सांकेतिक तस्वीर।
मॉस्को। पिछले सात महिनों से रूस-यूक्रेन के बीच जारी भीषण जंग अब भयानक परमाणु युध्द के रूप में बदलते दीख रहा है। जहां इसी बीच रूस ने यूक्रेन के इलाके को अपने देश में शामिल करने के लिए हाल में ही जनमत संग्रह करवाया है। वहीं रूस के इस जनमत संग्रह अब बेहद चौंकाने वाला दावा सामने आया है, जिसमें रूसी मीडिया के हवाले से दावा किया गया है कि डोनबास क्षेत्र में जनमत संग्रह के दौरान पर्यवेक्षक के तौर पर भारत का एक अधिकारी भी मौजूद था। हालांकि, भारत सरकार ने इस विवाद पर अभी तक आधिकारिक तौर पर कुछ भी नहीं कहा है। माना जा रहा है कि एक-दो दिन में रूस इन इलाकों को औपचारिक रूप से अपने देश का हिस्सा घोषित कर देगा।
दरअसल,रसिया टुडे टीवी चैनल पर प्रसारित किए गए रूसी आधिकारिक संदेश में कहा गया है कि इस जनमत संग्रह के दौरान भारत, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, सीरिया, टोगो, स्पेन, कोलंबिया, दक्षिण अफ्रीका, घाना, सर्बिया, आइसलैंड और लातविया के के प्रतिनिधि डोनेट्स्क और मेकेवका में मतदान केंद्रों पर पर्यवेक्षक के तौर पर मौजूद रहे।
बता दे कि इस कथित दावें में साफ किया गया है कि रूसी अधिकारियों के संदेश में पूर्णिमा आनंद नाम की एक अधिकारी भी है,जिन्होंने जनमत संग्रह के दौरान भारत से एक पर्यवेक्षक के रूप में काम किया था। हालांकि, भारत ने रूस और यूक्रेन दोनों से एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने का आग्रह किया है। ऐसे में एक भारतीय प्रतिनिधि की उपस्थिति के दावे से हड़कंप मच गया है। बता दे कि भारत ने आधिकारिक रूप से अभी तक रूस के इस जनमत संग्रह का न तो समर्थन किया है और ना ही विरोध। ऐसे में रूस और यूक्रेन अपने-अपने मानचित्रों में उन विवादित इलाकों को शामिल करेंगे, जिन पर कब्जा किसी दूसरे देश का और हक किसी दूसरे का होगा।
वहीं,रूसी टीवी पर पूर्णिमा आनंद को यह कहते हुए दिखाया गया है कि “पश्चिमी मीडिया में, वे हमें बताते हैं कि लोगों को बंदूक की नोक पर वोट देने के लिए मजबूर किया जाता है। हम आज यहां हैं और हम खुद देख सकते हैं कि लोग, पूरे परिवार के चेहरे पर मुस्कान के साथ, रूस में शामिल होने के लिए वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने के लिए आ रहे हैं। लोग खुश हैं, रूस के हिस्से के रूप में एक शांतिपूर्ण, लंबे समय से प्रतीक्षित भविष्य के लिए उनकी आंखों में आशा चमक रही है। और हम अपने हिस्से के लिए, समझते हैं कि इस जनमत संग्रह के बाद, दुनिया बिल्कुल नई हो जाएगी, क्योंकि अब डोनबास में एक नया इतिहास बनाया जा रहा है। ”
इधर,भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स में भारतीय अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया है कि भारत सरकार ने जनमत संग्रह में किसी भी अधिकृत प्रतिभागी को प्रतिनिधि या पर्यवेक्षक के रूप में नहीं भेजा था। इसी कड़ी में एक भारतीय अधिकारी ने यह खुलासा किया कि ब्रिक्स के तहत ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम (ब्रिक्स-आईएफ) के रूप में कोई संगठन नहीं है। ब्रिक्स के तहत सभी संगठन अंतर-सरकारी संगठन हैं और ब्रिक्स-आईएफ ब्रिक्स पहल के तहत सूचीबद्ध नहीं है
उधर, पूर्णिमा आनंद ने कहा है कि ब्रिक्स इंटरनेशनल फोरम एक सिविल सोसाइटी इनिशिएटिव है। इसे 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के आने के बाद शुरू किया गया था। उन्होंने दावा किया कि उनका फोरम 2015 ऊफा ब्रिक्स घोषणा का पालन कर रहा है जिसमें ब्रिक्स के तहत नागरिक समाज की पहल की भागीदारी का आह्वान किया गया था। उन्होंने स्वीकार किया कि उसका संगठन ब्रिक्स के हिस्से के रूप में पंजीकृत होना बाकी है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि हम ब्रिक्स के तहत पंजीकरण करना चाहते हैं लेकिन ब्रिक्स का कोई सचिवालय नहीं है जहां हम उस प्रक्रिया के लिए आवेदन कर सकें।
बताते चले कि रूस-यूक्रेन जंग अब बेहद नाजुक दौर में पहुँच चुका है, जहां अब परमाणु युध्द की भयानक धमकी रूस की तरफ से लगातार दी जा रही है,इतना ही नहीं रूस दुश्मन की तरफ से होने वाले परमाणु हमले की संभावना को लेकर अपने नागरिकों को मैडिसिन उपलब्ध करा रहा है। यही नहीं मॉस्को की कई सड़को को आमलोगो के लिए बंद भी कर दिया गया है। क्योंकि वार फ्रंट पर मोबलाइजेशन को लेकर और परमाणु हमले के संभावित खतरे को देखते हुए रूस के नागरिकों में देश छोड़ने की होड़ सी मच गई है। बताया जा रहा है कि रूसी नागरिक देश छोड़ने के लिए बड़ी रकम चुकाने के लिए मजबूर है। जहां इसी बीच अमेरिका, पोलैंड व बुल्गारिया ने अपने नागरिकों को तत्काल रूस छोड़ने का निर्देश भी जारी कर दिया है,जिस वजह से और भी भगदड़ मची हुई है।