सांकेतिक तस्वीर।
वाशिंग्टन/अबूजा। रूस-यूक्रेन जंग के बीच अब अफ्रीका की धरती पर अमेरिका और रूस एक-दूसरे के खिलाफ आमने-सामने की जंगी तैयारियों में जुट गए हैं। दरअसल,सैन्य तख्तापलट के बाद से नाइजर वैश्विक महाशत्तियों के बीच जंग का मैदान बना हुआ है। इस देश पर कब्जे के लिए रूस और अमेरिका ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया है। मामला इतना गंभीर है कि नाइजर पर अमेरिका समर्थक पड़ोसी देशों का गठबंधन कभी भी हमला कर सकता है। हालांकि, रूस ने भी नाइजर के खिलाफ किसी भी सैन्य कार्रवाई के खिलाफ गंभीर अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दे दी है। बता दे कि अफ्रीका के ही बुर्किना फासो और माली जैसे देश खुलकर रूस के समर्थन में नाइजर की मदद कर रहे हैं। ऐसे में नाइजर के खिलाफ जारी युद्ध के पूरे अफ्रीका में फैलने की आशंका है।
दरअसल,नाइजर में 26 मई को सैन्य तख्तापलट हुआ था। जहां इसमें राष्ट्रपति गार्ड के कमांडर जनरल अब्दौराहामाने त्चियानी ने नाइजर के राष्ट्रपति मोहम्मद बज़ौम को अपदस्थ कर सत्ता पर कब्जा जमा लिया था। इसके बाद से ही नाइजर के आम लोग रूस और चीन के झंडों के साथ जश्न मना रहे हैं। इस दौरान पूरे नाइजर में बड़ी संख्या में अमेरिका और फ्रांस विरोधी प्रदर्शन भी हुए हैं। नाइजर के लोग इसे दूसरी आजादी बता रहे हैं। उनका दावा है कि नाइजर पश्चिम की दासता से वास्तविक तौर पर अब आजाद हुआ है।
यही कारण है कि अब अमेरिका और पश्चिमी देश इस तख्तापलट की कार्यवाही से बौखलाये हुए हैं। जिससे पेंटागन के इशारे पर अफ्रीका में अमेरिका के दोस्त पश्चिमी अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ECOWAS) ने नाइजर के खिलाफ सैन्य शक्ति के इस्तेमाल की धमकी दी। इकोवास के सदस्य देशों में बेनिन, बुर्किना फासो, काबो वर्डे, कोटे डी आइवर, गाम्बिया, घाना, गिनी, गिनी बिसाऊ, लाइबेरिया, माली, नाइजर, नाइजीरिया, सिएरा लियोन, सेनेगल और टोगो शामिल हैं। इकोवास की वर्तमान में अध्यक्षता नाइजीरिया के पास है। इस बीच नाइजीरिया के राष्ट्रपति मोहम्मद बजौम ने भी अपने देश की संसद से नाइजर के खिलाफ सैन्य कार्रवाई पर सहमति मांगी है। दूसरी और अफ्रीकी संघ भी अमेरिका के साथ कदम में कदम मिलाते हुए नाइजर के खिलाफ आग बबूला है।
बता दे कि अमेरिका और रूस यहां सिर्फ इसलिए आपस में भिढ़ने के लिए तैयार है,क्योंकि नाइजर के प्राकृतिक संसाधनों में यूरेनियम, कोयला, सोना, लौह अयस्क, टिन, फॉस्फेट, पेट्रोलियम, मोलिब्डेनम, नमक और जिप्सम शामिल हैं। इतना ही नहीं नाइजर के पास दुनिया का सबसे बड़ा यूरेनियम भंडार भी है। नाइजर के तेल का भी भंडार है। नाइजर दुनिया में यूरेनियम का पांचवां सबसे बड़ा उत्पादक था और दुनिया के कुल उत्पादन में इसका योगदान लगभग 7.8% था। हालाँकि, यूरेनियम की कीमत में लगातार उतार-चढ़ाव नाइजर की अर्थव्यवस्था में अस्थिरता का कारण बनता है। खनन क्षेत्र कोयला, सोना, चांदी, चूना पत्थर, सीमेंट, जिप्सम, नमक और टिन जैसी अन्य खनिज वस्तुओं के उत्पादन में भी शामिल था। यही कारण है कि दुनिया के सैन्य गुट अब यहां पूरी तरह से हावी होने के लिए भीषण जंगी तैयारियों में जुट गए हैं, हालात यह है कि यह जंग अब तक उन लड़ाइयों से भी ज्यादा भीषण और खतरनाक हो सकती है, जो कि अब तक दुनिया के कई हिस्सों में हो चुकी है।
कुल मिलाकर यहां अब साफ हो चुका है कि यूक्रेन जंग में तो रूस के खिलाफ अमेरिकी गुट आफ रिकार्ड लड़ाई लड़ रहा था, लेकिन अफ्रीका की जमीन पर आमने-सामने की जंग होगी, ऐसे में बताने की जरूरत नहीं है कि इस युद्ध की भयावहता कितनी गंभीर होगी। क्योंकि,दोनों हीं तरफ से तेजी से अपने-अपने गुटों को सैन्य आपूर्ति भेजने की भी रिपोर्ट सामने आ रही है। ऐसे में अफ्रीका जंग दुनिया के कई देशों को अपने पड़ोसी देशों के साथ जंग छेड़ने का खुला मौका दे देगा, जिससे विश्वयुद्ध यूक्रेन जंग में नहीं हो सका, वह अब अफ्रीका से शुरू हो सकता है। ऐसे में चीन के लिए यह गोल्डन चांस साबित होगा। क्योंकि,चीन पहले से ही ताइवान और भारत के खिलाफ जंगी तैयारियों में जुटा हुआ हैं, और उसे जैसे ही यह मौका मिलता है, निश्चित रूप से वह किसी न किसी देश पर हमला करेगा।