इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

पूर्वी लद्दाख बार्डर पर 16वें दौर की वार्ता के क्रम में बेहद चौंकाने वाला दावा आया सामने, दावें में कहा गया PP-15 हीं नहीं PP-16 से भी पीछे हटी भारतीय सेना, जबकि PP-16 पर पिछले 50 सालों से था भारत का कब्जा – चंद्रकांत मिश्र/अमरनाथ यादव


सांकेतिक तस्वीर।

नई दिल्ली। 16वें दौर की बातचीत के बाद भारत और चीन की सेनाओं ने पूर्वी लद्दाख सेक्टर में पेट्रोलिंग पॉइंट-15 (PP-15) के पास गोगरा हाइट्स-हॉट स्प्रिंग्स इलाके में डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया को अब पूरी कर लिया है। बता दे कि इस बिंदु पर काफी समय से भारत और चीन के बीच गतिरोध बना हुआ था। वहीं,इस डिसइंगेजमेंट को लेकर कुछ भारतीय मीडिया समूहों ने लद्दाख के एक काउंसलर के हवाले से बेहद गंभीर खुलासा किया है,जिसमें यह दावा किया गया है कि भारतीय सैनिक न केवल पीपी -15 बल्कि पीपी -16 से भी पीछे हट गए हैं,जबकि पिछले 50 सालों से PP -16 पर भारत का कब्जा रहा है। ऐसे में यह दावा 16वें दौर की वार्ता के निर्णय को सवालों के कटघरे में खड़ा करती है,फिलहाल हम स्वतंत्र रूप से इस दावें पुष्टि नहीं करते हैं।

दरअसल,भारत के एक प्रतिष्ठित मीडिया समूह ने लद्दाख के एक काउंसलर के हवाले से यह रिपोर्ट किया है कि भारतीय सेना PP-16 से भी पीछे हटी है जहां करीब 50 सालों से भारतीय सेना की परमानेंट पोस्ट थी और यह एक झटका है। इसी क्रम में यह भी दावा किया गया कि यह चरागाह की भूमि होती थी जो अब बफर एरिया बन चुकी है। अब कौन सा एलएसी होगा और नया पोस्ट कहां होंगे ? यह साफ नहीं है।

काउंसलर के हवाले से आगे भी बताया गया है कि करीब 30-40 किमी का इलाका बफर जोन बन गया है। काउंसलर “कोंचोक स्टैंजिन” ने कहा है कि आज की तारीख में फिंगर 4 और फिंगर 3 के बीच का एरिया भी बफर जोन बन चुका है। पीपी-15 से लेकर रेजंगला तक का पूरा एरिया बफर जोन हुआ है और इन सब का स्थानीय लोगों के जीवन पर असर पड़ेगा।

यही नहीं नए एलएसी को लेकर काउंसलर कोंचोक स्टैंजिन ने आगे भी बताया कि पहले पीपी-16 पर हमारी पोस्ट है जिसे शिफ्ट कर रहे हैं तो कहीं न कहीं तो हमारी पोस्ट होगी। अब इसकी जानकारी सामने आएगी, लेकिन जिन इलाकों को हम खाली करके आ रहे हैं, वह तो बफर जोन बन गया है और वहां पर कोई पेट्रोलिंग नहीं होगी। उन्होंने यह कहा कि 16 राउंड की जो भी बातचीत हुई है, उसके बारे में स्थानीय नागरिकों को कुछ भी नहीं बताया गया है। हालांकि हम लोग यहां कई पीढ़ियों से रह रहे हैं और आखिर हमारे स्थानीय लोगों का भी तो हक बनता है लेकिन इस सब चीजों के बारे में हमें कुछ नहीं बताया जाता है।

काउंसलर कोंचोक ने इस डिसइंगेजमेंट प्रोसेस पर कहा कि इस प्रक्रिया से स्थानीय लोग बेहद नाराज हैं। यह देश के लिहाज से सही हो सकता है कि बॉर्डर पर शांति होनी चाहिए लेकिन अपने तरफ की इतनी ज्यादा जमीन विवादित क्षेत्र में चले जाना यह स्थानीय लोगों के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।

अब कोंचोक की माने तो यह 16वें दौर की वार्ता के बाद लिये गए निर्णय सवालों के घेरे में है, क्योंकि जब पिछले 50 सालों से PP-16 पर भारतीय सेना की पोस्ट थी तो वहां से पीछे हटने का क्या मायने है ? ऐसी कौन सी मजबूरी थी कि इसे बफर एरिया घोषित करना पड़ रहा है। फिलहाल,इस ताजे दावें को लेकर भारत सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

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