इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट

केंद्र और राज्य के अधीन ऐजेंसियों को देश की आंतरिक सुरक्षा को और भी अधिक मजबूत करने के लिए किया गया था MAC का गठन, कारगिल युध्द के बाद ही इसे लागू करने की शुरू हुई थी कवायद, अब केंद्रीय गृह मंत्री इस सिस्टम को और भी प्रभावी ढंग से सक्रिय करने पर दे रहे जोर, इस सिस्टम में देश के सभी जिलों को भी जोड़ने की हो रही बड़ी तैयारी – हेमंत सिंह (स्पेशल एडिटर)


सांकेतिक तस्वीर।

नई दिल्ली। कारगिल युद्ध के बाद के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार देश की आंतरिक सुरक्षा के दृष्टि से राज्य मल्टी एजेंसी सेंटर (एमएसी) के माध्यम से एक ऐसा सिस्टम चाहता था जो कि आंतरिक सुरक्षा और भी अधिक मजबूती मिले,जिसको लेकर वर्ष 2001 में देश के सभी राज्यों के डीजीपी,व सभी सुरक्षा ऐजेंसियों के साथ कई दौर की बैठके भी हुई, हालांकि इस दौरान सभी यानि केंद्रीय ऐजेंसियों और राज्य स्तरीय ऐजेंसियों के बीच इस सिस्टम को लेकर सकारात्मक सहमति बनी थी। लेकिन इस दौरान यह भी देखा गया कि कुछ राज्यों से कई बार जानकारी साझा करने में संकोच किया जाता है। एमएसी मैक, इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) के तहत आतंकवाद विरोधी ग्रिड है, जिसे 2001 में कारगिल युद्ध के बाद शुरू किया गया था। इसमें केंद्र और राज्यों की एजेंसियां सूचनाएं साझा करती हैं।

बता दें कि अभी हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के एक उच्चस्तरीय बैठक में यह मुद्दा उठा था। बैठक में पुलिस महानिदेशकों से मैक के माध्यम से पर्याप्त जानकारी और कार्रवाई योग्य इनपुट साझा करने को कहा गया था। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ), सशस्त्र बल और राज्य पुलिस सहित 28 संगठन मैक का हिस्सा हैं। विभिन्न सुरक्षा एजेंसियां ​​मैक पर रीयल-टाइम इंटेलिजेंस इनपुट साझा करती हैं। बताया जा रहा है कि इस व्यवस्था को देश के सभी जिलों से जोड़ने की बड़ी तैयारी बहुत पहले से ही चल रही है।

वहीं इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से यह भी कहा गया है कि यह प्रणाली विभिन्न ऐजेंसियों के बीच खुफिया सूचना साझा करने के लिए है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से लागू करने में कई रुकावटें भी देखने को मिल रही है। राज्य की ऐजेंसियां अक्सर मैक पर जानकारी साझा करने से हिचकती हैं। लेकिन अब कहा जा रहा है कि गृह मंत्री की बैठक के बाद अब इस मामले में तेजी आ सकती है।

दरअसल, MAC हेडक्वार्टर्स से लगभग 400 सुरक्षित साइटें जुड़ी हुई हैं। मालूम हो कि राज्यों की ओर से सूचना साझा करने में अनिच्छा को 2020 में एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में भी बताया गया था। मैक में प्राप्त कुल इनपुट में राज्य एजेंसियों का योगदान बहुत ही कम है।

इस दौरान केंद्रीय ऐजेंसी इंटेलीजेंस ब्यूरों ने समिति को सूचित किया था कि आतंकवाद विरोधी प्रयासों में किसी भी तरह से शामिल सभी संगठन इस केंद्र के सदस्य हैं। सभी राज्यों के पास राज्यों की राजधानियों में स्थित एक सहायक बहु-एजेंसी केंद्र (एसएमएसी) है। आईबी ने पैनल को सूचित किया था कि गृह मंत्रालय, आईबी के साथ जिलों में एसएमएसी की कनेक्टिविटी का विस्तार करने पर विचार कर रहा है। केंद्र चाहता है कि खुफिया सूचनाओं को सटीक बनाया जाए। इनको रियल टाइम साझा करने के साथ ही एजेंसियां इनपुट का साझा विश्लेषण करके कार्रवाई योग्य बिंदुओं पर सहयोग करें।

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