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फ्रांस के पूर्व आर्मी अफसरों ने किया सैन्य शासन का समर्थन,वहां का माहौल ठीक नहीं है -चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)

दूसरे विश्व युद्ध के बाद से सैनिक तख्ता पलट एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के विकासशील देशों में होने वाली घटना रही है। पश्चिम के विकसित देशों के बारे में आम समझ यही रही है कि वहां लोकतंत्र स्थायी रूप ले चुका है। इसीलिए फ्रांस में सैनिक तख्ता पलट की चर्चा को दुनिया ने ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया है। असल में ऐसी चर्चा को ही आश्चर्यजनक समझा गया है। जबकि हकीकत यह है कि सेना के रिटायर 20 जनरलों और 1000 से ज्यादा रिटायर सैनिक अधिकारियों और जवानों ने देश में सैनिक शासन लागू करने का आह्वान किया है।
उन्होंने ये बयान 21 अप्रैल को फ्रांस में सैनिक तख्ता पलट की कोशिश नाकाम होने की 60वीं बरसी पर जारी किया। लेकिन उसके तुरंत बाद इस पर चुप्पी रही। विश्व मीडिया में भी इस पर कम ही ध्यान दिया गया। लेकिन आखिरकार मैक्रों सरकार ने पूर्व सैनिक अधिकारियों की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया। इसमें मैक्रों सरकार ने पूर्व सैनिकों के बयान की तुलना 60 साल पहले राष्ट्रपति द गॉल का तख्ता पलटने की हुई नाकाम कोशिश से की।
लेकिन अगले राष्ट्रपति चुनाव में धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली की उम्मीदवार मेरी ली पेन ने पूर्व सैनिकों के बयान के समर्थन करते हुए उन पूर्व सैनिकों से ‘फ्रांस के लिए संघर्ष’ में शामिल होने का आह्वान किया है। इससे जाहिर हुआ है कि देश में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने के सवाल पर राजनीतिक दलों में आम सहमति नहीं है। फ्रांस के मीडिया में ली पेन के रुख पर हैरत जताई गई है। लेकिन ली पेन की पार्टी- नेशनल रैली- का लोकतंत्र विरोधी ताकतों से पुराना रिश्ता रहा है। साठ साल पहले जब सैनिक तख्ता पलट की कोशिश हुई थी, तब उनके पिता ने ऐसी कोशिश करने वाले अधिकारियों का समर्थन किया था। नेशनल रैली का गठन ली पेन के पिता ने ही किया था।
गौरतलब है कि पूर्व सैनिकों के बयान में दो टूक शब्दों में तख्ता पलट की अपील की गई है। इसमें कहा गया है कि अगर राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ‘इस्लामिक तत्वों’ के जरिए ‘फ्रांस का विखंडन’ रोकने में नाकाम रहते हैं, तो सेना को सत्ता अपने हाथ में ले लेनी चाहिए। इन पूर्व सैन्य अधिकारियों ने एक खुले पत्र में देश को चेताया है कि अगर सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो देश में ‘गृह युद्ध’ छिड़ जाएगा। पूर्व सैनिकों के पत्र में कहा गया है कि फ्रांस खतरे में है। उन्होंने कहा- ‘रिटायर होने के बावजूद हम फ्रांस के सैनिक हैं। मौजूदा परिस्थितियों में अपने खूबसूरत देश के हश्र को लेकर हम उदासीन नहीं रह सकते।’
सैन्य अधिकारियों ने ये बयान देश में हाल के वर्षों में हुए इस्लामी चरमपंथियों के हमले से बनी स्थिति के बीच दिया। खास कर पिछले साल एक स्कूली क्लास में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाने वाले शिक्षक सैमुएल पैटी की हत्या के बाद से देश में इस्लाम विरोधी भावनाएं भड़क रही हैं।
लेकिन इन हालात के बीच सैनिक तख्ता पलट की वकालत की जाएगी, ये बात 21 अप्रैल के पहले तक लोगों की सोच से भी बाहर थी। इससे देश में सेना की भूमिका पर नए सवाल खड़े हो गए हैं। मैक्रों सरकार में सेना मामलों की मंत्री फ्लोरेंस पार्ले ने एक ट्विट में कहा- ‘राजनीति के बारे में सेना के सदस्यों की गतिविधि को निर्देशित करने वाले दो अखंड सिद्धांत हैं- तटस्थता और वफादारी।’ उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर किसी मौजूदा सैनिक बयान पर दस्तखत किया होगा, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
गौरतलब है कि फ्रांस में पूर्व या मौजूदा सैनिकों पर धर्म और राजनीति के बारे में सार्वजनिक रूप से विचार जताने पर रोक है। पार्ले ने कहा है कि जिन लोगों ने खुले पत्र पर दस्तखत किए हैं, उन्होंने इससे संबंधित कानून को तोड़ा है। इसलिए फ्रांस सेना के चीफ ऑफ स्टाफ को कानून पर सख्ती से अमल करने के लिए कहा गया है।
साठ साल पहले अल्जीरिया से फ्रांस से चल रहे युद्ध के बीच सेना के एक हिस्से ने राष्ट्रपति द गॉल का तख्ता पलटने की कोशिश की थी। उस समय अल्जीरिया फ्रांस का उपनिवेश था। तब सैनिक अधिकारियों ने कहा था कि उन्होंने अल्जीरिया की आजादी को रोकने के लिए ये कदम उठाया था। तब उन सैनिक अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की गई थी।

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