सांकेतिक तस्वीर।
बिश्केक/मॉस्को। रूस-यूक्रेन जंग के बीच सोवियत संघ का हिस्सा रहे मध्य एशियाई देश किर्गिस्तान ने रविवार को रूस के नेतृत्व वाले सामूहिक सुरक्षा संधि संगठन (सीएसटीओ) के छह देशों के साथ होने वाले ज्वाइंट ड्रिल को एकतरफा फैसले में रद्द कर दिया है। बता दे कि यह युद्धाभ्यास सोमवार से शुरू होने वाला था । किर्गिस्तान के रक्षा मंत्रालय ने हालांकि सोमवार से शुक्रवार तक देश के पूर्वी क्षेत्र में होने वाले इस संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘इंडस्ट्रक्टिबल ब्रदरहुड-2022’ कमांड और स्टाफ अभ्यास को रद्द किये जाने का कोई कारण नहीं बताया है। किर्गिस्तान के इस फैसले को लेकर दुनिया भर के मीडिया समूहों में इसे रूस के लिए बड़े झटके रूप में चर्चा तेज हो गई है। जहां तमाम विशेषज्ञों द्वारा यह दावा किया जा रहा है कि रूस पर जारी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते किरगिस्तान ने ऐसा फैसला किया है। जबकि तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर हमारा अनुमान इसके उलट है। यानि हमारा मानना है कि इस साल मध्य सितंबर में किरगिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच जो जंग हुई थी उसमें किर्गिस्तान का रूस मदद नहीं कर सका जिस वजह से किर्गिस्तान मॉस्को से नाराज चल रहा है। इसी कारण से किर्गिस्तान ने ऐसा फैसला किया है।
दरअसल,इस सैन्य अभ्यास में सीएसटीओ के सदस्य देश रूस, आर्मेनिया, बेलारूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के सैन्य कर्मी शामिल थे और सर्बिया, सीरिया तथा उज्बेकिस्तान समेत पांच और देशों को पर्यवेक्षकों के तौर पर आमंत्रित किया गया था। इस युद्धाभ्यास में वो देश ही शामिल होने वाले थे, जिनकी रूस के साथ अच्छे संबंध हैं। इस युद्धाभ्यास को वैश्विक अलगाव के बीच रूस के शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा था।
बता दे कि किर्गिस्तान पूर्व सोवियत संघ का देश है। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद किर्गिस्तान का उदय हुआ था। आजादी के बाद से ही किर्गिस्तान और रूस के बीच संबंध काफी प्रगाढ़ हो गए थे। हाल में ही किर्गिस्तान और तजाकिस्तान के बीच हुई सैन्य झड़प में भी व्लादिमीर पुतिन के हस्तक्षेप के बाद ही संघर्ष विराम हो पाया था।
इतना ही नहीं वर्ष 2003 में किर्गिस्तान ने बिश्केक के पूर्व में कांत एयर बेस पर रूसी एयर फोर्स को तैनात किया है। 20 सितंबर 2012 को, रूस और किर्गिस्तान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें रूस को 2017 से आगे के 15 वर्षों के लिए किर्गिस्तान में एक संयुक्त सैन्य अड्डा रखने की अनुमति है। इस समझौते पर व्लादिमीर पुतिन और अल्माज़बेक अताम्बायेव के बीच बिश्केक में हस्ताक्षर किए गए थे। रूस ने किर्गिस्तान को कई सैन्य हथियार दिए हैं, जिनमें एस-300 मिसाइल सिस्टम और स्ट्राइक ड्रोन महत्वपूर्ण हैं।
अब इतना करीब होकर भी किर्गिस्तान ने ऐसा फैसला क्यों किया ? जिसे लेकर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में जबरदस्त चर्चा शुरू हो गई है। जहां इस दौरान तमाम दावें भी सामने आ रहे है जिनमें रूस-यूक्रेन जंग के चलते रूस पर लगे प्रतिबंधों को मुख्य कारण माना जा रहा है। लेकिन हमारी पड़ताल कुछ और कह रही है। क्योंकि, किर्गिस्तान और ताजिकिस्तान के बीच सैन्य झड़प मुख्य कारण है। दरअसल, इन दोनों देशों के बीच कई जगहों पर सीमा निर्धारण निश्चित नहीं है, जिस वजह से अक्सर इन दोनों देशों के बीच सैन्य झड़पें हुआ करती है। अभी एक साल पहले भी इन दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष हुई थी जिसमें दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जहां इसी कड़ी में अभी मध्य सितंबर में भी इन दोनों देशों के बीच सैन्य झड़प हो गई थी। जहां इस दौरान रूस ने दोनों के बीच सीजफायर कराया था। यानि जब जब इन दोनों देशों के बीच जंग हुई रुस सिर्फ सीज फायर कराता रहा जबकि स्थाई समाधान की दिशा में कोई पहल नहीं किया। इतना ही नहीं किर्गिस्तान को अपेक्षित सैन्य सहयोग भी मॉस्को उपलब्ध कराने में असफल रहा। जिस वजह से किर्गिस्तान ने ज्वाइंट ड्रिल में हिस्सा लेने से साफ इंकार कर दिया। जो कि रूस के लिए एक बड़ा झटका हैं।