इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

8800 हजार करोड़ डालर खर्च के बावजूद भी अमेरिका का मिशन तालिबान क्यों रहा फेल ? – चंद्रकांत मिश्र (एडिटर इन चीफ)

अफगानिस्तान आज फिर से उसी दोराहे पर खड़ा है, जहां 20 साल पहले था. दो दशक से ज्यादा के संघर्ष के बाद फिर से उसके भविष्य पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं. 9/11 के हमले के बाद अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने अल-कायदा को खत्म करने के लिए अपनी सेना को अफगानिस्तान में उतार दिया था. इसके बाद से ही अमेरिका लगातार अफगानिस्तान में तालिबान से जंग लड़ रहा है.
इस दौरान अमेरिका में बुश के बाद तीन राष्ट्रपति बदल गए. बिल क्लिंटन, बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति रहे. मगर हालात नहीं बदले. बीते कुछ महीने में तो अफगानिस्तान में हिंसा और ज्यादा बढ़ गई. मगर तालिबान काबू में नहीं आ सका. अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इस बीच अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा कर दी है. बाइडेन आश्वासन दे रहे हैं कि अफगानिस्तान को फिर से आतंकियों का स्वर्ग नहीं बनने देंगे. मगर मौजूदा हालात चिंता बढ़ा रहे हैं. तालिबान ने अफगानिस्तान के काफी हिस्से पर अपना कब्जा कर लिया है. अफगान सेना तालिबानी लड़ाकों के आगे काफी कमजोर दिख रही है. आखिर दो दशक तक अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी अफगान सेना क्यों विफल हो गई, आइए जानते हैं.

अमेरिका ने खर्च किए 8800 करोड़ डॉलर
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अपने सैनिकों को वापस बुलाने की घोषणा करते हुए कहा था, ‘यह अमेरिका की सबसे लंबी जंग की समाप्ति है. अब अमेरिकी सैनिकों के घर लौटने का समय आ गया है.’ हालांकि बाइडेन ने कहा है कि वह अफगान सेना को मदद करते रहेंगे. इस बीच अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने कहा था कि अफगान सेना अपनी सीमा और नागरिकों की रक्षा में सक्षम है. बीसीफोकस न्यूज के मुताबिक बीते दो दशक में अमेरिका ने अफगानिस्तान को सुरक्षा के लिए 8800 करोड़ डॉलर की मदद मुहैया कराई है. इस साल अकेले ही सुरक्षा के नाम पर 300 करोड़ डॉलर का खर्च हुआ.

फिर आखिर क्यों फेल हुई अफगान सेना
अफगानिस्तान की सुरक्षा पर अरबों डॉलर खर्च करने के बाद भी अफगान सेना अभी भी तालिबान को काबू में नहीं कर पाई है. सेना में अच्छे नेतृत्व और योग्य अधिकारियों की कमी है. अफगान सेना को ट्रेनिंग देने वाले अमेरिका के एक सैन्य जनरल ने कहा था, ‘दुख की बात यह है कि केक अभी भी पूरी तरह से पका नहीं है. हमारा सब्र अब जवाब दे चुका है. हम सब ने सर्वसम्मति से वापसी का फैसला लिया है. हमारी वापसी से कई जगहों पर समस्या हो सकती है. यह अफगान सेना तैयार नहीं है.’

वेतन भी समय पर नहीं मिलता
अमेरिकी कमांडर ने बताया कि अफगान सेना में अच्छे नेतृत्व की भारी कमी है. सैनिकों को सैलरी भी समय नहीं मिलती. तालिबान से जंग में अफगान सेना के बहुत से जवान मारे गए हैं. इस वजह से उनका मनोबल भी काफी कम हो गया है. तालिबान का दावा है कि उसने 80 फीसदी अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है.

अफगानिस्तान के बाहर से सक्रिय रहेगा अमेरिका
जो बाइडेन ने यह भी कहा था कि अमेरिका अफगानिस्तान के बाहर से आतंकवाद के खिलाफ अपने अभियान को जारी रखेगा. बाइडेन ने यह भी संकेत दिए हैं कि वह पाकिस्तान, ताजिकिस्तान या गल्फ की खाड़ी में अपने लड़ाकू विमान तैनात कर सकता है. तालिबान ने अभी भी आतंकी संगठन अल-कायदा से संबंध नहीं तोड़े हैं. अमेरिका और तालिबान के बीच संधि की यह अहम शर्त है. अमेरिकी वायुसेना हेलमंद प्रांत में अल-कायदा के आतंकियों को निशाना बनाते रहे हैं. CIA के पूर्व निदेशक जनरल डेविड पेट्राइस अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का नेतृत्व कर चुके हैं. उनका कहना है कि यहां आतंकी गतिविधियां अभी भी चिंता का विषय बनी हुई है. अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद से आतंकियों पर नजर रखना और मुश्किल हो जाएगा.

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