एक्सक्लूसिव रिपोर्ट

रुस-यूक्रेन जंग के बीच रूसी फौज पहुंची आर्कटिक में, रूसी युध्दपोत व पनडुब्बीयां कर रही है गश्त,पास में हीं नाटों सेना भी कर रही है मिलीट्री ड्रिल, तनाव चरम पर – चंद्रकांत मिश्र/सतीश उपाध्याय

लंदन/मॉस्को। रूस और यूक्रेन के बीच अभी जंग चल ही रही थी कि इसी बीच अमेरिका व नाटों देशों में हड़कंप मचाने वाली एक रिपोर्ट सामने आई है,जिसमें बताया जा रहा है कि रूस ने अब आर्कटिक क्षेत्र में अचानक अपनी सैन्य तैनाती काफी बढ़ा दी है। जहां इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद नॉर्वे पहुंचे ब्रिटिश रक्षा मंत्री बेन वालेस ने दावा किया है कि आर्कटिक में रूस की मिलीट्री मूवमैंट काफी बढ़ गई हैं। इस दौरान उन्होंने आगे यह भी कहा कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन आर्कटिक में रूसी सैनिकों और हथियारों की तैनाती कर पश्चिमी देशों पर दबाव बढ़ाना चाहते हैं। बता दें कि नॉर्वे भी आर्कटिक के किनारे बसा नाटों का एक प्रमुख सहयोगी देश है। इस देश में ब्रिटिश और नाटों सेनाए कोल्ड रिस्पांस 2022 नाम से एक ट्रेनिंग मिशन को अंजाम दे रही हैं। जहां इसे पिछले 30 साल में नाटों का सबसे बड़ा मिलीट्री ड्रिल बताया जा रहा है। ऐसे में इन इलाकों के आसपास के क्षेत्रों में रूसी फौज की मौजूदगी नाटों देश में जबरदस्त टेंशन पैदा करने के लिए काफी हैं। वहीं इस कड़ी में यह भी बताया जा रहा है कि इस इलाके में रूसी नौसेना की उत्तरी कमान के युद्धपोत और पनडुब्बियां पेट्रोलिंग भी कर रही है।

बताते चले कि आर्कटिक महासागर के किनारे छह देश स्थित हैं,इनमें रूस,कनाडा,संयुक्त राज्य अमेरिका,डेनमार्क,नॉर्वे और आइसलैंड भी शामिल हैं। ऐसे में अब तक वीरान पड़ा यह इलाका अब तेजी से आबाद हो रहा है। ऐसे में दसियों खरब डॉलर मूल्य के संसाधनों तक पहुंच बनाने के लिए दुनिया के सभी देश तेजी से इस इलाके में घुसपैठ कर रहे हैं।

यहां दुनिया के करीब सभी देश अपने हितों की रक्षा के लिए क्षेत्र में विशेष बलों की तैनाती की है। आर्कटिक के आसपास के देशों के बीच क्षेत्र में दावों और समुद्र की सतह के नीचे महत्वपूर्ण संसाधनों के लिए दौड़ अब भी जारी है। इस दौड़ में सबसे ज्यादा हावी देश रूस है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवीय बर्फ तेजी से घट रही है और कुछ अनुमानों का अनुमान है कि आर्कटिक 2035 तक गर्मियों की समुद्री बर्फ से पूरी तरह मुक्त हो जाएगा। अब गर्मियों के महीनों के दौरान जहाजों के लिए यूरोप और उत्तरी एशिया के रास्ते में आर्कटिक के माध्यम से जाना संभव है। ये नए मार्ग स्वेज या पनामा नहरों के माध्यम से क्लासिक व्यापार मार्गों की तुलना में काफी छोटे और किफायती हैं।

इसी घटनाक्रम के कड़ी में बता दें कि यूक्रेन युद्ध से पहले भी आर्कटिक पर रूस का विशेष ध्यान रहा है। ऐसे में आर्कटिक में रूस तेजी से अपनी सेना का विस्तार और आधुनिकीकरण कर रहा है। 11 समय क्षेत्रों में फैले दुनिया का सबसे बड़ा देश रूस आर्कटिक के पिघलते बर्फ से डरा हुआ है। अभी तक समुद्री बर्फ के जमने के कारण उत्तर की ओर से रूस पर हमला करना संभव नहीं है। रूस के आर्कटिक से लगती सीमा की कुल लंबाई 24,000 किलोमीटर की है। ऐसे में बर्फ पिघलने से उसकी समुद्री सीमा के असुरक्षित होने का खतरा भी बढ़ जाएगा। इसी डर के कारण रूस ने आर्कटिक में अपनी सैन्य शक्ति का काफी विस्तार किया है। रूस ने आर्कटिक के इलाके में बड़े-बड़े सैन्य अड्डे बनाएं हैं। रूस ने उत्तर में 50 से अधिक सोवियत काल की सैन्य चौकियों को फिर से खोल दिया है। दस रडार स्टेशनों को अपग्रेड किया गया है, खोज और बचाव स्टेशन स्थापित किए गए हैं और सीमा चौकियों को नया रूप दिया गया है।

वहीं,आर्कटिक के बड़े इलाके पर नजर रखने के लिए रूस ने अपनी हवाई ताकत में भी जबरदस्त इजाफा किया है। आर्कटिक में रूस की सबसे उत्तरी सैन्य चौकी एलेक्जेंड्रा लैंड द्वीप पर नागरस्कोय में पुराने वायु सेना के अड्डे का विस्तार किया गया है। यहां आधुनिक मिग-31 लड़ाकू विमान के साथ एंटी-शिप और एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलों को तैनात किया गया है। रूस ने अपनी नौसैनिक ताकत बढ़ाने के लिए उत्तरी कमान को काफी उन्नत किया है। इस बेड़े में रूसी नौसेना ने 13 नए और आधुनिक युद्धपोतों को शामिल किया है। इनमें से कई युद्धपोतों पर दुनिया की सबसे खतरनाक हाइपरसोनिक मिसाइल किंजल को तैनात किया गया है।

कुल मिलाकर यह साफ होता दिख रहा है कि एक तरफ रुस-यूक्रेन के बीच भीषण लड़ाई जारी है जिसे लेकर अमेरिका और नाटों देश रूस के रडार पर है तो वहीं दूसरी तरफ आर्कटिक क्षेत्र में रुसी युध्दपोत और पनडुब्बीयां गश्त कर रही है वो भी ऐसे समय में जब वहीं पास के इलाकें में नाटों सेना अपने 30 साल के इतिहास में इतना बड़ा मिलीट्री ड्रिल को अंजाम दे रही है,ऐसे में हड़कंप मचना और तनाव बढ़ना स्वभाविक है।

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