एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

अमेरिका को यूक्रेन की मदद करना पड़ रहा भारी, पहले खाड़ी देश और अब अफ्रीकी देशों से अमेरिका की जड़े उखाड़ने के मिशन पर जुटा रूस – नित्यानंद दूबे (स्पेशल एडिटर)


सांकेतिक तस्वीर।

मॉस्को/अबूजा। पहले खाड़ी देश और अब अफ्रीका में रूस के बढ़ते प्रभाव ने अमेरिका और पश्चिमी देशों की धुकधुकी बढ़ा दी है। दरअसल,नाइजर में तख्तापलट के बाद से ही हालात काफी गंभीर हैं। नाइजर के लोग रूसी झंडों के साथ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इस बीच पश्चिम अफ्रीका के 15 देशों के रक्षा प्रमुखों ने नाइजर में राजनीतिक और सुरक्षा स्थिति पर चर्चा के लिए बुधवार को नाइजीरिया की राजधानी अबूजा में एक आपातकालीन बैठक बुलाई है।

इसके पहले रविवार को पश्चिमी अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीसीडीएस) की समिति ने भी एक बैठक की थी। इसमें नाइजर में संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने के लिए एक हफ्ते की समयसीमा दी गई थी। बता दे कि नाइजर में 26 मई को सैन्य तख्तापलट हुआ था। इसमें राष्ट्रपति गार्ड के कमांडर जनरल अब्दौराहामाने त्चियानी ने नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ौम को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया था।

जहां 30 जुलाई को बुलाई गई बैठक में इकोवास ने चेतावनी देते हुए कहा था कि एक सप्ताह के भीतर प्राधिकरण की मांगें पूरी नहीं होने की स्थिति में इकोवास नाइजर गणराज्य में संवैधानिक व्यवस्था को बहाल करने के लिए आवश्यक सभी उपाय करेगा। ऐसे उपायों में बल का प्रयोग शामिल हो सकता है। नाइजर में सैन्य तख्तापलट के बाद पहले से ही अशांत और आतंक से प्रभावित साहेल क्षेत्र में एक बड़ी अशांति पैदा हो गई है। इकोवास के सदस्य देशों में बेनिन, बुर्किना फासो, काबो वर्डे, कोटे डी आइवर, गाम्बिया, घाना, गिनी, गिनी बिसाऊ, लाइबेरिया, माली, नाइजर, नाइजीरिया, सिएरा लियोन, सेनेगल और टोगो के साथ 5.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र शामिल है।

इस बीच नाइजर के पड़ोसी बुर्किना फासो और माली भी इसी तरह के सैन्य तख्तापलट के बाद इकोवास से निलंबित किए जा चुके हैं। इन दोनों देशों को चेतावनी देते हुए इकोवास ने कहा कि अगर नाइजर के खिलाफ कोई सैन्य हमला किया गया तो यह उनके देशों के खिलाफ भी युद्ध की घोषणा के समान होगा। इस बीच नागरिक-नेतृत्व वाले लोकतंत्र की दिशा में कोई प्रगति दिखाने में विफल रहने के बाद गिनी ने भी तख्तापलट पर नाइजर के खिलाफ प्रतिबंध लगाने के लिए इकोवास की निंदा की है। गिनी ने कहा कि ये प्रतिबंध केवल गरीबी से प्रभावित राष्ट्र में और अधिक पीड़ा पैदा करेंगे।

वहीं,पिछले कुछ दिनों में अमेरिका, फ्रांस, यूरोपीय संघ और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने क्षेत्र में सरकार के असंवैधानिक परिवर्तनों के नकारात्मक प्रभाव पर अपनी चिंता व्यक्त की है। उन्होंने इकोवास के साथ-साथ अफ्रीकी संघ के प्रयासों का समर्थन किया है। नाइजर में संवैधानिक व्यवस्था की रक्षा के लिए इकोवास के मजबूत नेतृत्व की सराहना करने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मंगलवार को नाइजीरियाई राष्ट्रपति मोहम्मद बजौम और अफ्रीकी संघ आयोग के अध्यक्ष मौसा फाकी महामत को फोन किया। इस दौरान ब्लिंकन और फाकी ने राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ौम की तत्काल रिहाई की की मांग की।

इधर,बुर्किना फासो के अंतरिम राष्ट्रपति इब्राहिम ट्रोरे को अफ्रीका में पश्चिम विरोधी खेमे का नायक माना जा रहा है। ट्रोरे हाल ही में सेंट पीटर्सबर्ग में दूसरे रूस-अफ्रीका शिखर सम्मेलन में भाग लेने और 29 जुलाई को कॉन्स्टेंटाइन पैलेस में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ बैठक करने के बाद बुर्किना फासो लौटे हैं। उनके लौटने पर देश में भव्य स्वागत किया गया। सितंबर में बुर्किना फासो की सत्ता पर कब्ज़ा करने वाले 35 वर्षीय कैप्टन ट्रोरे का देश की राजधानी औगाडौगू में उनके हजारों समर्थकों ने नायक की तरह स्वागत किया था।

उल्लेखनीय है कि शीतयुद्ध के बाद यह पहला ऐसा मौका है जब रूस खाड़ी देशों के अलावा अब अफ्रीका में अपनी जड़ें मजबूत करने के मिशन पर लगातार सक्रिय है। जैसा कि परिणाम भी मॉस्को के अनुकूल है। ऐसे में अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए यह सबसे बुरी खबर साबित हो रहा है। चूंकि एक ओर अमेरिका के लीडरशिप में नाटों और यूरोप के कई देश रूस के खिलाफ यूक्रेन को लगातार सैन्य सहायता पहुंचा रहे हैं तो वही रूस भी अपने इन दुश्मनों को पहले खाड़ी देश और अब अफ्रीकी देशों से बाहर खदेड़ने के मिशन पर लगातार जुटा हुआ हैं। अब रूस के मिशन को फेल करने के लिए अमेरिका आगे क्या कदम उठाता है ? यह तो आने वाला वक्त हीं बता सकता है।

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