इस्लामाबाद। पाकिस्तान के कराची यूनिवर्सिटी में मंगलवार को दोपहर में हुए आत्मघाती विस्फोट में हमलावर संगठन का नाम सामने आ गया है,दावा है कि इस घातक विस्फोट को बलूच लिबरेशन आर्मी ने अंजाम दिया है। बता दें कि आज कराची यूनिवर्सिटी के भीतर एक वैन में दोपहर के समय ब्लास्ट हो गया,जिसमें वैन में सवार तीन चीनी नागरिकों की घटनास्थल पर हीं मौत हो गई वहीं एक अन्य की भी मौत होने की रिपोर्ट सामने आई,इसके अलावा वैन को एस्कार्ट कर रहे पाक रेंजर के जवान भी इस हमले की चपेट में आ जाने से घायल हो गए,हालांकि इन पाक रेंजरों की स्थिति सामान्य बताई जा रही है।
हमलें के कुछ देर बाद बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) ने चीनी नागरिकों पर हमले की जिम्मेदारी को कबूला है। कहा जा रहा है कि एक लिखित बयान में बीएलए के प्रवक्ता ने कहा कि बलूच लिबरेशन आर्मी की मजीद ब्रिगेड कराची में चीनियों पर हमले की जिम्मेदारी लेती है। बयान में आगे भी कहा गया कि ब्रिगेड की पहली महिला फिदायीन ने इस हमले को अंजाम दिया। फिदायीन शारी बलूच ने आज बलूच विद्रोह के इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया। मालूम हो कि चीन न सिर्फ पाकिस्तान का दोस्त है बल्कि आर्थिक रूप से उसका मददगार और बड़ा निवेशक भी है इसलिए पाकिस्तानी जमीन पर चीनी नागरिकों की मौत दोनों के बीच तनाव पैदा कर सकती है।
दरअसल,चीन के प्रति बीएलए का यह आक्रोश नया नहीं है। क्योंकि बलूच विद्रोही समूह पाकिस्तान में चीनी परियोजना का शुरु से ही विरोध कर रहा है और इसलिए चीनी नागरिकों और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर बलूच विद्रोही हमले कर रहे है। बताया जा रहा है कि इस आर्थिक गलियारे का रूट बलूचिस्तान से होकर गुजरता है। इसलिए उग्रवादी सीपीईसी मार्ग और सीमा रेखा क्षेत्रों के आसपास संवेदनशील सुरक्षा प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं।
गौरतलब है कि इसी साल बीते 28 जनवरी को पाकिस्तान-ईरान सीमा के पास केच इलाके में एक सुरक्षा जांच चौकी पर हमले में 10 पाक सैनिकों की मौत हो गई थी। इस घातक हमले की जिम्मेदारी भी बीएलए ने ही ली थी।
तभी से चीन की 64 अरब डॉलर की परियोजना के चलते बलूच विद्रोहियों के हमले बढ़ते हीं जा रहे हैं जिससे बलूचिस्तान में अशांति बनी हुई है। अब ये हमले कराची तक जा पहुंचे हैं जिसमें चीन के प्रति विद्रोहियों के गुस्से को देखा जा सकता है। बीएलए शुरुआत से ही सीपीईसी का विरोध कर रहा है। उनका आरोप है कि चीन उनके संसाधनों की चोरी कर रहा है। बलूचिस्तान के कई अलगाववादी समूह पाकिस्तान में प्रांत के शामिल होने का भी विरोध करते रहते हैं। उनका दावा है कि 1947 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंत के दौरान इसे जबरन पाकिस्तान में शामिल किया गया था।
