स्पेशल रिपोर्ट

16 दिसंबर 1971 को जब इंडियन आर्मी ने दुश्मन को उसके 93 हजार नफरीं के साथ सरेंडर करने पर किया मजबूर, वहीं रूसी परमाणु पनडुब्बीयों के आगे अमेरिका का सातवां बेड़ा भी हुआ बैक – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)


ढाका में सरेंडर दस्तावेज पर दस्तखत करते हुए सामने से दायें पाक फौज के लेफ्टिनेंट जनरल ए के नियाजी साथ में मौजूद भारतीय सेना के तत्कालीन DGMO लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा साथ में अन्य भारतीय सैन्य अधिकारी
फोटो साभार-(इंडियन आर्मी के ईस्टर्न कमांड के ट्वीटर से)

नई दिल्ली। जब वर्ष 1971 में पूर्वी पाकिस्तान आज के बांग्लादेश में राजनीतिक संकट के चलते लाखों शरणार्थी भारत की ओर आने लगे तो नई दिल्ली फौरन हरकत में आ गई। अमेरिका से संपर्क साधा गया और उसे इस संकट का तुरंत समाधान करने को कहा गया, लेकिन अमेरिका इसके विपरीत ही रहा। अमेरिका के इस हरकत को देखते हुए भारतीय ऐजेंसियां और तीनों सेनाएं एक ज्वाइंट सीक्रेट आॅपरेशन के तहत अपनी तैयारियों में जुट गई। जहां इस दौरान बांग्लादेश में पाकिस्तानी फौज के जारी भीषण अत्याचार से त्रस्त बांग्लादेशी नागरिकों को “मुक्ति वाहिनी” नाम के संगठन में शामिल किया जाने लगा और उन्हें बेहतरीन आर्मी ट्रेनिंग भी दी जाने लगी।

भारतीय सेना द्वारा इन बांग्लादेशी नागरिकों को ट्रेनिंग देने की रिपोर्ट सामने आते हीं पाकिस्तानी फौज भारत के खिलाफ जंग की तैयारी में जुट गई। वहीं भारतीय इंटेलीजेंस ऐजेंसियों को भी पाक फौज के इस सीक्रेट प्लान की जानकारी मिल गई। फिर क्या था दोनों हीं ओर तैयारियां तेज हो गई, देर थी हमले की पहल की, जहां 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी एअरफोर्स के लड़ाकूं विमानों ने हमले की पहल करते हुए भारतीय एअरबेस को टारगेट करते हुए हमला शुरू कर दिया। जिसके बाद भारत ने भी पाकिस्तान के खिलाफ काउंटर अटैक शुरू कर दिया।

वहीं,इंडियन आर्मी के ईस्टर्न कमांड के तत्कालीन कमांडिंग ऑफिसर जैकब के सैनिकों ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) पर मुक्ति वाहिनी के साथ मिलकर हमला कर दिया। जहां 13 दिनों तक चले इस भीषण जंग में पाक फौज के लेफ्टिनेंट जनरल ए के नियाजी भारतीय सेना के सामने अपने 93 हजार सैनिकों के साथ 16 दिसंबर 1971 को सरेंडर कर दिया। सरेंडर के बाद भी मुक्ति वाहिनी के लड़ाकें जनरल नियाजी को मार डालना चाहते थे, लेकिन सरेंडर करने के दौरान वहां मौजूद भारतीय सेना के तत्कालीन DGMO लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और लेफ्टिनेंट जनरल जैकब ने अपनी सूझबूझ से पाक फौज के लेफ्टिनेंट जनरल ए के नियाजी और उनके 93 हजार सैनिकों के साथ उनके परिजनों को भी बचा लिया।

बता दे कि शीतयुद्ध के दौरान दुनिया का यह सबसे बड़ा सैन्य आत्म समर्पण था। इस दौरान भारत ने अमेरिका और चीन को चैलेंज देते हुए पाकिस्तान के दो टुकड़े करते हुए बांग्लादेश जैसे नये देश को जन्म दिया। इस भीषण जंग में रूस और इजरायल ने भी भारत की भरपूर सैन्य मदद की थी। क्योंकि,इस लड़ाई में अमेरिका और ब्रिटेन एक ज्वाइंट आॅपरेशन के तहत पाकिस्तान की मदद के लिए भारत के खिलाफ हमला करने का प्लान बना लिया था,इतना हीं नहीं उस समय भारतीय ऐजेंसियों ने दुश्मन के कुछ फोन कॉल को इंटरसैप्ट किया जिसमें दावा किया जा रहा था कि अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपना सातवां बेड़ा रवाना कर दिया है। मालूम हो कि अमेरिका का यह सातवां बेड़ा उस समय अपने आप में सबसे शक्तिशाली युध्दपोत था, हालांकि, बीच रास्ते में हीं रूसी पनडुब्बीयां घातक परमाणु हथियारों से लैश होकर अमेरिका के इस खतरनाक युध्दपोत के सामने आ गई। मजबूरी में अमेरिका को अपने इस मिशन को एबार्ट करना पड़ा।

इस तरह से भारत अपने उस ऐतिहासिक सैन्य आॅपरेशन में बड़ी कामयाबी हासिल किया। उसके बाद भारतीय सेना हर साल 16 दिसंबर को अपने इस ऐतिहासिक आॅपरेशन की सफलता को सेलीब्रेट करती है। यहां यह भी याद रखना चाहिए कि उस जंग में भारत की तत्कालीन नव गठित खुफिया ऐजेंसी राॅ ने भी बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, यहीं कारण था कि जंग से जुड़ी दुश्मन के सभी सीक्रेट रिपोर्ट्स भारतीय सेना को पहले ही मिल जाता था, जिसके बाद आगे की सैन्य रणनीति बनाने में भारत को बड़ी मदद मिलती थी।

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