास्क दिया गया कि वें इस विषय को जल्द से जल्द निस्तारित करें।
टास्क मिलने के बाद अजित अपने मिशन पर लग गए, उन्होंनें तत्काल अपने खुफिया सूत्रों से जानकारी किया कि इस घटना का मास्टर माइंड कौन है ? और इस आतंकी संगठन को बैकअप सपोर्ट कौन कर रहा है ?
रिपोर्ट मिला कि इस पूरी घटना का मास्टर माइंड और बैकअप करने वाला सिर्फ पाकिस्तान की खुफिया ऐजेंसी हीं है,डोभाल को यहां तक की जानकारी मिली कि पाकिस्तानी खुफिया ऐजेंसी इस समय भारत के सभी महत्वपूर्ण टेलीफोन नंबरों पर पूरी फील्डिंग लगाकर बैठी है यानि सभी टेलीफोनिक बातों को पाकिस्तानी ऐजेंसी के अधिकारी लगातार टेप कर रहे थे।
उधर ISI के निर्देश पर अपहरणकर्ता भारत पर अपनी नाजायज मांगों को पूरा करवाने के लिए लगातार दबाव बनाते ही जा रहे थे।
फिर क्या था अजित ने एक चाल चली चूंकि अजित को पता ही था कि भारत के सभी महत्वपूर्ण टेलीफोन नंबरों को ISI टेप कर रही हैं,डोभाल ने इस विषय पर पहले इजरायल फोन कर इस समस्या से निबटने के लिए मिलीट्री आॅपरेशन का सुझाव व सहयोग मांगा फिर इसी तरह से रुस और अमेरिका के साथ साथ अन्य कई देशों से भी बातचीत शुरू किया और इधर वो अपहरणकर्ताओं से लगातार बातचीत जारी रखते हुए आतंकियों से समय मांगने का बहाना करते रहे और मदद के संबंध में इन देशों से बातचीत भी करते रहे जो कि सिर्फ एक चाल थी दुश्मन को गुमराह करने की।
जब डोभाल को लगा कि अब पत्ता खोल देना चाहिए तो डोभाल ने आतंकीयों के सामने अपना शर्त रखना शुरू कर दिया,आतंकियों का शर्त था कि उनके 35 आतंकी और 200 मिलियन डॉलर भारत उन आतंकियों को दे जबकि डोभाल मात्र एक आतंकी को छोड़ने की शर्त पर इन आतंकियों को उलझाये रखें,इसी दौरान घटना का मास्टर माइंड ISI के अधिकारियों के समझ में आया कि ये डोभाल इन आतंकियों को बेवकूफ बनाकर सिर्फ बातचीत में उलझा रहा है और इसका प्लान किसी बड़े मिलीट्री-आपरेशन का है चूंकि ISI के लोग डोभाल की सारी बातचीत टेप करके सुन रहे थे जिसमें बार-बार तमाम मिलीट्री आॅपरेशन का जिक्र किया गया था।
फिर पाकिस्तानी खुफिया ऐजेंसी ने तत्काल इन अपहरणकर्ताओं को निर्देश दिए कि फौरन छोटी से छोटी डील लाॅक करके मामले को रफा दफा करो नहीं तो इस मामले में इजरायल की सेना किसी बड़े मिलीट्री-आपरेशन को अंजाम दे सकती है। फिर क्या था अपहरणकर्ता दहशत में आकर सिर्फ तीन आतंकवादियों को छोड़ने की डील पर समझौता तय किये और अन्य 32 आतंकीयों की रिहाई और 200 मिलीयन डॉलर की शर्त वाली बात सब खत्म हो गई,फिर डोभाल इन तीनों आतंकियों को साथ लेकर कंधार पहुंचे और डील के मुताबिक इन तीनों आतंकियों को उन अपहरणकर्ताओं को सौंप दिये फिर अपने भारतीय यात्रियो और जहाज के क्रू मेंबर को तथा कुछ शव जिनकों कि इन आतंकवादियों ने जहाज में ही मार दिया था इन सभी को लेकर भारत लौट आयें।